Thursday, October 24, 2019

आज का संदेश

"अात्म- परिवर्तन"

*धर्म मेरा संप्रदाय आपका।*
*पुण्य मेरा पाप आपका।।*
*ये सोच बनायेगा आपको खाक की।*
*आपके धर्म पर चढ जाएगी परत राख की।।*
*आवश्यकता नहीं सुधार करने की धर्म में ।*
*सुधार करना हो तो करें अपने विचार व कर्म में।।*
*बदलाव स्वयं के जीवन में।*
*परिवर्तन स्वयं के अंतर्मन में।।*

*मनुष्य से बड़ा कोई ग्रंथ नहीं।*
*इसके प्रबल पुरूषार्थ का कोई अंत नहीं।।*
*पुस्तकों के धर्म पर बंद करो लड़ाई।*
*शब्दों के फावड़े से बनी है ये दिलों में गहरी खाई।।*

*सभी धर्म में बना है प्रार्थना व उपासना।*
*सबका होता है कुछ क्षण उससे ईश्वर से सामना।।*
*फिर क्यों एक दूसरे को कोसना।*
*कहां भूल कर रहे विचार कर सोचना।।*

*दूसरों को उपदेश की राह पर।*
*स्वयं में न धर्म पालन केवल गुनाह कर।।*
*ये सिखावन न आपके काम की।*
*धर्म का आपने न मर्म जाना केवल बदनाम की।।*


                   आपका अपना

             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"

            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि

          प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता

   अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़

      ८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७

आज का सुविचार

*संसार में दो प्रकार के पेड़ पौधे होते हैं*

*प्रथम : अपना फल स्वयं दे देते हैं,*
*जैसे - आम, अमरुद, केला इत्यादि*

*द्वितीय : अपना फल छिपाकर रखते हैं,*
*जैसे - आलू, अदरक, प्याज इत्यादि*

*जो अपना फल अपने आप दे देते हैं, उन वृक्षों को सभी खाद-पानी देकर सुरक्षित रखते हैं, किन्तु जो अपना फल छिपाकर रखते है, वे जड़ सहित खोद लिए जाते हैं ।*

👇🏵 *ठीक इसी प्रकार*🏵👇

      *जो जीव अपनी विद्या, धन, शक्ति स्वयं ही समाज सेवा में समाज के उत्थान में लगा देते हैं, उनका सभी ध्यान रखते हैं अर्थात् मान-सम्मान देते है*

👇🏵 *वही दूसरी ओर*🏵👇

👉 *जो अपनी विद्या, धन, शक्ति स्वार्थवश छिपाकर रखते हैं,  किसी की सहायता से मुख मोड़े रखते है, वे जड़ सहित खोद लिए जाते  है अर्थात्  समय रहते ही भुला दिये  जाते  है*

*एक कदम "आध्यत्म" की ओर....*
*शुभ मंगलमय प्रभात वंदन*
*धनतेरस पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं*
*🌹🌹🙏🙏🙏🌹🌹*्


                    ्आपका अपना

             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"

            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि

          प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता

   अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़

      ८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७

गौ माता का शास्त्र पुराणों में माहात्म्य


*🌺 गौ माता का शास्त्र पुराणों में माहात्म्य!! 🌺👏🏻*

• स्वप्न में गौ अथवा वृषभ के दर्शनसे कल्याण लाभ एवं व्याधि नाश होता है । इसी प्रकार स्वप्नमे गौ के थन को चूसना भी श्रेष्ठ माना पाया है । स्वप्नमे गौका घरमें ब्याना, वृषभ की सवारी करना, तालाबके बीचमें घृत मिश्रित खीरका भोजन भी उत्तम माना गया है । घीसहित खीरका भोजन तो राज्य प्राप्ति का सूचक माना गया है।

इसी प्रकार स्वप्न में ताजे दुहे हुए फेनसहित दुग्धका पान करनेवाले को अनेक भोगो की तथा दहीके देखने से प्रसन्नता की प्राप्ति होती है । जो वृषभ से युक्त रथपर स्वप्न में अकेला सवार होता है और उसी अवस्थायें जाग जाता है, उसे शीघ्र धन मिलता है । स्वप्न में दही मिलनेसे धनकी, घी मिलनेसे यशकी और दही खानेस भीे यशकी प्राप्ति निश्चित है ।

यात्रा आरम्भ करते समय दही और दूधका दीखना शुभ शकुन माना गया है । स्वप्नमें दही भातका भोजन करनेसे कार्य सिद्धि होती है तथा बैलपर चढ़नेसे द्रव्य लाभ होता है एवं व्याधिसे छुटकारा मिलता है । इसी प्रवार स्वप्रमे वृषभ अथवा गौ का दर्शन करनेसे कुटुम्ब की वृद्धि होती है । स्वप्नमे सभी काली वस्तुओ का दर्शन निन्द्य माना गया है, केवल कृष्णा गौ का  दर्शन शुभ होता है । (स्वप्न में गोदर्शन का फल, संतो के श्री मुख से सुना हुआ)

• वृषभो को जगत् का पिता समझना चाहिये और गौएं संसार की माता हैं । उनकी पूजा करनेसे सम्पूर्ण पितरों और देवताओं की पूजा हो जाती है । जिनके गोबरसे लीपने पर सभा भवन, पौंसलेे, घर और देवमंदिर भी शुध्द हो जाते हैं, उन गौओ से बढकर और कौन प्राणी हो सकता है ?जो मनुष्य एक सालतक स्वयं भोजन करनेके पहले प्रतिदिन दूसरे की गायको मुट्ठी भर घास खिलाया करता है, उसको प्रत्येक समय गौकी सेवा करनेका फल प्राप्त होता है । (महाभारत, आश्वमेधिकपर्व, वैष्णवधर्म )

• देवता, ब्राह्मण, गो, साधु और साध्वी स्त्रीयोंके बलपर यह सारा संसार टिका हुआ है, इसीसे वे परम पूजनीय हैं । गौए जिस स्थानपर जल पीती हैं, वह स्थान तीर्थ है । गंगा आदि पवित्र नदियाँ गोस्वरूपा ही हैं ।

जहा जिस मार्ग से गो माताए जलराशि को लांघती हुई नदी आदि को पार करती है,वहां गंगा, यमुना, सिंधु, सरस्वती आदि नदियाँ या तीर्थ निश्चित रूप से विद्यमान रहते है। (विष्णुधर्मोत्तर पुराण . द्वी.खं ४२। ४९-५८)

• हे ब्राह्मणो ! गायके खुरसे उत्पन्न धूलि समस्त पापो को नष्ट कर देनेवाली है । यह धूलि चाहे तीर्थकी हो चाहे मगध कीकट आदि निकृष्ट देशोंकी ही क्यो न हो । इसमें विचार अथवा संदेह करने की कोई आवश्यकता नहीं । इतना ही नहीं वह सब प्रकार की मङ्गलकारिणी, पवित्र करनेवाली और दुख दरिद्रतारूप अलक्ष्मी को नष्ट करनेवाली है ।

गायो के निवास करनेसे वहाँक्री पृथिवी भी शुद्ध हो जाती है । जहां गायें बैठती हैं वह स्थान, वह घर सर्वथा पवित्र हो जाता है । वहां कोई दोष नहीं रहता । उनके नि: श्वास की हवा देवताओंके लिये नीराज़न के समान है । गौओ को स्पर्श करना बडा पुण्यदायक है और उससे समस्त दु-स्वप्न, पाप आदि भी नष्ट हो जाते हैं । गौओ के गरदन और मस्तकके बीच साक्षात् भगवती गंगा का निवास है । गौएं सर्वदेेवमयी  और सर्वतीर्थमयी हैं । उनके रोएँ भी बड़े ही पवित्रताप्रद और पुण्यदायक हैं । (विष्णुधर्मोत्तर पुराण ,भगवान् हंस ब्राह्मणों से)

• ब्राह्मणो! गौओ के शरीरको खुजलानेसे या उनके शरीरके कीटाणुओ को दूर करनेसे मनुष्य अपने समस्त पापोंको धो डालता है । गौओ को गोग्रास दान करनेसे महान् पुण्य की प्राप्ति होती है । गौओं को चराकर उन्हें जलाशयतक घुमाकर जल पिलानेसे मनुष्य अनन्त वर्षोतक स्वर्गमे निवास करता है । गौओ के प्रचारणके लिये गोचरभूमि की व्यवस्था कर मनुष्य नि:संदेह अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त करता है । गौओ के लिये गोशालाका निर्माणकर मनुष्य पूरे नगरका स्वामी बन जाता है और उन्हें नमक खिलाने से मनुष्य को महान सौभाग्यकी प्राप्ति होती है । (विष्णुधर्मोत्तर पुराण ,भगवान् हंस ब्राह्मणों से)

•विपत्तिमें या क्रीचड़मे फंसी हुई या चोर तथा बाघ आदिके भयसे व्याकुल गौ को क्लेशस्ने मुक्त कर मनुष्य अश्वमेधयज्ञका फल प्राप्त करता है । रुग्णावस्थामे गौओ को औषधि प्रदान करनेसे स्वयं मनुष्य सभी रोगोंसे मुक्त को जाता है । गौओ को भयसे मुक्त करनेपर मनुष्य स्वयं भी सभी भयोसे मुक्त हो जाता है ।

चांडाल के हाथसे गौ को खरीद लेने पर गोमेधयज्ञका फल प्राप्त होता है तथा किसी अन्य के हाथसे गाय को खरीदकर उसका पालन करनेसे गोपालक को गोमेधयज्ञका फल प्राप्त होता है । गौओंकी शीत तथा धूपसे रक्षा करनेपर स्वर्गकी प्राप्ति होती है । (विष्णुधर्मोत्तर पुराण ,भगवान् हंस ब्राह्मणों से)

•गोमूत्र, गोमय, गोदुग्ध, गोदधि, गोघृत और कुशोदक यह पञ्चगव्य स्नानीय और पेयद्रव्योंमें परम पवित्र कहा गया है । ये सब मङ्गलमय पदार्थ भूत, प्रेत, पिशाच, राक्षस आदिसे रक्षा करनेवाले परममङ्गल तथा कलिके दुख-दोषो को नाश करनेवाले हैं । गोरोचना भी इसी प्रकार राक्षस, सर्पविष तथा सभी रोगों को नष्ट करनेवाली एवं परम धन्य है ।जो प्रात:काल उठकर अपना मुख गोघृतपात्रमें रखे घीमे देखता है उसकी दुख: दरिद्रता सर्वदाके लिये समाप्त हो जाती है और फिर पाप का बोझ नहीं ठहरता ।
(विष्णुधर्मोत्तर पुराण, राजनीति एवं धर्मशास्त्रके सम्यक ज्ञाता पुष्कर जी भगवान् परशुराम से)

•गायो,गोकुल, गोमय आदिपर थूक-खखार नहीं छोड़ना चाहिये । (पुष्कर परशुराम संवाद)

•जो गौओ के चलनेके मार्गमें, चरागाहमें जलकी व्यवस्था करता है, वह वरुणलोक को प्राप्तकर वहां दस हजार वर्षोंतक विहार करता है और जहां जहां उसका आगे जन्म होता है वह वहां सभी आनन्दो से परितृप्त रहता है । गोचरभूमि को हल आदिसे जोतनेपर चौदह इन्द्रों पर्यन्त भीषण नरक की प्राप्ति होती है ।हे परशुराम जी ! जो गौओ के पानी पीते समय विघ्न डालता है, उसे यही मानना चाहिये कि उसने घोर ब्रह्महत्या की । सिंह, व्याघ्र आदिके भयसे डरी हुई गायकी जो रक्षा करता है और कीचड़में फंसी हुई गायका जो उद्धार करता है, वह कल्पपर्यन्त स्वर्गमें स्वर्गीय भोगो का भोग करता है । गायों को घास प्रदान करनेसे वह व्यक्ति अगले जन्ममे रूपवान हो जाता है और उसे लावण्य तथा महान सौभाग्यकी प्राप्ति होती है । (पुष्कर परशुराम संवाद)

•हे परशुरामजी ! गायों को बेचना भी कल्याणकारी नहीं है। गायोंका नाम लेने से भी मनुष्य पापो से शुद्ध हो जाता है । गौओका स्पर्श सभी पापोंका नाश करनेवाला तथा सभी प्रकारका सौभाग्य एवं मङ्गलका विधायक है । गौओका दान करनेसे अनेक कुलोंका उद्धार को जाता है ।

मातृकुल, पितृकुल और भार्याकुलमे जहां एक भी गो माता निवास करती है वहां रजस्वला और प्रसूतिका आदिकी अपवित्रता भी नहीं आती और पृथ्वी में अस्थि, लोहा होनेका, धरतीके आकार प्रकार की विषमताका दोष भी नष्ट हो जाता है । गौओ के श्वास प्रश्वास से घरमे महान् शान्ति होती है । सभी शास्त्रो में  गौओके श्वास प्रश्वास को महानीराजन कहा गया है । हे परशुराम ! गौओ को छु देने मात्रसे मनुष्योंके सारे पाप क्षीण हो जाते हैं ।(पुष्कर परशुराम संवाद)

• जिसको गायका दूध, दही और घी खानेका सौभाग्य नहीं प्राप्त होता, उसका शरीर मल के समान है । अन्न आदि पाँच रात्रितक, दूध सात रात्रितक, दही बीस रात्रितक और घी एक मासतक शरीरमे अपना प्रभाव रखता है । जो लगातार एक मासतक बिना गव्यका(बिना गौ के दूध से उत्पन्न पदार्थ)भोजन करता है उस मनुष्यके भोजनमें प्रेतों को भाग मिलता है, इसलिये प्रत्येक युुग में सब कार्योंके लिये एकमात्र गौ ही प्रशस्त मानी गयी है । गौ सदा और सब समय धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष ये चारों पुरुषार्थ प्रदान करनेवाली है । (पद्मपुराण, ब्रह्माजी और नारद मुनि संवाद)

•गायो से  उत्पन्न दूध, दही, घी, गोबर, मूत्र और रोचना-ये छ: अङ्ग (गोषडङ्ग) अत्यन्त पवित्र हैं और प्राणियोंके सभी भापों को नष्ट कर उन्हें शुद्ध करनेवाले हैं । श्रीसम्पन्न बिल्व वृक्ष गौओके गोबरसे ही उतपन्न हुआ है । यह भगवान् शिवजी को अत्यन्त प्रिय है । चूँकि उस वृक्षमें पद्महस्ता भगवती लक्ष्मी साक्षात् निवास करती हैं, इसीलिये इसे श्रीवृक्ष भी कहा गया है । बादमें नीलकमल एवं रक्तकमलके बीज भी गोबरसे ही उत्पन्न हुए थे । गौओ के मस्तकसे उत्पन्न परम पवित्र गोरोचना है समस्त अभीष्टो की सिद्धि करनेवाली तथा परम मङ्गलदायिनी है ।

अत्यन्त सुगन्धित गुग्गुल नामका पदार्थ गौओ के मूत्रसे ही उत्पन्न हुआ है । यह देखनेसे भी कल्याण करता है । यह गुग्गुल सभी देवताओं का आहार है, विशेषरूप भगवान् शंकर का प्रिय आहार है । संसारके सभी मङ्गलप्रद बीच एवं सुन्दर से सुन्दर आहार तथा मिष्टान्न आदि सब के सब गौके दूधसे ही बनाये जाते हैं । सभी प्रक्रार की मङ्गल कामनाओ को सिद्ध करनेके लिये गायका दही लोकप्रिय है । देवताओ को तृप्त करनेवाला अमृत नामक पदार्थ गायके घीसे ही उत्पन्न हुआ है । (भविष्यपुराण, उत्तरपर्व, अ.६९, भगवान् श्रीकृष्ण युधिष्ठीर संवाद)

•गौओ को खुजलाना तथा उन्हें स्नान कराना भी गोदानके समान फल वाला होता है । जो भयसे दुखी (भयग्रस्त) एक गायकी रक्षा करता है, उसे सौं गोदानका फल प्राप्त होता है । पृथ्वी में समुद्रसे लेकर जितने भी बड़े तीर्थ-सरिता-सरोवर आदि हैं, वे सब मिलकर भी गौ के सींग के जलसे स्नान करनेके षोडशांश के तुल्य भी नहीं होते।(बृहत्पराशर स्मृति, अध्याय ५)

• राम-वनवास के समय भरत १४ वर्षतक इसी कारण स्वस्थ रहकर आध्यात्मिक उन्नति करते रहे, क्योंकि वे अन्न के साथ गोमूत्र का सेवन करते थे ।

गोमूत्रयावकं श्रुत्वा भ्रातरं वल्कलाम्बरम्।।
(श्रीमद्भागवत ९ । १० । ३४)

• गोमाताका दर्शन एवं उन्हें नमस्कार करके उनकी परिक्रमा केरे । ऐसा करने से सातों द्विपोसहित भूमण्डल की प्रदक्षिणा हो जाती है । गौएँ समस्त प्राणियो की माताएँ एवं सारे सुख देनेवाली हैं । वृद्धिकी आकांक्षा करनेवाले मनुष्य को नित्य गो माताओ की प्रदक्षिणा करनी चाहिये ।

• जिस व्यक्तिकें पास श्राद्धके लिये कुछ भी न हो वह यहि पितरो का ध्यान करके गो माता को श्रद्धापूर्वक घास खिला दे तो उसको श्राद्धका फल मिल जाता है । (निर्णयसिंधुु)

• गौ माताए समस्त प्राणियोंकी माता हैं और सारे सुखों को देनेवाली हैं, इसलिये कल्याण चाहनेवाले मनुष्य सदा गोओंकी प्रदक्षिणा करें । गौओ को लात न मारे । गौओ के बीचसे होकर न निकले। मङ्गलकी आधारभूत गो-देवियोंकी सदा पूजा को । (महा ,अनु ६९ । ७-८)

• जब गौए चर रही हों या एकांत में बैठी हों, तब उन्हें तंग न करें । प्यास से पीडित होकर जब भी क्रोध से अपने स्वामी की ओर देखती है तो उसका बंधुबांधवोसहित नाश हो जाता है । राजाओ को चाहिये कि गोपालन और गोरक्षण करे । उतनी ही संख्यामे गाय रखे, जितनीका अच्छी तरह भरण-पोषण हो सके । गाय कभी भी भूखसे पीडित न रहे, इस बातपर विशेष ध्यान रखना चाहिये ।

• जिसके घरमें गाय भूखसे व्याकुल होकर रोती है, वह निश्चय ही नरक में जाता है । जो पुरुष गायोंके घरमें सर्दी न पहुँचने का और जलके बर्तन को शुद्ध जलसे भर रखनेका प्रबन्ध कर देता है, वह ब्रह्मलोकमे आनन्द भोग करता है ।

• जो मनुष्य सिंह, बाघ अथवा और किसी भयसे डरी हुई, कीचड़ में धसी हुई या जलमें डूबती हुई गायको बचाता है वह एक कल्पतक स्वर्ग-सुख का भोग करता है । गायकी रक्षा, पूजा और पालन अपनी सगी माताके समान करना चाहिये । जो मनुष्य गायों को ताड़ना देता है, उसे रौरव नरक की प्राप्ति होती है । (हेभाद्रि)

• गोबर और गोमूत्र से अलक्ष्मी का नाश होता है,  इसलिये उनसे कभी घृणा न करे। जिसके घरमें प्यासी गाय बंधी रहती है, रजस्वला कन्या अविवाहिता रहती है और देवता बिना पूज़नके रहते हैं, उसके पूर्वकृत सारे पुण्य नष्ट हो जाते हैं । गायें जब इच्छानुसार चरती होती हैं, उस समय जो मनुष्य उन्हें रोकता है, उसके पूर्व पितृगण पतनोन्मुख होकर काँप उठते हैं । जो मनुष्य मूर्खतावश गायों को लाठी से मारते हैं उनको बिना हाथके होकर यमपुरीमें जाना पड़ता है । (पद्मपुराण, पाताल .अ १८)

• गायको यथायोग्य नमक (नमकयुक्त भोजन) खिलाने से पवित्र लोककी प्राप्ति होती है और जो अपने भोजनसे पहले गाय को घास चारा खिलाकर तृप्त करता है, उसे सहस्त्र गोदानका फल मिलता है । (आदित्यपुराण)

• अपने माता पिताकी भांती श्रद्धापूर्वक गायोंका पालन करना चाहिये । हलचल, दुर्दिन और विप्लवके अवसर पर  गायों को घास और शीतल जल मिलता रहे, इस बातका प्रबन्ध करते रहना चाहिये । (ब्रह्मपुराण)

• गोमाताका दर्शन एवं उन्हें नमस्कार करके उनकी परिक्रमा केरे । ऐसा करने से सातों द्विपोसहित भूमण्डल की प्रदक्षिणा हो जाती है । गौएँ समस्त प्राणियो की माताएँ एवं सारे सुख देनेवाली हैं । वृद्धिकी आकांक्षा करनेवाले मनुष्य को नित्य गो माताओ की प्रदक्षिणा करनी चाहिये ।

•जिस व्यक्तिकें पास श्राद्धके लिये कुछ भी न हो वह यहि पितरो का ध्यान करके गो माता को श्रद्धापूर्वक घास खिला दे तो उसको श्राद्धका फल मिल जाता है । (निर्णयसिंधुु)

•महर्षि वसिष्ठ जी ने अनेक प्रकार से गो माता की महिमा तथा उनके दान आदिकी महिमा बताते हुए मनुष्यो के लिये एक महत्त्वपूर्ण उपदेश तथा एक मर्यादा स्थापित करते हुए कहा –

नाकीर्तयित्वा गा: सुप्यात् तासां संस्मृत्य चोत्पतेत्। सायंप्रातर्नमस्येच्च गास्तत: पुष्टिमाप्नुयात्।।
गाश्च संकीर्तयेन्नित्यं नावमन्येेत तास्तथा ।
अनिष्ट स्वप्नमालक्ष्य गां नर: सम्प्रकीर्तयेत्।।
(महाभा, अनु ७८। १६, १८)

अर्थात् ‘ गौओ का नामकीर्तन किये बिना न सोये । उनका स्मरण करके ही उठे और सबेरे-शाम उन्हें नमस्कार करे। इससे मनुष्य को बल और पुष्टि प्राप्त होती है । प्रतिदिन गायो का जाम ले, उनका कभी अपमान न को । यदि बुरे स्वप्न दिखायी दें तो मनुष्य गो माता का नाम ले ।

इसी प्रकार वे आगे कहते हैं की जो मनुष्य श्रद्धापूर्वक रात-दिन निम्न मन्त्रका बराबर कीर्तन करता है वह सम अथवा विषम किसी भी स्थितिमें भयसे सर्वथा मुक्त हो जाता है और सर्वदेवमयी गोमाताका कृपा पात्र बन जाता है ।

मन्त्र इस प्रकार है –
गा वै पश्याम्यहं नित्यं जाब: पश्यन्तु मां सदा ।
गावोsस्माकं वयं तासां यतो गावस्ततो वयम्।।
(महाभा, अनु ७८ । २४)

अर्थात् मैं सदा गौओका दर्शन करू और गौए मुझपर कृपा दृष्टि करें । गौए हमारी हैं और हम गौओकै हैं । जहां गौए रहें, वहीं हम रहें, चूँकी गौए हैं इसीसे हमलोग भी हैं।

● पूज्य बाबा श्री ठाकुदास ने कहा है कि यदि पृथ्वी के किसी भाग के नीचे का जल अपवित्र /अशुद्ध हो गया हो तब उस भूमि के भाग ओर यदि गोबर गोमूत्र गिरता रहे तो वह जल शुद्ध हो जाता है । ऐसा उन्होंने केवल कहा ही नही था अपितु प्रमाणित भी कर के दिखाया था ।

●आज ग्लोबल वार्मिंग और ओजोन परत को खतरा है, इसपर भी वैज्ञानिकों और विद्वानों ने शोध करके पाया कि गौ के शुद्ध घी का उपयोग करके हवन किया जाने से यह समस्या पूरी तरह ठीक हो सकती है ।

सर्वदेवमयी गौ माता की जय।




             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"

            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि

          प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता

   अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़

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आज का सुविचार

*आज का विचार*

सच्चा तीर्थ कौनसा हैं ? तीर्थसेवन से आशय क्या है, यह स्कंदपुराण से समझें-

‘‘सत्य तीर्थ हैं, क्षमा, इंद्रिय नियंत्रण भी तीर्थ हैं। सरलता भरा स्वभाव एवं जीव दया भी तीर्थ है। दान, मन का संयम, संतोष, ब्रह्मचर्य, प्रियवचन बोलना भी तीर्थ है। ज्ञान, धैर्य, तप को भी तीर्थ कहा गया है। तीर्थों में सबसे श्रेष्ठ तीर्थ हैं-अंतःकरण की पवित्रता।’’

अंत में स्कंदपुराण इस विषय में कहता हैं-‘‘जल में शरीर को डुबो लेना ही स्नान नहीं कहलाता। जिसने दमरूपी तीर्थ में स्नान कर मन के मैल को धो डाला, वही शुद्ध है, सच्चा तीर्थ सेवन करने वाला है।’’
सुप्रभातम

Wednesday, October 23, 2019

24 अक्टूबर विशेष


*24 अक्टूबर की महत्त्वपूर्ण घटनाएँ👉*

1577 - चौथे सिख गुरु रामदास ने अमृतसर शहर की स्थापना की, शहर का नाम तालाब अमृत सरोवर के नाम पर रखा गया।
1579 - जेसुइट पादरी एस जे थामस भारत आने वाले पहले अंग्रेज थे,वह पुर्तग़ाली नौका से गोवा पहुंचे।
1605 - मुग़ल शासक जहाँगीर ने आगरा में गद्दी संभाली थी।
1945 - द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के एक महीने बाद ही विश्व में शांति कायम करने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ (यूएनओ) की स्थापना की गई।
1946 - रॉकेट द्वारा पहली बार धरती का अंतरिक्ष से चित्र लिया गया।
1948 - बर्नार्ड बारूक ने सीनेट युद्ध की जांच समिति के समक्ष एक भाषण में पहली बार ‘शीत युद्ध’ शब्द का इस्तेमाल किया।
1975 - बंधुआ मजदूर प्रथा को समाप्त करने के लिए एक अध्यादेश लाया गया और अगले दिन से यह प्रभाव में आ गया।
1982 - सुधा माधवन मैराथन में दौड़ने वाली पहली महिला एथलीट बनी।
1984 - काेलकाता में एस्प्लेनेड और भवानीपुर के बीच पहली मेट्रो ट्रेन (भूमिगत ट्रेन) शुरु।
2001 - नासा के 2001 मार्स ओडिसी अंतरिक्ष यान ने सफलतापूर्वक मंगल ग्रह के चारों ओर कक्षा में प्रवेश किया।
2005 - न्यूजीलैंड-भारत नया हवाई सेवा समझौता करने पर सहमत।

*24 अक्टूबर को जन्मे व्यक्ति👉*

1725 - बहादुर शाह जफर मुग़ल साम्राज्य के अंतिम बादशाह थे।
1940 - कृष्णास्वामी कस्तूरीरंगन - भारत के प्रसिद्ध अंतरिक्ष वैज्ञानिक।
1921 - आर. के. लक्ष्मण, सुप्रसिद्ध कार्टूनिस्ट।
1914 - लक्ष्मी सहगल, स्वतंत्रता सेनानी और समाजसेविका।
1911 - अशोक मेहता - राजनीतिज्ञों , सांसद ।

*24 अक्टूबर को हुए निधन👉*

2000 - सीताराम केसरी - राजनीतिज्ञ।
1991 - इस्मत चुग़ताई - उर्दू साहित्यकार ।
1954 - रफ़ी अहमद क़िदवई, स्वतंत्रता सेनानी और राजनीतिज्ञ ।
2006 - धरमपाल - भारत के एक महान् गांधीवादी, इतिहासकार एवं दार्शनिक।
2013 - मन्ना डे - भारत सरकार ने इन्हें सन 2005 में कला के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित।
2015 - शमशाद हुसैन एक भारतीय कलाकार।
2017 - गिरिजा देवी - प्रसिद्ध ठुमरी गायिका थीं।

*24 अक्टूबर के महत्त्वपूर्ण अवसर एवं उत्सव👉*

🔅 विश्व विकास सूचना दिवस ।
🔅 विश्व पोलियो दिवस ।
🔅 संयुक्त राष्ट्र संघ स्थापना दिवस।

गंगा का पृथ्वी पर आगमन


*गंगा का पृथ्वी पर आगमन*

राजा सगर की केशिनी व महती नामक दो सुंदर रानियां थीं। एक दिन महर्षि और्व ने उन्हें वर देते हुए कहा- “तुम्हारी एक रानी को साठ हज़ार पुत्र प्राप्त होंगे, जबिक दूसरी को मात्र एक पुत्र! किंतु वंश चलानेवाला दूसरी रानी का ही पुत्र होगा। इसलिए इन दो वरों में जिसकी जो इच्छा हो, वह वही ले ले।” तब रानी केशिनी ने एक पुत्र वाला और महती ने साठ हज़ार पुत्रों वाला वर स्वीकार कर लिया।

कुछ समय बाद केशिनी ने एक बालक को जन्म दिया, जिसका नाम असमंजस रखा गया। दूसरी रानी महती के गर्भ से बीजों से भरी एक थैली उत्पन्न हुई। उसमें बीज के आकर के साठ हज़ार अंडे थे। सगर ने उन्हें घी से भरे हुए घड़ों में रखवा दिया और उनका पोषण करने के लिए साठ हज़ार सेविकाएं नियुक्त कर दीं। उचित समय आने पर उनमें साठ हज़ार बालक उत्पन्न हुए। वे सभी बालक अति वीर, बलशाली और पराक्रमी थे। सगर इतने पुत्रों को देखकर हर्षित हो गए।

एक बार राजा सगर के मन में अश्वमेध यज्ञ करने का विचार उत्पन्न हुआ। उन्होंने अपने मंत्रियों को यज्ञ की तैयारी करने का आदेश दे दिया। शुभ मुहूर्त पर यज्ञ आरम्भ हुआ। यज्ञ-अश्व को छोड़ा गया. देवराज इन्द्र ने सोचा कि अश्वमेध यज्ञ करके राजा सगर कहीं उनका राजसिंहासन न हथिया ले। अतः उन्होंने दैत्य का रूप धारण कर यज्ञ अश्व को चुरा लिया और भगवान विष्णु के अंशावतार कपिल मुनि के आश्रम में छुपा दिया। अश्व का हरण होने पर ऋषि-मुनियों ने सगर से अतिशीघ्र यज्ञ-अश्व ढूंढने के लिए कहा।

राजा सगर ने अपने साठ हज़ार पुत्रों को यज्ञ का अश्व खोजने के लिए भेजा। उन्होंने सारी पृथ्वी छान डाली, किंतु उन्हें यज्ञ का अश्व कहीं भी दिखाई नहीं दिया। तब उन्होंने अपनी बलिष्ठ भुजाओं से पृथ्वी को खोदना आरम्भ कर दिया। उनके भीषण प्रहारों से पृथ्वी सहित वहां रहने वाले नागों, दैत्यों और अन्य प्राणियों की करुण चीत्कारें गूंजने लगीं।

सगर-पुत्र भूमि खोदते हुए महर्षि कपिल के आश्रम के निकट पहुंच गए। वहां उन्हें यज्ञ का अश्व बंधा हुआ दिखाई दिया। उन्होंने सोचा कि यज्ञ में विघ्न डालने के लिए कपिल मुनि ने ही यज्ञ-अश्व का हरण किया, अतः उन्होंने भगवान विष्णु अंशावतार महर्षि कपिल को अपशब्द कह दिए। तब मुनि ने क्रुद्ध होकर उन्हें भस्म कर डाला।

यह समाचार सुनकर सगर शोक में डूब गए। तब उनके पौत्र अंशुमान ने महर्षि कपिल की स्तुति कर उनका क्रोध शांत किया। महर्षि कपिल ने प्रसन्न होकर यज्ञ अश्व लौटा दिया। महर्षि को प्रसन्न देखकर अंशुमान ने उनसे मृत सगर-पुत्रों के उद्धार के विषय में पूछा। उन्होंने कहा कि गंगा की पवित्र जलधारा ही सगर-पुत्रों का उद्धार कर सकती है।
महर्षि कपिल के परामर्श के अनुसार राजा सगर गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए कठोर तप करने लगे। उनकी मृत्यु के बाद अंशुमान ने और इसके बाद उनके पुत्र दिलीप ने अनेक वर्षों तक कठोर तप किया। किंतु वे गंगा को पृथ्वी पर लाने में सफल नहीं हुए। अंत में अंशुमान के पौत्र भागीरथ  ने गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए भगवान विष्णु की कठोर तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें साक्षात दर्शन दिए।

भगवान के दर्शन पाकर भागीरथ श्रद्धापूर्वक उनकी स्तुति करने लगे। तब भगवान विष्णु ने प्रसन्न होकर भागीरथ  से कहा-“वत्स! तुम्हारी कठोर तपस्या से मैं अति प्रसन्न हूँ। तुम्हें अभिलषित वह प्रदान करने के लिए ही मैं यहाँ प्रकट हुआ हूँ। तुम निःसंकोच इच्छित वर माँग लो।”

भागीरथ  बोले-“भगवन! अनेक वर्षों पूर्व कपिल मुनि ने अपने शाप से मेरे पूर्वजों को भस्म कर दिया था। तभी से मेरे पूर्वज प्रेत योनि में भटक रहे हैं। कपिल मुनि ने कहा था कि यदि गंगा पृथ्वीलोक में आकर अपने पवित्र जल से उनकी शुद्धि कर दें तो प्रेत योनि से उनका उद्धार हो जाएगा और वे आपके परम पद के अधिकारी हो जाएँगे।

भगवन! गंगा माता को पृथ्वी पर लाने के लिए मेरे परदादा राजा सगर, दादा अंशुमान और पिता दिलीप ने अनेक वर्षों तक कठोर तपस्या की। किंतु वे इसमें सफल नहीं हुए और तपस्या करते हुए उन्होंने प्राण त्याग दिए। तब मैंने उनके कार्य को सम्पन्न करने के लिए कठोर तपस्या की। प्रभु! यदि आप मेरी तपस्या से प्रसन्न हैं तो गंगा देवी को पृथ्वी पर भेजने की कृपा करें।”

उसकी बात सुनकर भगवान विष्णु ने देवी गंगा से कहा-“गंगे! तुम अभी नदी के रूप में पृथ्वी पर जाओ और सगर के सभी पुत्रों का उद्धार करो। तुम्हारे स्पर्श से वे सभी राजकुमार मेरे परम धाम को प्राप्त होंगे। पृथ्वी पर जो भी पापी तुम्हारे जल में स्नान करेगा, उसके सभी पापों का नाश हो जाएगा। पर्वों और विशेष पुण्य तिथियों पर तुम्हारे जल में स्नान करने वाले प्राणियों को सुख-सम्पत्ति, भोग और ऐश्वर्य के अतिरिक्त मृत्यु के बाद मोक्ष प्राप्त होगा। सूर्य-ग्रहण के समय तुम्हारे पवित्र जल में स्नान करने वालों को पुण्य और सुखों की प्राप्ति होगी। तुम्हारे स्मरण-मात्र से ही प्राणियों के समस्त दुखों और कष्टों का अंत हो जाएगा।”

यह सुनकर गंगा हाथ जोड़कर बोलीं-“प्रभु! आपकी आज्ञा मुझे स्वीकार है। किंतु मुझे पृथ्वीलोक पर कितने वर्षों तक रहना होगा? स्नान करके पापीजन अपने पाप मुझे दे देंगे। ऐसी स्थिति में मेरे उन पापों का नाश किस प्रकार होगा? दयानिधान! आप सर्वज्ञ हैं। भूत, वर्तमान और भविष्य के ज्ञाता हैं। संसार की कोई बात आप से छिपी नहीं है। इसलिए मेरी इन शंकाओं का समाधान करें?”

भगवान विष्णु बोले-“हे गंगे! तुम नदी-रूप में पृथ्वीलोक पर रहोगी। मेरे अंशस्वरूप समुद्र तम्हारे पति होंगे। सभी नदियों में तुम सबसे श्रेष्ठ, सौभाग्यवती और पुण्यदायी होगी। हे देवी! कलियुग के पाँच हजार वर्षों तक तुम्हें भू-लोक में रहना पड़ेगा। सभी प्राणी देवी के रूप में तुम्हारी पूजा-अर्चना और स्तुति करेंगे। जो भी मनुष्य भक्तिपूर्वक तुम्हारी स्तुति-वंदना करेगा, उसे अश्वमेध यज्ञ के समान फल प्राप्त होगा। गंगा शब्द का निरंतर जाप करने वाले भक्तों के पूर्वजन्मों के भी समस्त पाप नष्ट हो जाएँगे और मृत्यु के बाद वे मेरे परमधाम वैकुण्ठ को प्राप्त करेंगे।”

जब भगवान विष्णु ने गंगा की सभी शंकाओं पर समाप्त कर दिया, तब वे भागीरथ से बोलीं-“राजन! भगवान विष्णु की आज्ञा और आपके कठोर तप के फलस्वरूप मैं आपके साथ पृथ्वी पर चलने को तैयार हूँ। किंतु राजन! जब मैं स्वर्ग से धरातल पर आऊँगी, तो मेरा वेग बहुत तेज़ होगा। मेरे तीव्र वेग से पृथ्वी पाताल में पहुँच जाएगी। इसलिए राजन! यदि आप अपनी मनोकामना पूर्ण करना चाहते हैं तो पहले इस समस्या का समाधान करें।”

गंगा की बात सुनकर भागीरथ ने भगवान विष्णु से इसका समाधान करने की प्रार्थना की। तब भगवान विष्णु शिवजी से बोले-“महादेव! भागीरथ  की इस समस्या का उपाय केवल आप ही कर सकते हैं। तीव्र वेग से धरातल पर उतरती गंगा का आप अपनी विशाल जटाओं में बाँध लें। इससे गंगा का वेग कम हो जाएगा और पृथ्वी पाताल में धँसने से बच जाएगी।”

शिवजी इसके लिए सहर्ष तैयार हो गए। तब गंगा देवी ने भगवान विष्णु को प्रणाम किया और नदी के रूप में धरातल की ओर चल पड़ीं। धरातल की ओर जाते समय उनकी गति अत्यंत तेज़ हो गई। ऐसा प्रतीत होने लगा, मानो प्रलयकाल आ गया हो। मेघ भीषण गर्जन करने लगे। गंगा के वेग को देखकर पृथ्वी काँप उठी।

तभी भगवान  विष्णु की प्रेरणा से शिवजी गंगा के मार्ग में आ गए और वे पूर्ण वेग से शिवजी की जटाओं में समा गईं। तब भगवान  शिव ने अपनी जटा की एक लट खोलकर उनकी एक जलधारा पृथ्वी की ओर छोड़ दी। गंगा बड़ी धीमी गति से धरातल पर गिरने लगीं। इस प्रकार गंगा का आवेग कम हो जाने के कारण पृथ्वी पाताल लोक में धँसने से बच गई।

गंगा के धरातल पर पहुँचते ही राजा भागीरथ  उनकी स्तुति करते हुए बोले-“हे परम कल्याणी देवी गंगा! पापियों के पाप धोने वाली पुण्यमयी देवी! आपको मेरा कोटि-कोटि नमन। माते! आपकी कृपा से संतानहीन को संतान की प्राप्ति हो। बंधन में पड़े हुए व्यक्ति के सभी बंधन कट जाएँ। पापियों के पाप, पुण्यों में बदल जाएँ। ये वर दें।”

इस प्रकार स्तुति-वंदना करते हुए भागीरथ  गंगा को लेकर उस स्थान पर पहुँचे, जहाँ उनके पूर्वज कपिल मुनि की क्रोधाग्नि से जलकर भस्म हो गए थे। पवित्र गंगा का स्पर्श पाते ही वे सभी मुक्त होकर वैकुण्ठ लोक चले गए।

इस प्रकार परम पावन गंगा का पृथ्वी पर आगमन हुआ। राजा भागीरथ  के प्रयत्न से ही पुण्यमयी गंगा पृथ्वी पर आ सकी थीं, इसलिए उन्हें ‘भगीरथी’ भी कहा जाने लगा

              *🌹जय जय श्री राधे गोविंद 🌹*

                         प्रस्तुति
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
          प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
   अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
      ८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७

एक लघु कथा, "उम्मीद"

एक सुंदर कहानी

एक घर में *पांच दिए* जल रहे थे *..*.

एक दिन पहले एक *दिए* ने कहा *..*.

इतना जलकर भी *मेरी रोशनी की* लोंगो को *कोई कदर* नहीं है *..*.

*तो बेहतर यही होगा कि मैं बुझ जाऊं*

वह *दिया* खुद को व्यर्थ समझ कर बुझ गया *..*.

जानते है वह *दिया* कौन था?

वह दिया था *उत्साह* का प्रतीक *..*.

यह देख दूसरा *दिया* जो *शांति* का प्रतीक था, कहने लगा-

*मुझे भी बुझ जाना चाहिए*

निरंतर *शांति की रोशनी* देने के बावजूद भी *लोग हिंसा कर* रहे हैं *..*.

और *शांति* का *दिया* बुझ गया *..*.

*उत्साह* और *शांति* के *दिएं* के बुझने के बाद, जो तीसरा *दिया हिम्मत* का था, वह भी अपनी *हिम्मत* खो बैठा और बुझ गया *..*.

*उत्साह*, *शांति* और अब *हिम्मत* के न रहने पर चौथे *दिए* ने बुझना ही उचित समझा *..*.

चौथा *दिया समृद्धि* का प्रतीक था *..*.

सभी दिए बुझने के बाद केवल पांचवां *दिया* *अकेला ही जल* रहा था *..*.

हालांकि पांचवां *दिया* सबसे छोटा था मगर फिर भी वह *निरंतर जल रहा* था *..*.

तब उस घर में एक *लड़के* ने प्रवेश किया *..*.

उसने देखा कि उस घर में सिर्फ एक ही *दिया* जल रहा है *..*.

*वह खुशी से झूम उठा*

चार *दिए* बुझने की वजह से वह दु:खी नहीं हुआ बल्कि खुश हुआ *..*.

यह सोचकर कि *कम से कम* एक *दिया* तो जल रहा है *..*.

उसने तुरन्त पांचवां *दिया* उठाया और बाकी के चार *दिए* फिर से जला दिए *..*.

जानते है वह *पांचवां अनोखा दिया* कौन सा था?

वह था *उम्मीद* का दिया *..*.

इसलिए *अपने घर में* अपने *मन में* हमेशा *उम्मीद का दिया* जलाएं रखिये *..*.

चाहे *सब दिए बुझ जाए* लेकिन *उम्मीद* का *दिया* नहीं बुझना चाहिए *..*.

ये एक ही दिया *काफी* है बाकी सब *दियों* को जलाने के लिए *..*.!!
🕉🐚⚔🚩🌞🇮🇳⚔🌷🙏🏻

                    आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
          प्रदेश संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता
   अंतरराष्ट्रीय युवा हिंदू वाहिनी छत्तीसगढ़
      ८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७

न्यू २

प्रति मां. मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल जी रायपुर , छत्तीसगढ़ शासन विषय : आर्थिक सहायता,आवास, तथा आवासीय पट्टा दिलाने बाबत् आदरणीय महोदय,   ...