Friday, September 21, 2018

ए चीन सुन और पाकिस्तान

ए चीन सुन और पाकिस्तान से भी जा करके कह देना।

भारत ने अब दिए छोड़,हजार जुल्मों सितम  सह लेना।।

गर बार कभी अब सीमा पर, आतंक के हथियार दिखे।

दोनों को साथ जला कर,राख में मिला न दी तो कह लेना।।


दिन हुए बहुत हैं जो शौर्य  के,वो भी तुमको दिखला देंगे।

प्रीत रखोगे हमसे तो हम तुमको, मोहब्बत सिखला देंगे।।

भाई भाई में मजहब की,लड़ाई,गर तुम करने की सोचोगे।

परशुराम सा भड़क उठे जो,क्षण में मिट्टी में भी मिला देंगे।।


हममें राम सी मर्यादा है,तुम मोहम्मद गौरी सा भड़कीले हो।

हममें कृष्ण सा प्रेम भरा, और तुम बाणासुर से सर्पीले हो।।

भूल बैठे हो शायद इतिहास हमारा, महाभारत सी गाथा है।

जब ब्रह्मास्त्र चल गया कहीं,ना बचोगे चाहे कवच नुकीले हो।।

                  ©✍पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी✍®
                             मुंगेली - छत्तीसगढ़
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                              ८१२००३२८३४

छत्तीसगढ़ में किसान रोवत हे

धान के कटोरा कहईया ,छत्तीसगढ़ में किसान रोवत हे ।
कोचिया मन के भला करत हे, कमईया हर इँहा रोवत हे ।।

किसान के रंग पिऊंरा पड़गे,नेता मन के रंग गुलाबी।
कोठार हर सुन्ना होगे अऊ,देख नेता मन के हरियाली।।

मंडी में बनिया हर हांसत,खेतिहर के मेहनत रोवत हे।
धान के कटोरा कहईया ,छत्तीसगढ़ में किसान रोवत हे।।१।।

जबले छत्तीसगढ़ अलग होए हे, सरकार न भाए संगी।
कीमत निर्धारण के नीति ,कभू तो रास नही आए संगी।।

कर्जा बाढ़े लदात जावत हे, गांव गली के मान रोवत हे।
धान के कटोरा कहईया ,छत्तीसगढ़ में किसान रोवत हे।।२।।

शहर के बड़े आदमी हांसत हे,देख गांव के छानही ला।
हमेशा मुर्छा खाए जिंहा अब, सरकार छले मान ही ला।।

जलत किसान के लाश ला,देख संगी शमशान रोवत हे।
धान के कटोरा कहईया ,छत्तीसगढ़ में किसान रोवत हे।।३।।

भाषण बाजी सुनत बस होगे, हमन ल तो उन्नीस साल ले।
कोनो अईसे काम नि करिस जे,ऊपर उठाए ए जंजाल ले।।

नेता के  मीठलबरा भाषण में,"खेमेश्वर" उत्थान रोवत हे।
धान के कटोरा कहईया , छत्तीसगढ़  में  किसान रोवत हे।।४।।

           ©✍पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी✍®
                    ओज-व्यंग्य/गीतकार
                      मुंगेली - छत्तीसगढ़
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Thursday, September 20, 2018

मां को समर्पित एक प्रयास

माँ बापू से बिछड़ कर गमगीन हो रहा हूँ ,
यादों में उनकी घायल मैं आज रो रहा हूँ !

अब कौन होगा मुझको वो प्यार दे सके जो ,
बाहों में ले के मुझको वो दुलार दे सके जो !

दिल में जो दर्द है वो अब मैं किसे दिखाऊँ ,
जाने कहां गये वो उनको कहाँ से लाऊँ !

तपिश मेरे बदन की माँ सह नहीं पाती थी ,
जाने वो कौन कौन से देवों को मनाती थी !

मेरे लिये न जाने कितनी ही नींदें खोयी ,
मेरी तड़प पे जाने वो कितनी बार रोयी !

अब याद आ रहा है बचपन मेरा सुहाना ,
माँ के ही हाथों खाना दे थपकियाँ सुलाना !

रोता था जब भी , मुझको गा लोरियां सुलाती ,
सोकर के पास मेरे सीने से वो लगाती !

गर्मी में रात भर वो पंखा मुझे झुलाना ,
सुबहा को नींद में ही रोटी दही खिलाना !

घुटनों के बल चला फिर उंगली पकड़ चलाया ,
हर इक बला से मुझको माँ ने सदा बचाया !

बारिश में भीगने से वो मुझको रोकती थी ,
सोहबत खराब होने से मुझको टोकती थी !

माँ का वो प्यार इतना मुझे याद आ रहा है ,
दरिया सा आँसुओं  का बहता ही जा रहा है !

माँ  ही  जमीं  थी  मेरी  बापू  जी आसमां थे ,
भगवान, गॉड , ईश्वर  वो  ही  मेरे खुदा थे !

दोनो  चले  गये अब  एकाकी  रह रहा  हूँ ,
यादें  ही   रह. गयी  हैं  बस  उनमें बह रहा हूँ !

एक बार काश मुझको माँ मेरी  मिल ही जाये ,
बाहों मे भर के मुझको सीने से तो वो  लगाये !

           ©✍पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी✍®
                     मुंगेली - छत्तीसगढ़
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‎ ‏जब तक इस धरती पर पैदा,फिर सॆ आज़ाद नहीं हॊगा ॥

सूरज कॆ वंदन सॆ पहलॆ,धरती का वंदन करता था,
इसकी पावन धूल उठा,माथॆ पर चन्दन धरता था,
भारत की गौरव गाथा का,ही गुण-गायन करता था,
आज़ादी की रामायण का,नित पारायण करता था,

संपूर्ण क्रांन्ति का भारत मॆं,सच्चा जन नाद नहीं हॊगा ॥
जब तक इस धरती पर पैदा,फिर सॆ आज़ाद नहीं हॊगा ॥१॥

भारत माँ का सच्चा बॆटा,आज़ादी का पूत बना,
उग्र-क्रान्ति की सॆना का वह,संकट मॊचक दूत बना,
आज़ादी की खातिर जन्मा,आज़ादी मॆं जिया मरा,
गॊली की बौछारॊं सॆ वह,बब्बर शॆर न कभी डरा,

कपटी कालॆ अंग्रॆजॊं का खत्म,कुटिल उन्माद नहीं हॊगा ॥
जब तक इस धरती पर पैदा,फिर सॆ आज़ाद नहीं हॊगा ॥२॥

सॊनॆ की चिड़िया कॊ गोरे,खुलॆ आम थे लूट रहॆ,
इसी सिंह के गर्जन सॆ थे,उनकॆ छक्कॆ छूट रहॆ,
उस मतवालॆ की सांसॊं मॆं,आज़ादी थी आज़ादी,
हर बूँद रक्त की थी जिसकी,आज़ादी की उन्मादी,

भारत की सीमाऒं पर कॊई,निर्णायक संवाद नहीं हॊगा ॥
जब तक इस धरती पर पैदा,फिर सॆ आज़ाद नहीं हॊगा ॥३॥

अधिकारॊं की खातिर मरना,सिखा गया वह बलिदानी,
स्वाभिमान की रक्षा मॆं दॆनी पड़ती है कुर्वानी,
मुक्त-हृदय सॆ हम सब उसका,आओ अभिनंदन कर लॆं,
भारत माँ कॆ उस बॆटॆ कॊ,हम शत-शत वन्दन कर लॆं,

यह राष्ट्र-तिरंगा भारत का,तब तक आबाद नहीं हॊगा ॥
जब तक इस धरती पर पैदा,फिर सॆ आज़ाद नहीं हॊगा ॥४॥

          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

मेरा ए संदेश पहुंचा देना

आतंक के जनकों को मेरा ए संदेश पहुंचा देना
बात समझ न आए तो तीरछी बात समझा देना।

भेद नहीं है सीमा में, हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई मे
यहां मोहब्बत हर  कोने में, मिले हैं  भाई भाई में।

वामपंथी दक्षिण पंथी, पंडित चाहते हैं भोग जहां
राजनीति होती धर्म की,वोट बैंक का है रोग यहां।

इनको तो हम बदल ही लेंगे तुम अपना विचार करो
तुम्हारे नापाक इरादों को, बदल के हमसे प्यार करो।

बाप को बेटा,बहन मां को भी, तुमने अपने ही मारे हैं
बेमतलब रक्त नदी बहाते ,ऐसे तो  इतिहास तुम्हारे हैं।

छोटी सोंच बड़ी साज़िश,कर तंग करे हो कश्मीर
तत्काल पहुंचाएंगे जन्नत, बदल रख देंगे तकदीर।

आजादी से लेकर,धुर्तो , अनगिनत बार हो मिट चुके
जब जब आंख दिखाई हे, बारंबार हो तुम  पिट चुके।

हमारी मोहब्बत मजहब के बीच,कभी तोड़ न पाओगे
सिंधु सतलज ब्रह्मपुत्र की,की धारा को मोड़ न पाओगे।

इतिहास अपना अब भुल ,आओ हम से  प्यार करो
आतंक छोड़ नये  मोहब्बत, रिश्ते का इजहार करो।

मानलो तुम बात हमारी, समय तुम्हें देते हैं अब भी
पाक कोई था कहेंगे वर्ना, इतिहास  पढ़ेंगे  जब भी।

ऐसे अस्त्र चला देंगे कि,दुनिया से नामों निशान मिटा देंगे
अबकी कश्मीर पे दिखा कोई, पुरा पाकिस्तान मिटा देंगे।

              ©✍पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी✍®
                       ओज-व्यंग्य/गीतकार
                         मुंगेली - छत्तीसगढ़
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Wednesday, September 19, 2018

कुर्सी के खातिर

बेच के रख दे हे भगवान,ए ईमान कुर्सी के खातिर
आदमी तो हो गिस अब, बेईमान  कुर्सी के खातिर!

दोस्ती अऊ गांव के रिश्ता भुला के तो ओ चल दिस
रजधानी चल दिस अब ओ अंजान,कुर्सी के खातिर!

मनखे हर-मनख रहितिस,तभो काफी रहिसे मनखे
मनखे ले अब इन होवथे तो, हैवान कुर्सी के खातिर!

सहजन के भरोसा तोड़े, अपन मन के करे बदनाम
जाके शहर में भूला गिस,हे इन्शान कुर्सी के खातिर !

गंवा डरे जज्बात जम्माे अऊ शपथ घलो स्वाहा होगे
पहिन के टोपी वो होगिस, दलवान  कुर्सी के खातिर!

बन के नेता चढ़ के कुर्सी, जनहित करे तैं सत्यानाश
बीजा-चारा-खातू-खेत,अऊ खदान कुर्सी के खातिर!

बेटी लूटथे अंधियारी मा,चाहे बाढ़ में बह जाए दुवार
खोजत रहिथे बेशर्मी उँहो, मतदान कुर्सी  के खातिर!

कोनो धरे हे तीन रंग,कोनो दू रंग ले बन बईठे सियार
अब मनखेच् खाथे  मनखे के, जान कुर्सी के खातिर!

ऐश तो करथे इन मन देश में,पीढ़ी बसथे विदेश जाए
सैनिक,नारी, नि छोड़य तो, किसान  कुर्सी के खातिर!

रेडियो, टीवी अऊ अखबार,भष्ट्राचार बर बोलत रहिन
बन्द कर दीन अब ऊँखरो,इन जुबान कुर्सी के खातिर!

नेता मन हर बांटथे भईया,हरा आऊ हावे केसरिया रंग
आदि-हरि-पिछड़ा-सवर्ण, मुसलमान कुर्सी के खातिर!

जनता जाए भाड़ मा संगी मजा उड़ाए के  एही हे बेरा
अमृत खुद बर जनता कराए,विषपान कुर्सी के खातिर!

का जरूरत विदेश घूमेके, सारी तीरथ देश में हे भईया
इन फूंकत हें रोटी-कपड़ा अऊ मकान कुर्सी के खातिर!

आगि लागथे मोर दिल ,जहन में आंधी दौड़े हे रात-दिन
अब तो उठ जा ललकार, हिंदुस्तान ....कुर्सी के खातिर!

रोज घररख्खा रंग बदलथे, सांप सही ऐखर जी फुंकार
ड्सथें इन त रोज जनता के अरमान,कुर्सी के खातिर..!

              ©✍पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी✍®
                         मुंगेली - छत्तीसगढ़
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गांव के गुन ला गाबोन

गांव के माटी के रद्दा,बईला गाड़ी मा जाबोन,
बीच में आगर नदिया हे,डोंगहार ला बलाबोन।

छुट्टी पांच दिन के मिलिस, मन उमंग ले भरे,
दशहरा के बाद ही अब हमन स्कूल जाबोन।

खेत अऊ ब्यारा घलो,हुड़दंग  हम  मचाबोन,
लईकुसहा दिन सुघर, कभू भूल नहीं पाबोन।

बड़ मजा आथे अभो, बचपन ला याद करके,
रोथंव चलो फेर,आंसू कहे आंखी नहीं आबोन।

नदी तिर बसे डिंडोरी ,नाव के सुघर मोर गांव,
कल-कल  बोहात नदी मा, खूब हम  नहाबोन।

गांव के  बगीचा में , छीता-बीही के पेड़ सजोर
ऐसो की छुट्टी मा गुरतुर, मीठा फर तो खाबोन।

रेहचुल मा झूलबो, खेलबो गिल्ली-डंडा, भंवरा,
छू-छूवऊल,सगली भतली,ठट्ठा बिहाव रचाबोन।

पिट्ठूल ,अऊ मार पूक, ओ पार वाले संग खेल,
पंचवा अऊ,बांटी-बदा बना रेंधी घलो मताबोन।

शहर के माहोल कभू रास नहीं आईस "खेमेश्वर"
हम सदा तो अपन सुघ्घर गांव के गुन ला गाबोन। 

              ©✍पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी✍®
                         मुंगेली - छत्तीसगढ़
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Monday, September 17, 2018

दसनाम क्या है ?


दसनाम नायक, दसनाम ज्ञानी
दसनाम दाता, दसनाम दानी!

दसनाम है एक अमिट कहानी
दसनाम है सत्यता की वानी!

सकल सृष्टि दसनाम बोले
मेरी दृष्टि दसनाम बोले!

दसनाम राजा सभी हैं भिच्छुक
है सबका हृदय इसी का इच्छुक!

दसनाम पापों को नष्ट कर दे
दसनाम अहं को भ्रष्ट कर दे!

दसनाम प्रतीक एकता  का
दसनाम आनन्द आत्मा का!

दसनाम पूजा की आत्मा है
दसनाम मानव की आस्था है!

न पूछ मुझसे दसनाम क्या है?

दसनाम ही दूत है शान्ति का
जनक यही तो है क्रान्ति का!

दसनाम दाता सहिष्णुता का
दसनाम प्रकाश एकता का!

दसनाम त्रिलोक का है ज्ञाता
दसनाम सागर विनम्रता का!

दसनाम सावन, दसनाम जीवन
दसनाम जल है, दसनाम ही मन!

दसनाम दर्पन, दसनाम उपवन
दसनाम पर है ये प्राण अर्पन!

दसनाम मन्दिर, दसनाम पूजा
दसनाम जैसा कोई न दूजा!

दसनाम जल सा है प्राणदानी
दसनाम नैनों से बहता पानी!

दसनाम जीवित, अजर, अमर है
दसनाम सिंह है, दसनाम नर है!

दसनाम है एक असीम शक्ति
दसनाम है एक अटूट भक्ति!

दसनाम शालीनता का अम्बर
दसनाम सुन्दर, शलभ, मनोहर!

दसनाम मानवता का है योद्धा
अहिंसा की है दसनाम श्रद्धा!

दसनाम हृदय पवित्र कर दे
दसनाम ऊँचा चरित्र कर दे!

दसनाम पर है ये प्राण अर्पित
दसनाम पर आन मान अर्पित!

दसनाम अदभुत्, अमित, उजागर
दसनाम ही है दया का सागर!

दसनाम सुख को अनन्त कर दे
दसनाम दुख का भी अन्त कर दे!

दसनाम दुख का करे निवारण
दसनाम विजयी भवो का कारण!

दसनाम गौरव है भूधरा का
यही विजेता है करबला का!

दसनाम भीतर, दसनाम बाहर
दसनाम पावन, मधुर सरोवर!

दसनाम करूणामयी कथा है
न पूछ मुझसे दसनाम क्या है?

धरम है नौका, दसनाम वाहक
दसनाम ईश्वर का है सहायक!

सुमन सुमन भी दसनाम बोले
गगन गगन भी दसनाम बोले!

दसनाम बुद्धि, दसनाम वृद्धि
दसनाम ही दे रिद्धि सिद्धि!

दसनाम दुर्लभ, सुलभ, सलोना
दसनाम हीरा दसनाम सोना!

दसनाम *"खेमेश्वर"* की ऊर्जा है
न पूछ मुझसे दसनाम क्या है

            रचना -दसनाम पुष्पांजलि          
        ©✍पं.खेमेस्वर पुरी गोस्वामी✍®
                  मुंगेली - छत्तीसगढ़
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Sunday, September 16, 2018

विश्वकर्मा जन्मोत्सव पर

देव विश्वकर्मा पांव लागी तोर, दुनिया के बनईया हरस।
जम्मो झन पर दया तोर,तिहिं तो जग के आधार हरस।।

जाये बनाए बर,चाहे,सजाए बर,सबो तोर  ले ही मिलथे।
तोर दया ले जम्मो पनपथे,,फूल कस दिल में तो खिलथे।।

तैं तो सनातन के देवता,तिथि छोड़,तारिख म तैं हर आथस।
जम्मों के मन मा तोर भक्ति,हर दिन ला तो बड़ महकाथस।।

गणाधिपति लम्बोदर के, संग में तो तैं हर विराजे।
माथ मा चन्दन हाथ हथौड़ा छिनी हां तोला साजे।।

तोरेच आरती गाथें बबा, दुनिया के जम्मो नर नारी।
हरदम बने रथे सुघर अब , बबा नित कृपा तिहारी।।

पूजा के संग करव विनय,नि खण्डित हो कोई काम।
एही बेरा ले जय जोहार हे,बिहना ले सबला प्रणाम।।

©✍पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी✍®
           मुंगेली - छत्तीसगढ़
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Saturday, September 15, 2018

सांबा के जांबाज शेरों को समर्पित

दिन तीन में तेरह आतंकी,हिन्द वीरों ने मार गिराए हैं।
जहां छायी हुई रहती थी,वो आतंक की रात मिटाए हैं।।

आज फिर से उबाल रक्त में,आकर सिंहों ने गुर्राया है।
मां भारती के लिए शपथ फिर,ऐ वादों को निभाया है।।

ना हुआ कोई,न होने वाला,भारत को जो ललकार सके।
होगी हरदम आतंक की कीमत, जैसे भाव भाजी के टके।।

सदा डटे थे डटे रहेंगे,क्षमता न किसी में जो ये बंध रूकें।
सीना चीर के रख देंगे सदा, लाज बस  कि तिरंगा न झूंके।।

शांत है,तो सोया न समझो, कर शिकार रक्त भी चख लेंगे।
गर नजर गलत वतन पे मेरी,आंखे नोच मिटा के रख देंगे।।

अभी समय जाओ सुधर,नही शिशुपाल से अलग धड़ कर देंगे।
गर अब भी बाज न आओगे, हम कराची भी छीन के रख लेंगे।।

          ©✍पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी✍®
                      ओज-व्यंग्य
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Friday, September 14, 2018

हिंदी दिवस पर

हिंदी है आन बान, हिंदी ही शान।
 हिंदी है रूप रंग, हिंदी ही पहचान।।
जग में मधुर भाषा, एक ही महान।
मन और धन ही क्या,जीवन कुर्बान।।
©✍पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी✍®
          मुंगेली - छत्तीसगढ़
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हमसे जलने लगे हैं।

जब से उनके सामने, मुझसे कोई और भी मिलने लगे हैं,
कल तक मानते जो अपने थे वो ही दूरियां बढ़ाने लगे हैं।
लोगों के दिल में, मोहब्बत हमारी जो , कुछ छपने लगे हैं,
बू आ रही है,दूर तलक,क्या,सनम भी हमसे जलने लगे हैं।

©✍पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी✍®
          मुंगेली - छत्तीसगढ़
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Wednesday, September 12, 2018

युद्ध महाभारत करने दो

ए सिंहासन के धर्मराज सुनो अब,
                 एक बार फिर, महाभारत होने दो।
बहुत हुई सहन शीलता सुनो अब,
                सीमा के हथियार न मुर्छा होने दो।

बांध रखे हो  जो सैनिक बंधन में,
                 उनको तो सिंह नाद फिर करने दो।
बहुत हुई शकुनि जैसै कुटनीति,
                  कृष्ण श्री धर्म युद्ध चाल चलने दो।

कर्ण से दानी और  कब तक रहें,
                 शहीदी दर्द, अपनों के न  सहने दो।
कुर्बानी नही अब सरसैय्या जैसी,
                अभिमन्यु से चक्रव्युह को भेदने दो।

भूल बैठें क्या हम बजरंगी ताकत,
                 बन जामवंत हुंकार भरके हममें दो।
घटोत्कच जैसी क्षमता हर एक में,
                 अब युद्ध नतीजा हमको बदलने दो।

रावण का कब तक प्रवचन सुनें,
                 अब अंगद जैसे  हमें भी भीड़ने दो।
लक्ष्मण सा तो अब नहीं सही पर,
                 श्रीराम सा, मर्यादा में ही, लड़ने दो।

बहुत हुई नापाक की काली रातें,
                  आग्नेय अस्त्र से, नदारत करने दो।
खोल दो  बार एक जंजीर  हमारी,
        फिर क्या ......फिर क्या.........
                 सीमा पार युद्ध महाभारत करने दो।।

           ©✍पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी✍®
                       "ओज-व्यंग्य"
                    मुंगेली - छत्तीसगढ़
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Tuesday, September 11, 2018

भारत बन्द पर निबंध

भारत बन्द हमारा राष्ट्रीय त्योहार है।देश के सभी राज्यों में मनाया जाता है।बंगाल,बिहार,उत्तर प्रदेश, केरल,मध्यप्रदेश,राजस्थान,हरियाणा आदि राज्यों में बरसों से पारम्परिक तरीकों से मनाया जाता रहा है।आजकल गुजरात,महाराष्ट्र आदि राज्यों में भी जोर शोर से मनाया जाने लगा है।

जिस तरह होली दीवाली पंडित जी द्वारा पतरा देखके,ईद-मोहर्रम इमाम साहेब द्वारा टेलीस्कोप से चांद देखकर,क्रिसमस जॉर्जियन कलेंडर देखकर,गुरु परब संडे देखकर मनाया जाता है,उसी तरह भारतबन्द का त्योहार नेतागणों द्वारा चुनाव आने का समय देखकर मनाया जाता है।यह लोकतंत्र का धार्मिक उत्सव है।

नेताओं के नवयुवा समर्पित चमचे लोग सुबह-सुबह डंडा लेकर सड़क पर निकलते हैं।सड़क पर टायर जलाकर खुशियां मनाते हैं।गाड़ियों और दुकानों का शीशा फोड़ना,स्कूटर, रिक्शा आदि के टायरों से हवा निकालना आदि भारत बन्द त्योहार के पारंपरिक रीति रिवाज हैं।गाली गलौज मारपीट इस महान पर्व की शोभा में चार चांद लगाते हैं।

भारत बन्द का त्योहार अभिव्यक्ति की आजादी के विजय का प्रतीक है।यह त्योहार इंसान के अंदर के जानवर को आदर के साथ बाहर लाता है। पशुता के प्रहसन के माध्यम से लोकशाही की श्रेष्ठता का जनजागरण होता है।उन्माद और विवाद की पराकाष्ठा पर पहुंचने में संवेग और उदवेग दोनों का सहारा लिया जाता है।

भारत बन्द में नेता लोग सड़कों पर अपनी पारम्परिक भेषभूषा जैसे पजामा कुर्ता और अपनी पार्टी का गमछा पहनकर निकलते हैं।आम चमचे लुंगी,बनियान और गमछी में झंडा-डंडा लेकर ही निकलते हैं।आजकल नवयुवक बरमुडा टी शर्ट में भी निकलने लगे है।हाथ में व्यक्ति से लगभग 6" लम्बा डंडा होना अत्यंत आवश्यक है।फाड़े में कट्टा हो तो सोने पर सुहागा।

चाय,पकोड़े,पेप्सी,कोला और शराब कबाब का इंतजाम सड़क पर ही होता है।पहले भारत बन्द मनाने वाले लोग स्वयं ही इन व्यंजनों का लुत्फ उठाते थे। जब से मीडिया भी इस त्योहार में कलम-कैमरे के साथ हिस्सा लेने लगी है और शक्ति प्रदर्शन की सेल्फी का डिमांड बढ़ा है,बन्द कराते लोग काफी सभ्य होने का प्रदर्शन करने लगे हैं।बंद पीड़ितों को भी चाय नाश्ता दवा-दारू दिया जाता है,एम्बुलेंसों को रास्ता देने का सद्कर्म भी किया जाने लगा है,जिसे पशुता पर मानवता की विजय कह कर छापा और दिखाया जाने लगा है।मानवीय गुणों का यह प्रदर्शन निश्चय ही सराहनीय है।

भारत-बन्द आलसी लोगों के लिए लोकतंत्र का अनमोल वरदान है।सोमवार से लेकर शुक्रवार तक किए जाने वाला बन्द श्रेष्ठतम लोकोपकार का है।स्कूलों कालेजों को बन्द कराने में बाल कल्याण की भावना छुपी है।सोमवार और शुक्रवार का भारतबन्द सबसे पावन बन्द है।मंगलवार से वृहस्पतिवार तक का बन्द मध्यम आनंददायी होता है।रविवार को या शनिवार को आहूत बन्द निकृष्ट कोटि के बन्द की श्रेणी में आता है।

इस भाग दौड़ की तनाव भरी जिंदगी में भारतबन्द का त्यौहार हमें परिवार के साथ वक्त बिताने का सुनहरा अवसर प्रदान करता है।अब तो इंटरनेट के माध्यम से सामाजिक सरोकारों को बढ़ाने का मौका भी मिलता है।कभी-कभी बन्दकर्तागणों के अति उत्साह की वजह से इंटरनेट बन्द हो जाता है,जो निश्चय ही परिहार्य है।

आजकल हर पर्व त्योहार के विरोध का फैशन बन गया है।निश्चय ही कुछ लोग इस भारतबन्द पर्व पर भी ऊँगली उठाएंगे!लोकतंत्र में सबको अपनी बात कहने का अधिकार है।बस इतना ध्यान रखें कि बन्द का विरोध शांतिपूर्ण तरीके से करें।उत्सव में रंग में भंग न डालें!भावनाओं को आहत न करें।पुलिस प्रशासन की जिम्मेदारी है कि बन्द को शांतिपूर्ण तरीके से मनाए जाने में सप्रेम अपना डंडा सहित योगदान दें।आंसू गैस के गोले से लोगों को भावुक होने में मदद करें!आंखों के रास्ते मन का मैल धुलबाने का आजमाया हुआ अंग्रेजी तरीका है।

भारत-बन्द के इस महान पर्व के शुभ अवसर पर हम बन्द के समर्थक और विपक्षी दोनों पक्षों को अपनी हार्दिक शुभकामनाएं समर्पित करते हैं।लोकतंत्र के चौथे खम्भे पर ज्यादा प्रवाह आपके विसर्जन का हो!इसी मंगलकामना के साथ अपने निबंध को बन्ध देता हूँ।

कबीरा खड़ा बजार में, दियो टायर दहकाय।
नेता अपनी रोटियां,सेंक-सेंक कर ले जाय।।

©✍पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी✍®
           मुंगेली - छत्तीसगढ़
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मां. धर्मजीत सिंह जी को जन्मदिन पर समर्पित रचना

Monday, September 10, 2018

तीजा के पीरा

करू भात के करू साग
                   का का ओ तो खात हे।
पानी भराई बर्तन मंजाई
                  मोला तो नहीं भात हे।।

गणेश चौथ के झंझट ऊपर ले
                मंडप सजाय बर दाऊ बलाये हे।
मोर जीव बता बता लेत हे
               मईके म ओखर रंग रंग बनाये हे।।
भईया ले हे झकमकहा लूगरा
               तैं नि लस ,मोरे बर बड़ गुस्साए हे।
संविलियन के पईसा कति डहाथस
               गौकिन मईके जाए ले भरमाए हे।।

का दु:ख बतावं समारू,
                     चार दिन ले नि परे हे बहिरी।
मईके जाके का का खाथे
                      तहान हो जाथे डऊकी बैरी।
               तहान हो जाथे डऊकी बैरी...!

लीपे पोते तो नि आवय मोला
                       आते साठ बड़ खिसियाही।
चुल्हा ल राख  करे  डरे कईह
                        चिमटा धरे के ओ कुदाही।।

तीन साल जुन्ना के सुरता करथों
                         नवा नवा जब आए रिहिस।
पहिली तीजा ले जब लहूट संगी
                         खूरमी - ठेठरी लाए रिहिस।।

पऊर के का गोठियाबे संगी,
                         हकन के खा के आए रिहिस।
आए के खुशी दु पऊवा मारेंव,
                         धर बहिरी मा ठठाए रिहिस।।

चार दिन बर का जाथे मईके,
                         जऊँहर हो  जाथे  मूड़ पीरा।
सबो के हाल अईसनेच संगी,
                        का गोठियांव तीजा के पीरा।।

            ©✍पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी✍®                
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जय जय हो गजानन तोर जय हो प्रभु

जय जय हो गजानन तोर जय हो,प्रभु
            दुनिया ला देखे अपन आए कर कभु।
तोर अगोरा पुरा साल भर तो करथन,
            संग हमर हमेशा रईह जुगाड़ कर प्रभु।।

बस भादो के का दस दिन हे,
                     तोर इँहा आए के निश्चित बेरा।
कतको रोज पूजे तोला इँहा हे,
                     अब तो डार ले सदादिन डेरा।।

पहिली पूजा  हरदम तोरे करथन,
                    तहाँ फेर दूसर देवन ला भजथन।
अब देख हमेशा हमर हे करलाई,
                   प्रभु इँहा हम रोज दु:ख पावथन।।

नौ दिन सेवा तोर  हम  करथन,
                 अऊ तो दसवां दिन बोहवाथन जी।
खुरमी ठेठरी बरा सोहारी के तो,
                  हम पहिली तो भोग लगाथन जी।।

किसिम किसिम के रिंगी चिंगी,
                    लाइट मंडप तोरे तो सजाए हन।
फेर दया घलो तैं देखाये नि बप्पा,
                   जीवन अंधियारी हमन पाए हन।।

संग मा अपन रिद्धि सिद्धि लाथस,
                 ओ शुभ लाभ के बड़ सुंदर कहानी।
कभू काबर ,संग में कान्हा नि लाच,
                  अब दुष्ट के कईसे मिटय कहानी।।

भगत के सुनले तैं अब तो गोहार,
                 ए महिमा तोर बड़ हावे अपरम्पार।
अब आबे ते झैन जाबे हावे पुकार,
                चारों डहर अब तोर हावे जैजैकार।।

                ©✍पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी✍®
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न्यू २

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