यज्ञ, हवन वा अग्निहोत्र सम्बन्धी कुछ प्रश्नोत्तर -
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(१) यज्ञ शब्द का अर्थ क्या है ?
उत्तर- यज्ञ शब्द संस्कृत की यज् धातु से बना है जिसका शाब्दिक अर्थ होता है परोपकार। व्यापक रूप में यज्ञ के तीन अर्थ लिए जाते हैं देवपूजा, संगति करण और दान। देव पूजा का अर्थ होता है देवों की पूजा। देव दिव्य गुणों युक्त होने के कारण कहलाते हैं।पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आयु, आकाश इत्यादि जड़ देव हैं। मुख्यत: यज्ञ से अभिप्राय हवन वा अग्निहोत्र लिया जाता है, इससे परोपकार, देवपूजा, संगति करण व दान सभी सिद्ध होते हैं।
(२) कुछ लोग कहते हैं कि यज्ञ से वायु प्रदूषण होता हैं।
उत्तर- विधिवत तरीके से यज्ञ किया जाए तो कोई वायु प्रदूषण नहीं होता। घी समिधा सामग्री शुद्ध हो, आसपास पेड़ पौधे हों, जल हो, तो जो अल्पमात्रा में कार्बन-डाई-ऑक्साइड बनती है शोषित हो जाती है।
(३) क्या यज्ञ से जीवाणुओं का नाश होता है?
उत्तर:-जी हाँ ,अनेक प्रकार के जीवाणुओं का नाश होता है।
(४) यज्ञ तो पंडितों के पूजा पाठ का विषय है फिर उसका बीमारियों से क्या लेना देना?
उत्तर :- कर्मकांडी व लकीर के फकीर पंडितों ने इसे उदर पूर्ति का माध्यम बना दिया था परन्तु महर्षि दयानन्द ने वैदिक धर्म का गहन अध्ययन करके हवन को यज्ञ विज्ञान व यज्ञ चिकित्सा के रुप में सम्पूर्ण विश्व में स्थापित कर दिया।
(५) यज्ञ से जीवाणुओं का नाश कैसे होगा?
उत्तर:-यज्ञ में चार प्रकार की औषधियों का प्रयोग होता है। रोगनाशक जैसे गुग्गुल, चिरायता, गिलोय, हल्दी, जावित्री आदि। पौष्टिक जैसे काजू, किशमिश,बादाम,अखरोट, दाख , चावल,गेहूँ, तिल आदि। सुगंधित जैसे गुड़,शक्कर,मधु ,सुगंध बाला चंदन, लोंग आदि। आयुवर्धक जैसे गाय का घी, घृतकुमारी, शंखपुष्पी, दूध आदि। ये चारों प्रकार की औषधियां वायुमंडल में जाकर अतिसूक्ष्म कीटाणु जो यंत्रों से भी नहीं दिखते उन्हें नष्ट कर वातावरण को स्वच्छ व पवित्र करती हैं।
(६) इतने उत्तम पदार्थों को आप अग्नि में जलाकर नष्ट कर देते हैं, ये कहां की बुद्धिमानी है?
उत्तर:- अग्नि में डाले गये पदार्थ कभी नष्ट नहीं होते अपितु वो रुपांतरित होकर आकाश, वायु, अग्नि, जल,पृथ्वी में फैल जाते हैं और ओजोन का सुरक्षा चक्र भी तैयार करते हैं। जो भी सामग्री आप अग्नि में डालते हैं वो अधिक सूक्ष्म और शक्ति वाली बनकर आपके चारो ओर घूमती है। जब आप दाल को छोंकते हैं तो हींग की डिब्बी खोलते हैं। कहते हैं हींग की खुशबू बहुत अच्छी है मगर उस खुशबू को आपके अलावा कोई नहीं जानता। मगर जैसे ही कडछी को गरम कर उसमें घी व हींग डालकर गर्म दाल में डालते हैं तो आपके मुहल्ले वाले और आपके अपने घर में बैठे सब जान जाते हैं कि आपकी पाकशाला में दाल छोंकी जा रही है। जैसे गरम दाल में डाली हींग नष्ट नहीं होती अपितु दूर -दूर तक फैल वातावरण को सुगंधित करती है वैसे ही यज्ञ से केवल आपके घर का नहीं अपितु आपके पड़ोसी के घर की वायु भी शुद्ध होती है।
(७) दूध,दही, घी खाने की वस्तु है, महंगी है, रोज जलाना उचित है क्या?
उत्तर- जब आप सौ ग्राम घी अकेले खाते हैं तो वह आपके ही शरीर में कुछ देर बाद मल-मूत्र बनकर निकल जाता है वही सौ ग्राम घी का आप हवन करते हैं तो हजारों मनुष्यों व पशु पक्षियों को मिलता है और पर्यावरण को शुद्ध करता है।
(८) सुना है, गाय के घी से हवन करने पर सब जीवाणुओं का नामोनिशान ही मिट जाता है , क्या ये बात सही है?
उत्तर:-जी हां, एकदम सही है। गाय के घी से हवन करने से चार प्रकार की गैसों का निर्माण होता है। एथिलिन आंक्साइड, प्रापलिन आंक्साइड, फार्मेल्डिहाइड, बीटा प्रापियों लेक्टोन।
जब ये गैसें वायुमंडल में घूमती हैं तब हजारों महामारियों के कृमि नष्ट हो जाते हैं।
(९) आप यज्ञ को यज्ञ विज्ञान व यज्ञ चिकित्सा कैसे कह रहे हैं ?
उत्तर- वैज्ञानिक ट्रिलवर्ट का मानना है कि जलती शक्कर में वायु शुद्ध करने की बहुत बड़ी शक्ति विद्यमान है, इससे चेचक,हैजा,क्षय आदि बीमारियाँ तुरंत नष्ट हो जाती हैं। मुनक्का, किशमिश आदि फलों को जलाकर पता चला कि इनके धुएं से टाईफाईड के कीटाणु एक या दो घण्टे में नष्ट हो जाते हैं। फ्रांस के वैज्ञानिक डा० हैफकिन का मानना है की गाय के घी से हवन करने से चेचक के रोगाणु मर जाते हैं। डां कुंन्दनलाल अग्निहोत्री एम०डी० ने जबलपुर सेनेटोरियम में टी.बी.के रोगियों की यज्ञ के द्वारा चिकित्सा की। उनका कहना है कि गाय के घी से हवन करने पर इस रोग के कीटाणु तीब्र गति से मरते हैं। सुना है पोलैंड में सत्रह स्थानों पर यज्ञ हास्पिटल है जहां दो सौ वैज्ञानिक प्रतिदिन यज्ञ करते हैं।
(१०) क्या यज्ञ न करने से परमात्मा नाराज होकर दण्ड भी देते हैं ?
उत्तर:-आप प्रतिदिन मल-मूत्र त्याग करते हैं, साबुन से कपड़ा धोते हैं, सैम्पू से बाल धोते हैं, साग सब्जियां धोते हैं। इस प्रकार प्रतिदिन एक सामान्य परिवार में २०० से ३०० लीटर पानी गंदा होता है।उसी तरह लोग शराब पीकर,गुटका खाकर,रसोई में अंडे, मांस,पकाकर ,बीड़ी सिगरेट पीकर वायु को गंदा करते हैं। तो इतनी गन्दगी साफ कौन करेगा ? यदि आप प्रतिदिन यज्ञ करेंगे तभी आप इस पाप से बच पायेंगे। उदाहरण से समझें- आपने अपने पड़ौसी से कहा जरा अपना झाड़ू दे दीजिए, कल लौटा देंगे। पड़ौसी कहता है बेशक ले जाईये मगर झाड़ू जिस स्थिति में ले जा रहे हैं वैसे ही लौटा दीजिए। आप ले गये।आपके घर के छोटे बच्चों ने खेल-खेल में उसकी आधी तीलियाँ निकाल कर फेंक दी।अब आप दूसरे दिन झाड़ु लौटाने गये ।जिसका झाड़ू था उसने जब आधा झाड़ु देखा तो नाराज हुआ।ऐसे ही हवा ,पानी आपको परमात्मा ने प्रयोग करने के लिये दिये हैं इन्हें गंदा करने से परमात्मा नाराज होते हैं और दण्ड भी देते हैं।यदि ग़ंदा कुछ हो ही जाता है तो परमात्मा ने आदेश दिया है कि आप यज्ञ करोगे तो जो गंदगी फैला कर जाने अंजाने जो पाप हो जाता है उससे बच जाओगे।
(११) यदि हम हवन नहीं करेंगे तो क्या होगा?
उत्तर:- दो प्रकार की हानि होंगी, महामारियां समय समय पर आती रहेगी और परमात्मा की जेल में जाना होगा।
(१२) परमात्मा की जेल का मतलब क्या है?
उत्तर:-जो जल को गंदा करते हैं मगर हवन से शुद्ध नहीं करते, वे अनुमान है कि अगले जन्म में मछली, कछुआ, दरियाई घोड़ा, मेढक आदि बन कर जल को शुद्ध करेंगे। जो बीडी, सिगरेट, गुटका खाकर व शराब पीकर हवा को गंदा कर रहे हैं वे कबूतर, तोता, कौआ, गिद्ध, बाज आदि बनकर हवा को शुद्ध करेंगे।
(१३) इस प्रकार के दण्ड का कारण वा नियम क्या है ?
उत्तर:-इसका नियम स्पष्ट है,सरल है, जो जैसा बीज बोता है वैसी ही फसल काटता है। इसी प्रकार अच्छे कर्म का अच्छा फल और बुरे कर्म का बुरा फल इस जन्म या अगले जन्म में मिलता ही है।
(१४) आज के युग में यज्ञ के लिए इतना समय व धन निकालना बहुत कठिन दिखाई पड़ता है।
उत्तर:- मात्र बीस मिनट मे यज्ञ हो जाता हैं और पूरे दिन के लिए आपका घर सुरक्षित हो जाता है। आज सामान्य घर में भी प्रतिमाह लोगों के दो तीन हजार रुपए दवा में खर्च हो जाते हैं फिर भी बीमारी खत्म होने का नाम नहीं लेती। यही दो तीन हजार हर माह यज्ञ पर खर्च हो तो अनेक लोगों से बचा जा सकता है, घर का वातावरण शुद्ध सात्त्विक सुगन्धित रहता है और पूरा परिवार रोगों व विकारों से बचा रहता है।
(१५) इतने मंत्र याद करने बहुत कठिन है, क्या यज्ञ करने की कोई सरल विधि नहीं है ?
उत्तर- कुछ दिनों के अभ्यास से सब मंत्र याद हो जाते हैं। आप केवल गायत्री मंत्र से भी आहुतियां दें सकते हैं। यज्ञ करने की सरलतम विधि- तांबें या लोहे का हवन कुण्ड लें,उसमें कुछ आम की लकडी के टुकडों द्वारा अग्नि प्रज्जवलित करें और गायत्री मंत्र बोल कर शुद्ध सामग्री व शुद्ध घी दस बीस मिन्ट तक आहूतियां डालें। हवन कुण्ड न हो तो किसी अन्य पात्र या रेत की ढेरी पर भी अग्नि प्रज्जवलित कर सकते हैं। किसी कारण इतनी भी व्यवस्था न हो सके तो लौरहित यज्ञ कर लें, इसके लिए किसी लोहे या तांबे के पात्र में दो मुट्ठी सामग्री व एक कडछी शुद्ध घी मिला कर चूल्हे या गैस की धीमी आंच पर रख कर दस बीस मिण्ट तक मन ही मन या बोल कर गायत्री मंत्र का जप कर सकते हैं।
(१६) यज्ञ के महत्त्व पर कोई वैज्ञानिक व वेदादि शास्त्रों के प्रमाण भी हैं?
उत्तर- यजुर्वेद में आया है 'यज्ञों वै श्रेष्ठतमम् कर्म', यज्ञों वै विष्णु- अर्थात यज्ञ सब कर्मों से श्रेष्ठ कर्म है, यज्ञ करने से मनुष्य का यश चहुँ ओर फैलता है। जुहोत प्र च तिष्ठत ( ऋग्वेद १\१५\९ ) ईश्वर आज्ञा है कि तुम यज्ञ करो और प्रगति करो।" प्र यज्ञमन्सा वृजनं तिराते ( ऋग्वेद ७\६१\४)अर्थात् यज्ञ की ओर प्रवृत्ति परिवार को दु :खों से पार लगाती है। यज्ञो हि त इन्द्र वर्धन: ( ऋग्वेद ३\३२\१२ ) अर्थात् यज्ञ ही वृद्धि और सम्पन्नता का सूचक हैं। अथर्ववेद में कहा है यज्ञ से उत्तम गति होती है परन्तु यज्ञ न करने वाले का तेज नष्ट हो जाता है। सामवेद के 114 मत्रों में स्थान-स्थान पर यज्ञ का वर्णन है। वैज्ञानिक प्रमाण हों या न हों परन्तु वेदादिक शास्त्रों के शब्द प्रमाण अधिक महत्वपूर्ण हैं।
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"पं.खेमेश्वरपुरी गोस्वामी"
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