Thursday, April 30, 2020

है सफर लम्बा चलकर जाना पड़ता है!

है सफर लम्बा चलकर जाना पड़ता है!
रस्म ए उल्फत जब सजाना पड़ता  है।

हर पहर हर डगर ढलकर दुनियां का यूँ!
दिल की हसरत बेसबब जगाना पड़ता है।

जिस कदर ढले शाम फिर सुबह आती जाये!
यूँ कुछ पल ही मगर गम भुलाना पड़ता है।

कितनी चाहत है दिल में किस कदर हम कहें!
चुपके छुपके हमसफर जताना पड़ता है।

गर प्यार हमारा हांसिल हो जाये फिर भी!
मिलकर वादे को अक्सर निभाना पड़ता है।

है सफर लम्बा चलकर जाना पड़ता है!
रस्म ए उल्फत जब सजाना पड़ता  है।

          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

Wednesday, April 29, 2020

आप गीत के बोल बोल दें,और लिखूँ मैं गीत।


आप गीत के बोल बोल दें,और लिखूँ मैं गीत, 
मेरे भारत में जागे फिर,गहन परस्पर प्रीत।

मुस्लिम आतंकी जन आये,लूटे पूरा देश,
त्रस्त हो गया अपना भारत,अब तक भारी क्लेश।
तोड़े मंदिर मस्जिद लाये,बैठाये दरवेश,
शाँति हो गयी भंग हमारी, बची न किंचित लेश।
अब तक इनसे पूरा भारत,दीख रहा भयभीत, 
आप गीत के बोल बोल दें,और लिखूँ मैं गीत।

गोरे बड़े सयाने आये,करने को व्यापार,
जलियाँवाला बाग न भूले,इतना अत्याचार।
अपना ही यह देश निरंतर, बनता कारागार,
बड़े छुपे रुस्तम ये निकले,छीन लिए आधार।
हुआ काल के गाल हमारा,स्वर्णिम रहा अतीत, 
आप गीत के बोल बोल दें,और लिखूँ मैं गीत।

आजाद-भगत-गाँधी को मारे,इन दोनों की चाल,
गर्वोन्नत फिर कहाँ रह गया,झुका हुआ यह भाल।
बोल तुगलकी बर्छी जैसे,लागे कठिन कराल,
कलम गीत लिख कर आवाहन,करती मेरे लाल।
इधर-उधर से हाथ बढ़ायें,टूटे उर की भीत,
आप गीत के बोल बोल दें,और लिखूँ मैं गीत।

तीस कोटि हिंदू को बंधक,क्यों रखे इस्लाम,
हमको बाँटे दो विभक्ति में, साधे अपना काम।
राम कृष्ण के हम सब वंशज,सकल हमारे धाम,
किसने यह दीवार बनाई,सोच सुबह अब शाम।
जो पहले जागेगा भाई,उसकी होगी जीत,
आप गीत के बोल बोल दें,और लिखूँ मैं गीत।

नहीं स्वार्थ के अंधे बनना,एक शर्त है भ्रात,
जिसको अपना कहना उससे,कभी न करना घात।
उर की प्रीत भरी सरिता हो,रहे सदा उमड़ात,
करे सुनिश्चित जीत देश की,बस इतनी सी बात।
खेमेश्वर कुछ गैर यहाँ पर,शेष हमारे मीत, 
आप गीत के बोल बोल दें,और लिखूँ मैं गीत।

         ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
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Tuesday, April 28, 2020

छोड़कर साथ मेरा कहां ढल दीए

आप आये अभी और फिर चल दिए!
छोड़कर  साथ  मेरा  कहां  ढल दीए।

वक़्त गुजरते गये हम बिछड़ते चले!
समझ पाये न हम किस कदर हल दिए।

क्यूं सदा हर घड़ी याद आते रहे!
ख्वाब दिलने सजाया खुशी पल दिए!

प्यार है के इसे गम कहूँ हमसफर!
जान जाते मगर आप ही छल दिए।

ठहर कर दो घड़ी मशवरा कीजिये!
इश्क़ जताये बिना दिलवर निकल दिए।

आप आये अभी और फिर चल दिए!
छोड़कर  साथ  मेरा  कहां  ढल दीए।

         ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
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Monday, April 27, 2020

वो सारी बस्ती जला रहा है ।

वो    सारी   बस्ती   जला  रहा  है ।
पर   अपना  दामन  बचा   रहा है।।

नहीं    बचेगी   किसी  की   हस्ती ।
बिसात    ऐसी    बिछा   रहा   है ।।

वो घोल कर दिल में सबके नफ़रत।
जहां   से  उल्फ़त   मिटा  रहा  है।।

वो  दोष  औरों  के  सर  पे मढ़कर।
बेदाग़   ख़ुद   को   दिखा  रहा  है।।

ये  किसको  है   रोशनी  से नफ़रत।
ये    कौन   दीये    बुझा   रहा   है।।

'खेमेश्वर '   कैसे   बचेगी    उल्फ़त ? 
मुझे   ये   ही   ग़म   सता   रहा  है !।

          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
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इश्क़ दिलों में वफ़ा भी जताते रहे।

गर सदा रस्म उल्फत का निभाते रहे!
इश्क़  दिलों  में  वफ़ा भी जताते रहे।

इस  कदर  हम मिलें के हुए ना जुदा!
सांस बनकर रूहों को जगाते रहे।

कर गये हम ख़ता के वफ़ा कर गये!
ताउम्र हसरतों को सुलझाते रहे।

बांधकर हम चलें डोर मन का सदा!
हर सफर फिर कटे गम भुलाते रहे।

मुहब्बतें भी गुलों का चमन सी लगे!
हमनवा गर दिलों को मिलाते रहे।

गर सदा रस्म उल्फत का निभाते रहे!
इश्क़  दिलों  में  वफ़ा भी जताते रहे।

          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
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Saturday, April 25, 2020

तब होगा अपना देश महान अपना ये देश प्यारा हिंदुस्तान

आया आया ये पवित्र महीना सुनलो भाइयों मुसलमान
लाकडाउन का पालन हिन्दू करे,तुम रखों रोजा श्रीमान

घर घर पहुंचेगा गोश्त ओर फल फ्रूट तुम्हारी सेवा में यूँ
हर सरकारी आदमी होगा नोकर तुम मालिक मेरी जान

उड़ा लेना जितनी उड़ा सकते हो धज्जियाँ नियमो की
होना इक्कठे नमाज को मस्जिदों से आये जब आजान

न हो मुश्किलें कोई रोजा रखने में तुमको ये समझ लो
हर ख्वाईश पूरी करेगी ये सरकार तुम पे सिर्फ़ मेहरबान

हमारी होली गई हमारा नवरात्रि बीत गई तो क्या हुआ
हमारी संस्कृति को आग लगे भाड़ में जाये ये हिंदुस्तान

राम नवमी,महावीर जयंती हम सब भुल से गये यहाँ पर
परशुरामजी बाल्मीकी का कौन रखना चाहता यहाँ ध्यान

बस इतना समझ आया हमको अर्णव गोस्वामी की बात से
जो नेताओ के ख़िलाफ़ बोले मार डालो उसको लेलो प्राण

कहता कवि हूं खेमेश्वर मुंगेली से क़लम  तोड़  डालूं मैँ
क्या देश जगाना अपना जब सोया हिन्दू छोड़ वेद पुराण

इससे अच्छा तो मुस्लिम पैदा हो जाते हम भी गर्व होता है
गद्दारी नहीं करते धर्म से अपनी वो चाहें ले किसी की जान

गीता कुरान वेद पुराण सब फाड़ डालो मोदी जी सुन लो
धर्म की राजनीति त्याग कर लागू कर दो बस ये सँविधान

बस अब राजधर्म को सर्वप्रिय कर दो फिर प्यारे मोदी तुम
तब होगा अपना देश महान अपना ये देश प्यारा हिंदुस्तान

          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
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मुस्कुराते रहे वो बिना बात पर।

मुस्कुराते   रहे    वो    बिना   बात    पर।
दिल   को  थामे  रहे  हम मुलाकात पर।।

तिरछी  नज़रों  से  घायल वो  करते  रहे।
तरस    खाए   बिना   मेरे   हालात  पर।।

है  नज़र  आ   रहे  हर  तरफ  वो  ही वो।
छा    गए    ऐसे    मेरे    ख्यालात   पर।।

हर   धङकन   उन्हीं   को  पुकारा   करे।
वो असर कर गए दिल  के जज़्बात पर।।

यूं   दीवाना  बनाकर   के  वो  चल दिए ।
क्या  कहूं  दिल की  ऐसी खुराफात पर।।

          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
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Friday, April 24, 2020

आज गलियां सब हैं खाली मौन हर संवाद है ।

आज गलियां सब हैं खाली मौन ,,,,,,,,,,,,,,,,!!!

आज गलियां सब हैं खाली मौन हर संवाद है ।
सब  सिमटे  सिमटे से हैं कहां वाद विवाद है ।
आज गलियां सब हैं खाली मौन ,,,,,,,,,,,,,,,,!!!

ऐसा ही होता जब छलना अनजानी आती है ।
निराशा आती तब आशा जलती सी जाती है ।
किधर मौन  हो हैं  जाते वे बजते गीत सुहाने ।
खोजने पे   भी नजर नहीं आते वे यार पुराने ।
हम भी हैं  सामिल नहीं कहीं हम अपवाद हैं ।
आज गलियां सब हैं खाली मौन ,,,,,,,,,,,,,,,,!!!

इक अनजानी  अनचाही  रिक्त्तता ने घेरा है ।
इस चार दिन की जिंदगी में क्या तेरा मेरा है ।
करते हैं  कहीं पे गुजर कुछ दिन का फेरा है ।
धुंधला धुंधला सा कैसा चित्र उसने उकेरा है ।
मंदिरों के पट हैं बंद नहीं  वहां प्रणव नाद हैं ।
आज गलियां सब हैं खाली मौन ,,,,,,,,,,,,,,,,!!!

उजियारे  का  चांद गगन  में चढ़ के रोता है ।
छोंड़  के  हमें भाग्य भरोसे वह भी सोता है ।
अंधियारे  से  डर  जाने किधर उजियारा है ।
कैसा दौर दुनिया का  हर ओर अंधियारा है ।
सब हैं मौन से  अनजाना  कोई अवसाद है ।
आज गलियां सब हैं खाली मौन ,,,,,,,,,,,,,!!!

इच्छाएं   पर आज  बंदिसें  कोई अज्ञात है ।
जानें किधर खोए सब प्रख्यात विख्यात हैं ।
हो गई भोर बिना आभा के दुखी प्रभात है ।
शोर थम  गए  जो दिखता है वह प्रलाप है ।
सबके  दिलो  में छाया अनजाना संताप है ।
आज गलियां सब हैं खाली मौन ,,,,,,,,,,,,!!!

         ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
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एक बार इस धरती पर फिर,हे परसुराम आ जाओ

कृन्दन करतीं आज दिशायें,भरे पाप के घट देखो,
डरे हुए हैं गली बगीचे,आतंकित पनघट देखो,
मानवता के मूल्य गिरे हैं,दानवता के भाव बढ़े,
राष्ट्र भक्ति की छोड़ किताबें,युवा फेसबुक आज पढ़े,
परिधान बदलते हैं ऐसे,जैसे मौसम बदल रहे,
घात लगाए अंधकार में,कई भेड़िये टहल रहे,
मासूम बच्चियों को भी अब,नहीं छोड़ते दानव हैं,
वहसी दैत्य नराधम केवल,कहनें को ही मानव हैं,

करबद्ध निवेदन करता हूँ,सब सन्ताप मिटा जाओ ।।
एक बार इस धरती पर फिर,हे परसुराम आ जाओ ।।(1)

इक्कीस बार इस धरती को,मुक्ति दिलाई पापों से,
एक बार फिर राष्ट्र बचालो,कलयुग के इन साँपों से,
हर ओर दिखाई देता है,नंगा नर्तन हिंसा का,
बापू नें कर दिया नपुंसक,देकर सबक अहिंसा का,
जातिवाद की ज्वाला सबको,धीरे धीरे निगल रही,
तू तेरा मैं मेरा में ही,कुण्ठा करवट बदल रही,
ऐसी आँधी चली देश में,संस्कृति के वट उखड़ रहे,
अनाचार की ज्वाला में वन,सदाचार के उजड़ रहे,

भारत भू पर सदाचार का,फिर से वृक्ष लगा जाओ ।।(2)
एक बार इस धरती पर फिर,हे,,,,,,,,

किलप रहीं हैं कितनी गायें,कटती बूचड़खानें में,
भर खर्राटे रक्षक सोते,पाँव पसारे थानें में,
विप्र धेनु सुर सन्त हेतु ही,मनुज रूप हरि नें धारे,
जब जब दैत्य बढ़े धरती पर,एक एक कर सब मारे,
नहीं सुरक्षित आज द्रोपदी,नहीं सुरक्षित सीता है,
संकट में गौ गंगा नारी,संकट में अब गीता है,
आज हिन्द में पुनः चतुर्दिक,सहसबाहु की फौज खड़ी,
एक बार फिर परसुराम की,राह निहारे क्रन्द घड़ी,

भारत की इस धर्म भूमि पर,धर्म ध्वजा फहरा जाओ ।।(3)
एक बार इस धरती पर फिर,हे,,,,,,,,

काट न पाया कोई अब तक,आतंकवाद की चोटी,
गरम तवे पर सेंक रहे हैं,अपनी अपनी सब रोटी,
नरसंहार मचा चौतरफा,सेना पर पत्थरबाज़ी,
अपनें अपनें राग अलापें,उछल उछल पंडित काज़ी,
क्रंदन करती भारत माता,राह तुम्हारी देख रही,
असुरों के सन्ताप झेलती,काँप रही है आज मही,
धोते धोते पाप सभी के,अब हो रही मलिन गंगा,
आज़ादी को कोस रहा है,भारत का राष्ट्र तिरंगा,

दुनिया से आतंकवाद का,नाम निसान मिटा जाओ ।।(4)
एक बार इस धरती पर फिर,हे,,,,,,,,

          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
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यह प्रजा का तन्त्र है इस तन्त्र से कुछ मन्त्र ले लो

हर परीक्षा दे चुका अब आग में इसको न ठेलो ।।
यह प्रजा का तन्त्र है इस तन्त्र से कुछ मन्त्र ले लो ।।

कौन कहता शांति से बिन ढाल आज़ादी मिली,
कौन कहता बिन गँवाये लाल आज़ादी मिली,
बुझ गए हैं दीप लाखों तब उजाला पा सका,
दे दिया बलिदान सर्वस तब प्रभाती गा सका,

है धरा यह प्रेम की तुम कृष्ण बनकर रास खेलो ।।(1)
यह प्रजा का तन्त्र है इस तन्त्र से,,,,,,,,

राष्ट्र की चिर भक्ति में है बाँधता परचम हमें,
लड़खड़ाते जब कदम है साधता परचम हमें,
एकता का मन्त्र देकर दे रहा अधिकार सब,
एक आँगन में मना लो एक हो त्योहार सब,

राष्ट्र है आज़ाद अब तो राष्ट्र को सम्मान दे लो ।।(2)
यह प्रजा का तन्त्र है इस तन्त्र से,,,,,,,,

दुष्ट शकुनी रच रहे गृह-युद्ध की नव नीतियाँ,
देखकर बारूद फौरन जल उठी सब तीलियाँ,
मुक्त मन से निज समर्थन दे रहीं हैं आँधियाँ,
रौद्र होकर चढ़ रही हैं शीर्ष पर सब व्याधियाँ,

भारती के लाल हो तुम वीर हर तूफान झेलो ।।(3)
यह प्रजा का तन्त्र है इस तन्त्र से,,,,,,,,

एक हम धृतराष्ट्र बनकर सुन रहे सारी कथा,
एक वह जो भीष्म बनकर पी रहा सारी व्यथा,
बाँसुरी को त्याग दो अब शंख की धुत्कार हो,
जो न मानें बात से फिर लात से सत्कार हो,

लक्ष्य साधे रिपु खड़े हैं खेमेश्वर तीर झेलो ।।(4)
यह प्रजा का तन्त्र है इस तन्त्र से,,,,,,,

          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
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पछुवा कॆ अनुगामी सुन रे,पुरवा तुझॆ बुलाती है

जन्म लिया है यहाँ राम नॆं,अग्नि- परीक्षा दी सीता !! 
सुचिता-पथ पर यज्ञ करातॆ,इसका हरपल है बीता !! 
चरण-पादुका पूजा करता,इक भरत प्रॆम का प्यासा !! 
अनुज लखन नॆं अर्पित कर दीं,अपनें जीवन की श्वाँसा !! 
प्रॆम विवश कॆवट सॆ रघुवर,चरण कमल धुलवातॆ हैं !! 
प्रॆम विवश शबरी कॆ जूठॆ, बदरी फल प्रभु खातॆ हैं !! 
वॆद पुराणॊं नॆं लिख जिसकी, गौरव गाथा गाई है !! 
सत्य-धर्म की कल-कल गंगा,तुलसी की चौपाई है !! 

आज युवा पीढी फिर कैसॆ,अपना कर्म भुलाती है !! 
पछुवा कॆ अनुगामी सुन रे,पुरवा तुझॆ बुलाती है !!१!! 

द्वापर युग मॆं इस भारत नॆं,महा-समर कॊ जीता है !! 
वॆद व्यास नॆं रच डाली इक,कृष्ण-भाष्य सॆ गीता है !! 
जहाँ कंस कॆ अहन्कार की,जलती साख चिताऒं मॆं !! 
पल-भर मॆं जल गई हॊलिका,उड़ती राख हवाऒं मॆं !! 
जहाँ पूतना का छल छद्रम,टिका नहीं सच कॆ आगॆ !! 
हरिश्चन्द्र नृप पत्नी बालक,बिकॆ जहाँ सच कॆ आगॆ !! 
जहाँ धर्म का रक्षक बनकर,प्रभु नॆं चक्र चलाया है !! 
अँगुली ऊपर रख गॊवर्धन,गॊधन कष्ट मिटाया है !! 

युवा शक्ति अब तॆरॆ सम्मुख,काल खड़ा अपघाती है !! 
पछुवा कॆ अनुगामी सुन रे,पुरवा तुझॆ बुलाती है !!२!! 

जहाँ एक दासी नॆं समुचित,दॆव लॊक कॊ हिला दिया !!
उदयसिंह की मृत्यु सॆज पर,अपना बेटा सुला दिया !!
जहाँ घास की रॊटी खाकर,आँधी कॊ ललकार दिया !!
जहाँ क्रान्ति का सूरज हमनॆं,दॆकर लहू उतार लिया !!
जहाँ दॆश की खातिर बहना,अर्पण करती भैया को !!
जहाँ लाल की कुर्वानी दे,गर्व हुआ है मैया को !!
जहाँ पींठ पर बालक बाँधॆ,अबला रण में युद्ध करे !!
जहाँ एक नारी यम से भी,पति प्राणों की टेक धरे !!

शीश काट निज जहाँ सुहागिन,पति को भेंट पठाती है !!
पछुवा कॆ अनुगामी सुन रे,पुरवा तुझॆ बुलाती है !!३!! 

जिस भारत से सकल विश्व नें,ज्ञान ध्यान तप सीखा है !!
चिन्तन मंथन क्षमा शीलता,योग यज्ञ जप सीखा है !!
जिस भारत नें शून्य मिलाकर,गणित पूर्ण कर डाला है !!
एक दशमलव दे करके ही,विश्व पटल भर डाला है !!
जहाँ राष्ट्र की बलिवेदी पर,प्राणाहुति की होड़ लगे !!
जहाँ राष्ट्र की गरिमा ही बस,जीवन पथ बेजोड़ लगे !!
बच्चा बच्चा गाता फिरता,इंकलाब के गीत जहाँ !!
हँसकर फाँसी चढ़ जाने की,सदा रही है रीत जहाँ !!

इस भारत की गौरव गाथा,सकल सृष्टि दुहराती है !!
पछुवा कॆ अनुगामी सुन रे,पुरवा तुझॆ बुलाती है !!४!! 

         ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
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मन दर्पण है रूप महल का,दर्पण सॆ क्या शरमाना

रूपवती मृग-नयन सुन्दरी,कंचन काया गुणखानी !!
इन्द्रलॊक सॆ आई हॊ तुम,या फ़िर माया की रानी !!
अंग अंग रसराज झूमता,कामदॆव का आलय हॊ !!
दॆख दॆखकर झूम रहॆ सब,तुम पूरा मदिरालय हॊ !!

दिखा रहा हूँ रूप तुम्हारा,इतना भी मत इतराना !!
मन दर्पण है रूप महल का,दर्पण सॆ क्या शरमाना !!(१)

मचल लॆखनी लिखनॆ बैठी,लिखी कहानी लिखी हुई !!
कमलकॊष पर दृष्टि भ्रमर की,याचक जैसी टिकी हुई !!
वातावरण शान्त है लॆकिन,हिय मॆं हैं तूफ़ान उठॆ !!
जॊ नयन दॆखतॆ इस छवि कॊ,रह जातॆ बस लुटॆ लुटॆ !!

चातक तृष्णा नॆ ठान लिया,नहीं किसी सॆ घबराना !!(२)
मन दर्पण है रूप महल का,दर्पण सॆ,,,

धूप छाँव मॆं बदल गई अब,है चली धुन्ध पुरवाई !!
घूँघर ज़ुल्फ़ॆं उड़ीं गगन मॆं,लगता बदली घिर आई !!
ऊँची ग्रीवा नयन झुकॆ कुछ,इक ज्वार उठा स्पंदन मॆं !!
लगता जैसे शान्त मोरनी,खड़ी अकॆली उपवन मॆं !!

बार बार मन सॊच रहा है,पास उसी के बस जाना !!(३)
मन दर्पण है रूप महल का,दर्पण सॆ,,,

लगता है सौन्दर्य समूचा,मानॊ ज़िद पर अड़ा हुआ !!
किन्तु गाल पर काला सा तिल,पहरॆ मॆं है खड़ा हुआ !!
खड़ी रहॊ हॆ रूप सुन्दरी,अपनी कलम  उठा लूँ मैं !!
एक सर्ग शृंगार शतक का,अभी अभी रच डालूँ मैं !!

अहॊ ! तृप्ति की मीठी सरिता,हॄदय सिंधु कॊ भर जाना !!(4)
मन दर्पण है रूप महल का,दर्पण सॆ,,,

          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
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प्रणय गीत फिर कभी लिखूँगा,अभी आग ही लिखनें दो

बिंदिया पायल कंगन वाले,रति गीत अभी मत माँगो,
सुप्त पड़ी तलवारों से,कहो भवानी अब जागो,
भारत माँ के बेटे होकर,मत क्रंदन स्वीकार करो,
अनाचार है बढ़ा देश में,कर गर्जन हुंकार भरो,
राणा और शिवा का पौरुष,पढ़ना और पढाना है,
पन्ना माँ की त्याग बेल को,आगे हमें बढ़ाना है,
रक्त नहाया चन्दन का शव,तुमसे कुछ माँग रहा है,
मातृभूमि की आँहें सुनकर,अबतक वह जाग रहा है,
हाड़ौती के शीश दान की,परम्परा दोहरानी है,
भामा जैसी दान वीरता,बच्चों को सिखलानी है,

जौहर ज्वाला को मत सींचो,उसको और धधकनें दो ।।(1)
प्रणय गीत फिर कभी लिखूँगा,अभी आग ही लिखनें दो ।।

मूक समर्पण कर देनें से,अधिकार नहीं मिल पाते,
साहस और शौर्य के सम्मुख,सभी सूरमा झुक जाते,
एक गाल पर पड़े तमाचा,तुम दूजे पर मत खाना,
हाँथ उठाने वाले का तुम,शीश काटकर घर आना,
गाँधी के सिद्धांत पढ़ो पर,शेखर को भी याद रखो,
बनों शान्ति के वाहक लेकिन,सीनें में फौलाद रखो,
शान्ति मंत्र के जपने वालो,दमन सूर्य का जारी है,
आज किसी की बारी है कल,और किसी की बारी है,
समर शेरनी उस दुर्गा की,तुम शौर्य कहानी पढ़ लो,
इतिहास नया गढ़नें वाली,गाथा मर्दानी पढ़ लो,

सुप्त पड़ी तलवारों को अब,भर हुंकार खनकनें दो ।।(2)
प्रणय गीत फिर कभी लिखूँगा,,,,,

लोलुपता के गरल कुण्ड को,दानवता से भर डाला,
भारत माँ के शुभ्र भाल को,किसनें रक्तिम कर डाला,
सोने की चिड़िया को देखो,नोंच नोंच कर खाते हैं,
तड़प रहा है भूखा भारत,लुच्चे मौज मनाते हैं,
रात दिवस है नाता जिनका,सीमा की रखवाली से,
उनका स्वागत होते देखा,डंडा पत्थर गाली से,
अबलाओं की इज्जत लुटती,खुलेआम चौराहों पर,
नोटों का जब भार बढे तो,पर्दा पड़े गुनाहों पर,
सीना ताने खड़ा अँधेरा,बन्दी हुआ उजाला है,
हर सीनें में जलती ज्वाला,किन्तु अधर पर ताला है,

अभी अभी यह कलम उठी है,इसको और बहकनें दो ।।(3)
प्रणय गीत फिर कभी लिखूँगा,,,,

इतिहास उठाकर पढ़ लेना,यह भारत सिरमौर रहा,
सकल विश्व में इसका सानी,देश न कोई और रहा,
पागल और दिवाने जैसे,गीतों का वन्दन छोड़ो,
नयन तीसरा बनों शम्भु का,कामदेव का पथ मोड़ो,
काम वासना के अर्चन से,इतिहास नहीं रच सकता,
अलकों पलकों के वंदन से,यह देश नहीं बच सकता,
एक समय आएगा ऐसा,फिर गुलाम बन जायेंगे,
नागफनी के बिखरे काँटे,बरछी बन तन जायेंगे,
शंखनाद केशरिया पगड़ी,भाल तिलक परिवेश कहाँ, 
अमर शहीदों के सपनों का,प्यारा भारत देश कहाँ,

आज़ादी की नवल वधू को,अब मत और सिसकनें दो ।।(4)
प्रणय गीत फिर कभी लिखूँगा,,,

          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

अमर शहीदॊं कॆ चरणॊं मॆं,शत-शत शीश झुकाता हूँ

नंदनवन मॆं आग लगी है,पता नहीं रखवालॊं का ।। 
कैसॆ कर ले प्रजा भरोसा,कपटी दॆश दलालॊं का।।
भारत माता बँधी हुई है,आतंकी जंजीरों मॆं।
अपनों नें ही लिखी वॆदना,इसकी हस्त लकीरॊं मॆं।।
घाट घाट पर ज़ाल बिछायॆ,बैठॆ कई  मछॆरॆ हैं ।
देखी मछली कंचन काया,दुष्ट उसॆ सब घॆरॆ हैं।।
आज़ादी के बाद बनायॆ,मिल कर झुण्ड सपॆरॊं नॆं।
बजा-बजा कर बीन सुहानी,लूटा दॆश लुटॆरॊं नॆं।।
भारत माँ कॊ बाँध रखा है,भ्रष्टाचारी  डॊरी  मॆं।
इनकी कुर्सी रही सलामत,जनता जायॆ हॊरी मॆं।।
जिनकॊ चुनकर संसद भॆजा,चादर तानॆ सॊतॆ हैं।
संविधान कॆ अनुच्छॆद तब,फूट फूट कर रॊतॆ हैं।।

भारत माँ की करुण कृन्दना,आऒ तुम्हॆं सुनाता हूँ !!
अमर शहीदॊं कॆ चरणॊं मॆं,शत-शत शीश झुकाता हूँ !!(१)

आग उगलती यहाँ हवाएँ,झुलस रही फुलवारी है।
भरी अदालत मॆं कौवॊं की,कॊयल खड़ी बिचारी है।।
केशर की बगिया मॆं कैसॆ,अभयराज था साँपॊं का।
पूछ रही है भारत माता,अंत कहाँ इन पापॊं का।।
कहाँ क्रान्ति का सूरज डूबा,हॊता नहीं सवेरा है।
आज़ादी कॆ बाद आज भी,छाया घना अँधॆरा है।।
कहाँ गई वह राष्ट्र चेतना,कहाँ शौर्य का पानी है।
राजगुरू सुखदॆव भगत की,सोई कहाँ जवानी है।।
मंगल पांडे और ढींगरा,मतवाले आज़ादी के।
कहाँ गए आज़ाद सरीखे,रखवाले आज़ादी के।।
जिनकॆ गर्जन कॊ सुन करके,धरा गगन थर्रातॆ थे।
इंक़लाब के नारे सुन सुन,गोरे दल घबरातॆ थॆ।।

आज़ादी के स्वर्ण कलश की,तुम्हें झलक दिखलाता हूँ !!
अमर शहीदॊं कॆ चरणॊं मॆं,शत-शत शीश झुकाता हूँ !!(२)

क्रांति सुतों कॆ रक्त-बिन्दु मॆं,इन्क़लाब का लावा था।
आज़ादी की खातिर मिटना,उनका सच्चा दावा था।।
राष्ट्र चॆतना राष्ट्र भक्ति मॆं,नातॆ रिश्तॆ भूल गये।
हँसतॆ हँसते वह मतवालॆ,फाँसी पर थे झूल गये।।
भूल गयॆ वो सावन झूलॆ,भूल गयॆ तरुणाई वो।
भूल गयॆ वो फाग फागुनी,भूल गयॆ अमराई वो।।
भूल गयॆ वॊ दीप दिवाली,भूल गयॆ राखी हॊली।
भूल गयॆ वो ईद मनाना,झेल गये सीनों पर गोली।।
भारत माँ कॊ गर्व हुआ था,पा ऎसॆ मतवालॊं कॊ।
रॊतॆ रॊतॆ कॊस रही अब,गुज़रॆ इतने सालॊं कॊ।।
धन्य धन्य हैं वह माताएँ,लाल विलक्षण जो जायॆ।
धन्य धन्य वॊ सारी बहनॆं,बन्धु जिन्होंनें यह पायॆ।।

धन्य हुई यह आज लेखनी,धन्य स्वयं कॊ पाता हूँ !!
अमर शहीदॊं कॆ चरणॊं मॆं,शत-शत शीश झुकाता हूँ !!(३)

भारत माँ का लाल लाडला,जब सीमा पर जाता है।
एक एक परिजन का सीना,गर्वित हो तन जाता है।।
बड़ॆ गर्व सॆ पिता पुत्र की,करता समर-बिदाई है।
बड़ॆ गर्व सॆ अनुज बन्धु कॊ,दॆता राष्ट्र दुहाई है।।
बड़ॆ गर्व सॆ बहना कहती,लाज बचाना राखी की।
बड़ॆ गर्व सॆ भाभी कहती,तुम्हॆं कसम बैसाखी की।।
बड़ॆ गर्व सॆ पत्नी आकर,कॆशर तिलक लगाती है।
बड़ॆ गर्व सॆ राष्ट्र भक्ति कॆ,मैया गीत सुनाती है।।
भारत माँ का वीर लड़ाका,भर आशीषॊं से झॊली।
शामिल हॊता जाकर दॆखॊ,जहाँ बाँकुरॊं की टॊली।।
झुकनॆ पाया नहीं तिरंगा,इंकलाब नभ गूँजा है।
शीश चढाकर भारत माँ कॊ,इन वीरों ने पूजा है।।

ऐसे वीर सपूतॊं की मैं,शौर्य वन्दना गाता हूँ !!
अमर शहीदॊं कॆ चरणॊं मॆं,शत-शत शीश झुकाता हूँ !!(४)

         ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
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चल रही आवाम पर थीं दुश्मनों की आरियाँ

गूँजती थीं नित फिरंगी फ़ौज की किलकारियाँ ।।
चल रही आवाम पर थीं दुश्मनों की आरियाँ ।।(1)

शीश पर था नाचता अन्याय अंग्रेजी चढा,
इस भरत के देश में थीं बढ़ रही बदकारियाँ ।।(2)

मुल्क़ अपना जी रहा था ज़िन्दगी ख़ैरात की,
दिख रही थीं दुश्मनों की चारसू मक्कारियाँ ।।(3)

ज़ुल्म का आतंक था फैला हुआ इस देश में,
जल रही थीं अम्न की मासूम धूँ धूँ क्यारियाँ ।।(4)

क्रूरता वह याद आती काँप उठता है बदन,
मर रहे थे वृद्ध बालक लुट रही थीं नारियाँ ।।

भोगते थे दण्ड वह जयचन्द भी निज पाप का, 
कर रहे थे लोभ में जो मुल्क़ से गद्दारियाँ ।।(5)

नाम था व्यापार का पर नोंचते थे हिन्द को,
लूटतेे थे नीच गोरे बस बदलकर पारियाँ ।।(6)

स्वाभिमानी शूरमा कुछ देश के थे कर रहे,
मुल्क़ को आज़ाद करनें की सतत तैयारियाँ ।।(7)

बढ़ गया अन्याय हद से जब ज़ियादा मुल्क़ में,
जल उठी थीं इस धरा पर क्रान्ति की चिंगारियाँ ।।(8)

बज उठा था फिर बिगुल आज़ाद होना था हमें,
"खेमेश्वर" कबतक और सहते हम यहाँ दुश्वारियाँ ।।(9)

         ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
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आज़ादी के दीवानों की,आओ जय जयकार करें

आज़ादी के परवानों की,सुनलो अमर कहानी तुम ।
राजगुरू सुखदेव भगत की,याद करो कुर्बानी तुम ।।
आज़ादी का सूरज लाने,निकल पड़े थे मस्ताने । 
फाँसी के फन्दों को हँसकर,चूम रहे थे दीवाने ।।

ऐसे वीर सपूतों का हम,वंदन बारम्बार करें ।।
आज़ादी के दीवानों की,आओ जय जयकार करें ।।(1)

रंग बसन्ती चोला वाला,गीत अधर जब गाते थे ।
तोपें ताने खड़े फिरंगी,काँप काँप रह जाते थे ।।
आसमान भी बोल रहा था,इन्कलाब की बोली को ।
बच्चे बूढ़े चले उठाने , आज़ादी की डोली को ।।

नया सवेरा दिया जिन्होंने,उनका हम सत्कार करें ।।
आज़ादी के दीवानों की,आओ जय जयकार करें ।।(2)

भारत माँ पर प्राण लुटाकर,साँसें पावन करनें की ।
बूढे बाल जवानों में भी,होड़ लगी थी मरने की ।।
भारत माँ का क्रंदन सुनकर,बनी बेटियाँ मर्दानी ।
लिए तिरंगा बोल रही थी,इन्कलाब की वह बानी ।।

उनकी गौरव गाथा को हम,नमन करें स्वीकार करें ।।(3)
आज़ादी के दीवानों की,आओ जय जयकार करें ।।

अर्जुन और भीष्म की जननी,राम कृष्ण की धर्म धरा,
राणा और शिवा ने इस पर,स्वाभिमान का कलश धरा,
भारत की इस पावन रज से,हम अपना भाल सजाएँ ।
मातृभूमि की (की) शौर्य वन्दना,मुक्त कण्ठ से हम गाएँ ।।

अरि शोणित से भारत माँ का,आओ हम श्रृंगार करें ।।(4)
आज़ादी के दीवानों की,आओ जय जयकार करें ।।

         ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
         धार्मिक प्रवक्ता-ओज-व्यंग्य कवि
                    राष्ट्रीय प्रवक्ता
           राष्ट्र भाषा प्रचार मंच-भारत
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
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बड़ा कठिन है कविता करना,सूरज जैसा तपना है

दुर्गम राह नुकीले काँटे,नग्न पैर से चलना है ।।
दग्ध वेदना के शोलों पर,जैसे मीन उछलना है ।।
देकर अमिय जगत को सारा,गरल पान खुद करना है ।।
इक छोटी सी गागर में ज्यों,गंगा सागर भरना है ।।

शब्दों की इक माला लेकर,शबरी जैसा जपना है ।।
बड़ा कठिन है कविता करना,सूरज जैसा तपना है ।।(1)

शब्द शब्द की ध्वनि तरंग से,अनुपम कविता गूँजी है ।।
जीवन भर की शब्द साधना,ही सृजता की पूँजी है ।।
एक विषय के आ जाते ही,नींद नयन से उड़ जाती ।।
चलते चलते कभी चेतना,अन्य विषय पर मुड़ जाती ।।

पात निपात हमें समझाता,साँसों को तो खपना है ।।(2)
बड़ा कठिन है कविता करना,,,

खड़ा खड़ा जग देखेगा पर,बात न कोई पूछेगा ।।
भोर किरण के ग्राहक हैं सब,रात न कोई पूछेंगा ।।
यह अभाव का लाक्षागृह है,धधक रही इक ज्वाला है ।।
अमिय चाहती सारी दुनियाँ,कवि के हिस्से हाला है ।।

किन्तु सत्य पर चलते रहना,कर्म हमारा अपना है ।।(3)
बड़ा कठिन है कविता करना,,,

ज़हर उगलने वालों तुमको,कैसे मिसरी खीर मिले ।।
कलह-कामिनी के कुम्भों से,कैसे अमृत क्षीर मिले ।।
मरणासन्न पड़े भागीरथ,कैसे गंगा नीर मिले ।।
कैसे पन्त निराला जन्मे,कैसे सूर कबीर मिले ।।

चाँद कहाँ मुट्ठी में आता,कहना केवल सपना है ।।(4)
बड़ा कठिन है कविता करना,,,,

         ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
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एक सपना तुम लिखो तो,एक सपना मैं लिखूँ

एक सपना तुम लिखो तो,एक सपना मैं लिखूँ ।।
पृष्ठ अपना तुम लिखो तो,पृष्ठ अपना मैं लिखूँ ।।
एक सपना तुम लिखो तो,,,,,

मीत मेरे पास आओ हम नया सा गीत लिख दें,
जो हृदय में मौन सोयी आज अपनी प्रीत लिख दें,
एक मीरा एक राधा एक शबरी सी लगन है,
तन हुआ पाषाण शापित किन्तु मन में इक अगन है,

देह तपना तुम लिखो तो,नेह तपना मैं लिखूँ ।।(1)
एक सपना तुम लिखो तो,,,,,

याचना नें कुछ न पाया साधना को फल मिला है,
कर्म हो निर्बाध्य तो फिर रेत में भी जल मिला है,
आस का दीपक जलाये चेतना नित कर्म रत है,
उर उदधि में ज्वार लेकिन बाह्य चिंतन मौन व्रत है,

नाम अपना तुम लिखो तो,नाम अपना मैं लिखूँ ।।(2)
एक सपना तुम लिखो तो,,,,,

स्वप्न टूटे भाव रूठे नैन जागे रात जागी,
तुम अलौकिक रूप रत्ना रत्न मन में वीतरागी,
जल गईं सब क्यारियाँ जल कौन से घट में भरूँ मैं,
अब तुम्हारे नेह का बोलो करूँ तो क्या करूँ मैं,

प्रेम जपना तुम लिखो तो,प्रेम जपना मैं लिखूँ ।।(3)
एक सपना तुम लिखो तो,,,,,

एक मंथन कर रहा हूँ जीत कर जो युद्ध हारे,
मन वचन की बद्धता में जल गये सारे सहारे,
एक चातक प्यास लेकर ताकता आकाश को नित,
अब गिरेगी बूँद जल की है यही विश्वास जीवित,

कंठ तपना तुम लिखो तो,कंठ तपना मैं लिखूँ ।।(4)
एक सपना तुम लिखो तो,,,,,

          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
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सियासी भाँग पीकर राजधानी बोल पड़ती है

दबे नायाब रिश्तों की कहानी बोल पड़ती है ।।
रखी बुनियाद जिसनें वो रुहानी बोल पड़ती है ।।(1)

कभी तुम गौर से पढ़ना वसीयत बाप पुरखों की,
बुजुर्गों की लिखी इक इक निशानी बोल पड़ती है ।।(2)

करो तुम लाख कोशिश पर ज़माना भाँप ही लेता,
नज़र से हर नज़र की छेड़खानी बोल पड़ती है ।।(3)

दिखाते पाक दामन हो ज़माने को मगर फिर भी,
तुम्हारी बात से तो बदगुमानी बोल पड़ती है ।।(4)

दिखावा खूब करते हैं मियाँ हम भी अमीरी का,
मगर गाहे-बगाहे ये गिरानी बोल पड़ती है ।।(5)

दिखाकर नाज़ नख़रे जब पड़ोसन तू तड़ा करती,
उठाकर हाथ में झाड़ू घराणी बोल पड़ती है ।।(6)

अकेला चाँद निकला है फ़लक पे जा गले मिल ले,
ज़मीं के कान में यह रातरानी बोल पड़ती है ।।(7)

लुटाई जान लाखों नें बचा तब मुल्क़ का परचम,
हमेशा मुल्क़ के हक़ में जवानी बोल पड़ती है ।।(8)

लगाकर जान की बाज़ी बचाई आन जौहर कर, 
यहाँ हर एक बेटी जय भवानी बोल पड़ती है ।।(9)

अभी कुछ साल तक डाँटा मगर अब सोचता हूँ मैं,
अचानक हो गई बिटिया सयानी बोल पड़ती है ।।(10)

न टोपी से न पगड़ी से न फितरत कारनामे से,
बचा ईमान है जिसका ज़ुबानी बोल पड़ती है ।।(11)

नहीं है पास अब मेरे मगर माँ भूल कब पाई,
फ़ज़ाओं में दुआ वो आसमानी बोल पड़ती है ।।(12)

बदलकर भेष लोगों से छुपाता जात वह अपनीं,
मगर लहज़े ज़ुबानी से पठानी बोल पड़ती है ।।(13)

करूँ क्या बात उससे मैं अदब ही बेच बैठा जो,
कभी भी यार सोहरत खानदानी बोल पड़ती है ।।(14)

मसीहा मैं नहीं कहता उसे लेकिन हकीक़त में,
वफ़ा के साथ उसकी हक़-बयानी बोल पड़ती है ।।(15)

मिलें कैसे यहाँ आवाम के दिल "खेमेश्वर" तुम,
सियासी भाँग पीकर राजधानी बोल पड़ती है ।।(16)
           ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
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कौन जीता कौन हारा,कौन ठहरा कौन भागा

ज़िन्दगी की दौड़ में सब,उम्र भर भागे फिरे,
रात दिन पिसते रहे बस, योजनाओं से घिरे,
आचरण ही भूल बैठे,श्रेष्ठता की चाह में,
कंटकों पर चल पड़े सब,जी रहे हैं आह में,

थक गए जब चूर होकर,कौन सोया कौन जागा ।।(1)
कौन जीता कौन हारा,कौन ठहरा कौन भागा ।।

दैत्य कितनें रूप बदले,बन महामानव गये,
आदमी के भेष में सब,छुप यहाँ दानव गये,
कर दिखावा दीन दुखियों,के विधाता बन रहे,
एक रोटी दान करके,अन्नदाता बन रहे, 

है विधाता कौन किसका,कौन किस्मत का अभागा ।।(2)
कौन जीता कौन हारा,,,,,,,

रूप दुश्मन रूप क़ातिल,रूप खंज़र ढाल है,
रूप शबनम रूप ज्वाला,रूप ही भ्रमजाल है,
भेद खुलता जिस घड़ी आभास होता सत्य का,
कौन मधुरिम कौन कर्कश,भेद खुलता कृत्य का,

कौन तोता कौन मैना,कौन कोयल कौन कागा ।।(3)
कौन जीता कौन हारा,,,,,,,

हम स्वयं ठहरे हुये या ज़िन्दगी अपनी थमी,
रूप ही धूमिल हुआ या धूल दर्पण पर जमी,
धुन्ध कितनी देख पाना है सहज इतना नहीं,
तथ्य क्या है जान पाना है सहज इतना नहीं,

सब गुँथे हैं यूँ परस्पर,कौन चरखा कौन धागा ।।(4)
कौन जीता कौन हारा,,,,,,,

एक दीपक सत्य का जो दे रहा नित रोशनी,
आँधियों के सामनें भी लिख रहा है जीवनी,
कर्म का प्रारब्ध मिलता यह प्रमाणिक तथ्य है,
कर्म की ही साधना का यह कथानक कथ्य है,

"खेमेश्वर" भेद समझो,क्या कनक है क्या सुहागा ।।(5)
कौन जीता कौन हारा,,,,,,,

          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
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नदी किनारे नैन झुकाये,बैठी अल्हड़ नार ।।

किसकी चली तूलिका ऐसी,खुले सृजन के द्वार ।।
नदी किनारे नैन झुकाये,बैठी अल्हड़ नार ।।

नख से शिख तक मादकता की,जैसे गगरी भरी हुई,
या फिर मूक संगमरमर की,कोई प्रतिमा धरी हुई,
ऐसे उठे विचार हॄदय में,जैसे लाखों ज्वार उठे,
लाखों कामदेव हो विचलित,एक साथ ललकार उठे,

कितनों के तप भंग हुए हैं,देख इसे करतार ।।(1)
नदी किनारे नैन झुकाये,,,,,

अगल बगल दो घड़े धरे हैं,इक कर पीत वसन है,
और एक कर उपल देह पर,मानों करता उबटन है,
श्वेत धवल साड़ी पर निखरे,दो नीले रंग किनारे,
ज्यों गंगा के अगल बगल में,कालिंदी के दो धारे,

कंगन बाजूबन्द पायलें,और गले में हार ।।(2)
नदी किनारे नैन झुकाये,,,,,

चित्र देखकर ऐसा लगता,बोल पड़ेगी अभी अभी,
हृदयातल में दबी भावना,खोल पड़ेगी अभी अभी,
प्रिय की गहन सोच में डूबी,नार नवेली पनघट पर,
जरा न विचलित होती रमणी,सरिता जल की आहट पर,

काली काली केश राशि पर,अनुपम जूड़ा मार ।।(3)
नदी किनारे नैन झुकाये,,,,,

देख रहे हैं अम्बर पथ से,बादल यह रूप निराला,
मानों उन्हें निमंत्रण देती,आज धरा से मधुशाला, 
जिसनें देखा उसनें माना,रीतिकाल प्रत्यक्ष खड़ा,
हर एक सृजनकर्ता अपनीं,कविता रचनें हेतु अड़ा,

गोरे गोर गाल लाल यूँ,जैसे पके अनार ।।(4)
नदी किनारे नैन झुकाये,,,,,

इस चित्रकार की अनुपम कृति,नें मंत्र मुग्ध कर डाला,
सारी काम कलाओं को बस,एक कलश में भर डाला,
सोच रहा हूँ कहाँ समेंटूँ,इस नीरवता के क्षण को,
धन्य कहूँ उस पाहन को या,धन्य कहूँ उस रज कण को,

मनसिज से मिलने आया,पनघट पर शृंगार ।।(5)
नदी किनारे नैन झुकाये,,,,,

          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
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समझ आई न जिसको भी हमारे प्यार की भाषा

समझ आई न जिसको भी हमारे प्यार की भाषा ।।
सुनाई फिर उसे हमनें तनें हथियार की भाषा ।।(1)

बढ़ें जब हाथ गर्दन को उठे दस्तार पर उँगली,
हमारा फ़र्ज़ बनता है लिखें अंगार की भाषा ।।(2)

परिंदों पर निसाना साधकर बैठे कफ़स डाले, 
दरिंदों को समझ आती नहीं लाचार की भाषा ।।(3)

गुलों से पूछियेगा दर्द की तासीर क्या होती,
बतायेंगे वही तुमको चुभन की खार की भाषा ।।(4)

निभाओ फ़र्ज़ अपना सब रहो ईमान पे कायम,
मगर भूलो नहीं अपनें कभी अधिकार की भाषा ।।(5)

निभाता कौन है वादे मियाँ अब के ज़माने में,
करो तुम ताजपोशी फिर सुनो सरकार की भाषा ।।(6)

युवा पीढी नपुंसकता वरण करनें लगे जब भी,
उठाओ लेखनी अपनी लिखो तलवार की भाषा ।।(7)

बढाया हाथ हमनें है हमेशा मित्रता का पर,
इज़ाफ़े में मिली उससे हमें इनकार की भाषा ।।(8)

सभी की आँख का तारा बना है खेमेश्वर जी,
हमेशा बोलता है एक ज़िम्मेदार की भाषा ।।(9)

          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
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वेदना गीत

कहाँ धरित्री पति सोता है, 
जगती का जन जन रोता है।

मिटते जाते जनधन उपवन,
सूना घर है सुने मधुवन,
उड़ते जाते प्राणि पखेरू
सूना नंदन वन रोता है।
कहाँ ••••••••••••••••••••••||

मौतों ने श्रृंगार रचाया,
ताण्डव कर उत्पात मचाया।
विछड़ते जाते मीत जहाँ से,
आर्द्र मेरा भी मन होता है।।
कहाँ ••••••••••••••••••••••||

आर्त वेदना   कृन्दित  मेरी,
भक्ति पुकार  रुदित अब मेरी।
उजड़ती जाती वसुदा सुन्दरि,
श्रद्धा का भी दम खोता है।।
कहाँ••••••••••••••••••••••••••||

मृत्यु अजेय हुई भूतल पर,
रुधिर माँग सज्जित नव वर।
उनको भी छोड़ती नही है,
कारण यही मदन रोता है।
कहाँ••••••••••••••••••••••••••||

श्वेत बालुका कण आधारित,
यह जीवन नश्वर अभिसारित।
पञ्च तत्व में खण्डित होकर,
जर जर यूँ ही भवन होता है।
कहाँ••••••••••••••••••••••••••||

प्रकृति रम्यता क्षय कर सारी,
मानव ने मधुरिमता क्षारी।
क्षमा सभी अपराध मनुज के,
यही इश्वरी गुण होता है।
कहाँ••••••••••••••••••••••••••||

हे!त्रिनेत्र वैश्वानर धारी,
कैलाशी प्रगल्भ मदनारी।
दया तुम्हारी बिन मृत्युञ्जय,
भू पर सकल श्रजन खोता है।
कहाँ••••••••••••••••••••••••••||

करुण कृन्दनित जगती है प्रभु, 
अनुत्तरित सब देव हुए शुभ।
बिना तुम्हारी क्रोध अनल के,
कहीं मृत्यु मर्दन होता है??
कहाँ••••••••••••••••••••••••••||

हे! "खेमेश्वर" के प्राणोद्धारक, 
जगत विनाशक पालन कारक।
हे!शिव ! शिवमय जग को कर दो, 
नवीन युग उदयन होता है।।
कहाँ••••••••••••••••••••••••••||

          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
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देख के दशा दिशा अपनी मन मेरा भी रोता है |

देख के दशा दिशा अपनी मन मेरा ,,,,,,,,,,,,,,!

देख के दशा दिशा अपनी मन मेरा भी रोता है |
इधर उधर थका हारा अपना आपा ही खोता है |
देख के दशा दिशा अपनी मन मेरा ,,,,,,,,,,,,,,!

तब मन का धैर्य पास कहां हमारे कुछ होता है |
हम करते हैं कुछ अनचाहे कुछ और होता है |
जब आता है कठिन दौर तब ऐसा ही होता है | 
देख के दशा दिशा अपनी मन मेरा ,,,,,,,,,,,,,!

एक भी हल न हुईं जीवन की मेरी पहेलियां |
कामना अभिलाषा बनी होती मेरी सहेलियां |
उपर से अपना दोष अलग रंग दिखाता होता है |
देख के दशा दिशा अपनी मन मेरा ,,,,,,,,,,,,!

देख देख सबकी हालत कुछ हमको भी होता है |
खोजता मैं भी उसको हूं जाने किधर वह होता है |
देख के दशा दिशा अपनी मन मेरा ,,,,,,,,,,,,,,,!

                   
          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

हमें एतबार होता है आपसे मिलकर।


फजा गुलजार होता है आपसे मिलकर!
हमें  एतबार होता है आपसे मिलकर।

नहीं मुमकिन जहां में आप बिन रहना!
जवाँ और प्यार होता है आपसे मिलकर।

रहे उल्फत सदा अपने दर्मियां अक्सर!
यही इंतजार होता है आपसे मिलकर।

थाम कर हाथ मेरा चलना हमारे संग!
दिल को करार होता है आपसे मिलकर।

कभी बिछड़े ना हम वफ़ा की राहों पर!
इश्क़ बेशुमार होता है आपसे मिलकर।

फजा गुलजार होता है आपसे मिलकर!
हमें  एतबार होता है आपसे मिलकर।

                   
           ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
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अर्णव गोस्वामी जी के ऊपर हुए हमले के ख़िलाफ़ कविता


रोती वसुंधरा, क्या ठहरे उसके पूत्र उसके दास नहीं
ग़लती तुम्हारी नहीं अर्णव, हमें इसका आभास नहीं

क्या हुआ गर एक विदेशी से उसका पेशा पूछ लिया
राजनीतिज्ञ ठहरे तो क्या है, जनता ठहरी खास नहीं

तुम खोलो आँखें देश की सोया हुआ देश तो क्या है
जागेगा एक दिन, छोड़ना तुम कभी भी प्रयास नहीं

सच्ची पत्रकारिता अपनाके, उतारो नकाब चेहरों से
यहाँ दिल के काले नेता ठहरे लेने देंगे तुझे सांस नहीं

गुरु चाणक्य कह गये थे,विदेशी कभी हितकर नहीं
देश बेच खाने कब छोड़ेगा कभी अपने अभ्यास नहीं

पृथ्वी ने आँखें फुड़वा डाली की आँखें खुल जाएंगी
गुरु गोविंद ने दी बच्चो की कुर्बानी आई ये रास नहीं

नहीं भूल सकते हम अम्बी,जयचंद मीर जाफर यहाँ
इससे ज्यादा क्या करेंगे ये देश का ये सत्यानास नहीं

जब चाहो चैनल पर बुलवा लेना गोस्वामी तुम हमकों
हम दरबारी कवि ना ठहरे लिखते कभी बकवास नहीं

तुम देश जगाओ खेमेश्वर की कलम साथ तुम्हारे ठहरी
हमारे अलावा तुम्हें मिलेगा कोई कवि अपने पास नहीं

             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
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कोरोना

विदेशी लहर से कहर छा गया है।
शहर की हवा में जहर आ गया है।।

अब गाँव की ओर लौटो सपूतों।
तज अपनी मिट्टी नगर भा गया है।।

पहचान लो कर्म अपना सुपावन।
बैलों की जोड़ी डगर पा गया है।।

मशीनीकरण ने मिटायी है मेहनत।
सुविधापरक ये मगर आ गया है।।

घर में रहकर भजो नाम हरि का।
कोरोना का संकट अगर आ गया है।।

         © "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
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परसुराम के वंशज जागो,तुम्हें जगाने आया हूँ ।।

परसुराम के वंशज जागो,,
*******************

चारों ओर कुहासा छाया,कूटनीति का डेरा है,
वेद शास्त्र व्रत नीति नियम को,काल चक्र नें घेरा है,
कितनें पंडित छोड़ जनेऊ,शिखा कटाये घूम रहे,
ब्रह्म वंश के कितनें बेटे,मदिरा पी कर झूम रहे,
नीतिशास्त्र का दिन दिन होता,क्षरण दिखाई देता है,
शान्ति और मर्यादा का नित,हरण दिखाई देता है,
मौनव्रती बनकर रहनें से,अधिकार नहीं मिल सकता,
जुगनूँ के पीछे चलनें से,उजियार नहीं मिल सकता,

निज पौरुष को पहचानों तुम,याद दिलाने आया हूँ ।।
परसुराम के वंशज जागो,तुम्हें जगाने आया हूँ ।।(1)

वेद ऋचाएँ लिखकर तुमनें,शोध जगत को बाँटे हैं,
किन्तु तुम्हारे ही गालों पर,पड़े अधर्मी चाँटे हैं,
सुख वैभव को त्यागा तुमनें,संस्कृति का सम्मान किया,
वेद ब्रह्म के ज्ञाता होकर,कभी नहीं अभिमान किया,
जिनको पाठ पढ़ाया तुमनें,भाग्य तुम्हारा जाँच रहे,
बैशाखी पर चलनें वाले,चढ़े शीश पर नाच रहे,
घात लगाये बैठे तुम पर,चौकन्ने मक्कार सभी,
अभी नहीं यदि जागे तुम तो,खो दोगे अधिकार सभी,

वर्तमान की यह सच्चाई,तुम्हें बताने आया हूँ ।।
परसुराम के वंशज जागो,तुम्हें जगाने आया हूँ ।।(2)

निज आन बान मर्यादा का,पूरा पूरा ध्यान रखो,
शीश भले कट जाये लेकिन,शीर्ष सदा अभिमान रखो,
बनों शास्त्र के मूलक लेकिन,अस्त्र शस्त्र का ज्ञान रखो,
अहंकार को पीना सीखो,पर स्वाभिमान का भान रखो,
बनों शान्ति के पथगामी पर,क्रांति पुत्र भी बनें रहो,
अनाचार के सम्मुख हर क्षण,सीना तानें तनें रहो,
वेद शास्त्र संस्कृति का तुमको,आन बचाकर रखना है,
राष्ट्र,धर्म,तप,योग व्रतों का,मान बचाकर रखना है,

कविता का इक दीप जलाकर,राह दिखानें आया हूँ ।।(3)
परसुराम के वंशज जागो,तुम्हें जगाने आया हूँ ।।

जीना मरना अटल सत्य है,मन से भय को त्यागो,
चलो सत्य के पथगामी बन,नहीं कर्म से तुम भागो,
तुमको पंगु बनानें खातिर,मानव घात लगाये हैं,
कदम कदम पर व्यवधानों के,दानव घात लगाये हैं,
कितना दमन सहोगे अब तो,शोषण का प्रतिकार करो,
विप्र वंश के बेटे हो तो,चलो उठो हुंकार भरो,
निज अधिकार छीनना सीखो,भीख किसी से मत माँगो,
सोए हुए सपूतों अब तो,कल्पित निद्रा से जागो,

बंजर होती वीर भूमि पर,शौर्य उगानें आया हूँ।।(4)
परसुराम के वंशज जागो,तुम्हें जगाने आया हूँ ।।

                   
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
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गहरा_ज्ञान


*⚜गहरा_ज्ञान✍️*

*एक नदी 🌊में बाढ़ आती है, छोटे से टापू में पानी भर जाता है वहां रहने वाला सीधा साधा एक चूहा🐀 कछुवे🐢 से कहता है मित्र*
*" क्या तुम मुझे नदी पार करा सकते हो मेरे बिल में पानी भर गया है ??*
*कछुवा🐢 राजी हो जाता है तथा चूहे 🐀को अपनी पीठ पर बैठा लेता है✍️*
*तभी एक बिच्छु🦂भी बिल से बाहर आता है।*
*कहता है मुझे भी पार जाना है  मुझे भी ले चलो,*

*चूहा🐀 बोला मत बिठाओ ये जहरीला है ये मुझे काट लेगा।*
*तभी समय की नजाकत को भांपकर बिच्छू🦂 बड़ी विनम्रता से कसम खाकर प्रेम प्रदर्शित करते हुए कहता है : भाई कसम से नही काटूंगा बस मुझे भी ले चलो।"*

*कछुआ🐢 चूहे🐀 और बिच्छू🦂 को ले तैरने लगता है।*
*तभी बीच रास्ते मे बिच्छु🦂 चूहे🐀 को काट लेता है।*
*चूहा🐀 चिल्लाकर कछुए🐢 से बोलता है "मित्र इसने मुझे काट लिया अब मैं नही बचूंगा।"*

*थोड़ी देर बाद उस बिच्छू🦂 ने कछुवे🐢 को भी डंक मार दिया। कछुवा🐢 मजबूर था जब तक किनारे पहुंचा चूहा🐀 मर चुका था।।*

*कछुआ🐢 बोला "मैं तो इंसानियत से मजबूर था तुम्हे बीच मे नही डुबोया"*
*मगर तुमने मुझे क्यों काट लिया ?*
*बिच्छु🦂 उसकी पीठ से उतरकर जाते जाते बोला "मूर्ख तुम जानते नही मेरा तो धर्म ही है डंक मारना चाहे कोई भी हो।"*
*गलती तुम्हारी है जो तुमने मुझ पर विश्वास किया।।*
*ठीक इसी तरह*
*कोरोना की इस बाढ़ में सरकार ने भी नदी पार करवाने के लिए कुछ बिच्छुओं🦂🦂🦂 को पीठ पर बिठा लिया है।*
*वे लगातार डंक मार रहे है और सरकार इन्सानियत की खातिर मजबूर हैं ।।*
*फलस्वरूप*
*हर रोज बेचारे निर्दोष डॉक्टर,पुलिस,और स्वास्थ्यकर्मी पिट ओर मर रहे हैं✍️🎪*

                   आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
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Thursday, April 23, 2020

व्यवहार



      👉 *व्यवहार* 👈

*एक सभा में गुरु 👳 जी ने प्रवचन के दौरान 🤔 एक ३०  वर्षीय युवक 🙍🏻‍♂️को खडा कर पूछा कि  👉 आप मुम्बई मेँ जुहू चौपाटी पर चल रहे हैं और सामने से एक सुन्दर लडकी 🚶🏻‍♀️आ रही है तो आप क्या करोगे ?* 😞

*युवक 🙍🏻‍♂️ ने कहा - उस पर नजर जायेगी, उसे देखने लगेंगे।* 😋

*गुरु जी 👳ने पूछा - वह लडकी आगे बढ गयी 🏃‍♀️तो क्या पीछे मुडकर भी देखोगे ?*

*लडके 🙍🏻‍♂️ने कहा - हाँ, अगर धर्म पत्नी साथ नहीं है तो। 👫 (सभा में सभी हँस पडे)* 😀

*गुरु जी 👳 ने फिर पूछा - जरा यह बताओ वह सुन्दर चेहरा 👩‍⚕️आपको कब तक याद रहेगा ?*

*युवक ने कहा ५-१० मिनट तक, जब तक कोई दूसरा सुन्दर चेहरा सामने न आ जाए।* 😳

*गुरु जी 👳 ने उस युवक से कहा - अब जरा सोचिए❗️*

*आप जयपुर से मुम्बई जा रहे हैं और मैंने आपको एक पुस्तकों 📚 का पैकेट देते हुए कहा कि मुम्बई में अमुक महानुभाव 👨🏻‍⚕️ के यहाँ यह पैकेट पहुँचा देना।*

*आप पैकेट देने मुम्बई में उनके घर गए❗️*

*उनका घर देखा 🏠 तो आपको पता चला कि यह तो बडे 🎅 अरबपति हैं।*

*घर के बाहर ८-१० गाडियाँ 🚘🚖🚔.... और ५-६ चौकीदार 👤👤👤... खडे हैं। आपने पैकेट की सूचना अन्दर भिजवाई तो वह महानुभाव स्वयं बाहर आए❗️ आप से पैकेट लिया,  आप जाने लगे तो आपको आग्रह 👏करके घर में ले गए। पास में बैठकर गरम खाना खिलाया। जाते समय आप से पूछा 🗣 किसमें आए हो ? आपने कहा- लोकल ट्रेन में। उन्होंने ड्राइवर को बोलकर आपको गंतव्य तक पहुँचाने के लिए कहा और आप जैसे ही अपने स्थान पर पहुँचने वाले थे कि, उस अरबपति महानुभाव का फोन आया - "भैया, आप आराम से पहुँच गए।"* 🌺🙏👋

*अब आप बताइए कि आपको वह महानुभाव कब तक याद रहेंगे ?*

*युवक ने कहा - गुरु जी ! जिंदगी में मरते दम तक उस व्यक्ति को हम भूल नहीं सकते।  😢*

*गुरु जी ने युवक के माध्यम से सभा को संबोधित करते हुए कहा*👉

*"यह है जीवन की हकीकत।"*👏

 *"सुन्दर चेहरा 👩‍⚕️ थोड़े समय ही याद रहता है❗️ परंतु हमारा सुन्दर व्यवहार 👏👏 जीवन भर याद रहता है।"*

*अतः  जीवन पर्यन्त अपने व्यवहार को सुन्दर बनाते रहिए ❗️ फिर देखिए आपने जीवन का रंग‼️*

🚩सनातन संस्कृति का यह आधार है 👉 अतिथि देवों भव:। 👏 

*जो मानवीयता का आधार है।मानवीय व्यवहार ही चिर स्मरणीय रहता है। आगामी जन्म मानव जन्म के हेतु का भी संकेत देता है। मानव कृति श्रेष्ठ है। सनातनी मानव परम श्रेष्ठ है। जहां कर्म पुनर्जन्म श्रेष्ठ कुल बंश परिवार का हेतु बनता है। प्रकृति भी सनातनी मानव को प्रेम से आहल्लादित रखती है।* 💐👏🚩

*जय हिंदू 🚩 जय भारत*
🚩🚩 🏹⚔️🔱 🚩🚩

*सभी भगवत्प्रेमियों को आज दिवस की शुभ मंगल कामना 🙏🏻⛳वंदेमातरम_🙏🏻😊⛳*

                   आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

निखार

निखार 
******
तुझसे मेरी खुशियो मे रहता निखार है 
यही तो तेरा  प्यार है ।

बेकरारी आँखों मे लिये दिल को रहता 
बस तेरा इंतज़ार है।

करार  पाने  को दिल  ने हमको  किया 
बहुत बेज़ार है।

तुझसे दिल  को है  बेपनाह प्यार  तभी 
तो रहता तकरार है।

न   कोई   मायूसी   न  उलझने  रखिये 
कोशिशें जाती नही कभी बेकार है।

अक्ल और हिम्मत से पाते है हर मंजिल 
ए  चाहत  और  दिल  ए  सुकूँ  जो होते 
दिलेर और समझदार है।

मोहबब्त में फसाद और जंग कभी होते 
नही  जो   सनम  को  मान  लेते अपना 
खुदा और सरकार है।
**************
                   
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
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धार नहीं संगम हो जाते

धार    नहीं    संगम  हो  जाते 
चोट   नहीं   मरहम  हो  जाते 

बन सकती थी अपनी कहानी 
तुम  जो मेरे हमदम  हो  जाते 

 जान   खुशी   से  दे  देता  मैं 
तुम जो  गर  जानम  हो जाते 

हाँथ   पकड़    लेते  जो  मेरा
तो   काँटे  कुछ  कम हो जाते 

तेरे    एक   तबस्सुम   से   ही 
चूर   मेरे   सब  गम  हो  जाते

तुम   हमको  अपना   लेते तो
दूर    दुखों  से  हम  हो  जाते

                   
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
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इनायत है आपने हमें दिल में जगह दी है!


इनायत है आपने हमें दिल में जगह दी है!
जिंदगी को नई सूरत जीने का वजह दी है।

गुजरने दे लम्हें दीया चाह का जलाये फिर!
उल्फत से वास्ता जोड़े वफ़ा ने गिरह दी है।

शबोरात यूँ ढलती जाये रहे न फासला कोई!
मुहब्बत का चाहत फिर नई सी सुबह दी है।

धड़कता था  अक्सर  दिल गम ए जुदाई में!
मिलते ही मिला जीवन खुशी इस तरह दी है।

सजायें आ आशियां हम मन मनसे मिलाये यूँ!
दर्मियां हों एकदूजे के सदा रब ने पनाह दी है।

इनायत है आपने हमें दिल में जगह दी है!
जिंदगी को नई सूरत जीने का वजह दी है।

                   
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

तेरी सूरत पे जब जब हमनें ,,,,,,,,,,,,,,,,!

तेरी सूरत पे जब जब हमनें ,,,,,,,,,,,,,,,,!

तेरी सूरत पे जब जब हमनें मन अपना हारा |
तब तब आगे बढ़ के दिया  तुमनें हमें सहारा |
तेरी सूरत पे जब जब हमनें ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,!

जब तेरा  सम्बल  पाया दूर गया दोष विकार |
अंतस से  निकाला  उजियारा  हटा अंधियार |
याद नहीं तेरी छटा  को हमने कब था निहारा |
तेरी सूरत पे जब जब हमनें ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,!

दृष्टि समाई  है अगम अगोचर छटा में अपार |
निराशा ढली  जब चेतन  में  आया उजियार |
तू तब आया जब  जब हमने तुझको पुकारा |
तेरी सूरत पे जब जब हमने ,,,,,,,,,,,,,,.,

ये सांवली छटा दुनिया में सबसे मस्तानी है |
इसीलिए तो सारी दुनिया तेरी ही दिवानी है |
मेरे पथ जब जब आए कांटे तू ने उसे टारा |
तेरी सूरत पे जब जब हमने ,,,,,,,,,,,,,,,!

तेरे मेरे मध्य  नाम का  अंतर नही रह गया |
इसीलिए दुनिया में मेरा हर काम सध गया |
तेरी है सारी दुनिया  कैसे  कहूं तू है हमारा |
तेरी सूरत पे जब जब हमनें ,,,,,,,,,,,,,,!

                   
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
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जातिवाद का विष


*⚜जातिवाद का विष*⚜

*⛳👇🏻जब कोई आपकी जाति पूछे और आपको बताने में हीनभावना हो तो,ऐसे किसी आदमी को तर्कयुक्त यह जवाब देना की मै तो मनुष्य जाति का हूं.. ✋🏻😊आप किस जाति के हो ? इतना सुनते ही उसे मिर्ची लग जायेगी,,, और जातिवाद पर करारा जवाब भी होगा ।*😊✔

*आईये जाति का मतलब समझे*⁉✋🏻👇🏻👇🏻

*जाति व्यक्ति की पहचान नहीं उसका उपनाम है,,, जो हमारे ऋषि मुनियों द्वारा लगाया गया,,, जो आज सरनेम बन गया जिसको हम जातिवाद कहते है*👌🏻✔

*उदाहरण के तौर पर ऋषि गौतम, ऋषि भारद्वाज, ऋषि कश्यप, ऋषि अत्रि तथा जिन्होंने ने वेदों का पाठ किया वो द्विवेदी, त्रिवेदी, चतुर्वेदी हो गए,,,, इसमें जातिवाद कहा से आया यह तो कार्य शैली है।*😳👌🏻✔

*धर्म प्रचार व रक्षा करने का कार्य करने वाले दसनामी या गोस्वामी, चमड़े का कार्य करने वाले चमार, मैला ढोने वाले धानुक, मंडल,तैल संबंधित तैलिक, दूध का व्यापार करने वाले यदुवंशी, कपड़े धोने वाले धोबी, समाज की रक्षा करने वाले क्षत्रीय और व्यापार करने वाले वैश्य लेकिन यह सब तो कार्य शैली थी जाति नहीं।*😳✔👌🏻

*जाति कहते है पहचान को,,, ✋🏻जिसे पहचानने में किसी से पूछना न पड़े । इसे समझने के लिए ऐसे समझे यह दो प्रकार की होती है.. एक ईश्वरकृत दूसरी मनुष्यकृत ।*

*1.ईश्वरकृत जाति:- जैसे मनुष्यों की जाति जिसे हम दो हाथ दो पैर जो पुरूष और स्त्री के होते है उनको मनुष्य जाति कहते है,, क्या इनको पहचानने मे कोई समस्या है ?? नहीं ✋🏻✋🏻 क्योंकि यह ईश्वरकृत है,, और ईश्वर के काम अधूरे नही होते,, ऐसे ही पशु पक्षी, कीट-पतंगो की जातियां तो इनको भी हम पहचानते है हमे किसी से पूछना नही पडता की कौन मनुष्य है,,, कौन जानवर और कौन पक्षी है ।यह तो है ईश्वरकृत जातिया ।*

*2.मनुष्यकृत जाति:- यह जातियां समाज द्वारा हमे पहचान के रूप में समाजिक व्यवस्था अनुसार बनाई गई है, चाहे बुरी हो या अच्छी,,, तो झगडा ईश्वरकृत जातियों का नही है,, ✋🏻झगडा मनुष्यकृत जातियों का है क्योंकि इन मे खोट है, कमी है क्योंकि मनुष्य ईश्वर नही होते तो इनके काम भी कमियों वाले होते है,, यह अलग बात है की समाजिक बुराईयों के कारण जातियों को उंचा नीचा बनाया या समझा गया।*😊⛳

*👇🏻लेकिन हम सभी एक मनुष्य जाति के हैं ईश्वरकृत जाति के है यह बात है, मुख्य है और समझने लायक है तो आज से अपना मानवीय धर्म को समझे और जो मूर्ख जातिवाद को बढ़ावा देते हैं जाति पर कटाक्ष करते हैं, जाति पर उत्पीड़न शोषण करते है, उसे जाति का मतलब समझाये ।*🙏🏻⛳

*जागरुकता बहुत आवश्यक है जिससे समाज में फैले भ्रम को मिटाया जा सके और सनातनी पुनः एक होकर अपने धर्म और राष्ट्र की रक्षा कर सकें ।*🤝🏻😊

*सभी भगवत्प्रेमियों को आज दिवस की शुभ मंगल कामना 🙏🏻⛳वंदेमातरम_🙏🏻😊⛳*

                   आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
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Wednesday, April 22, 2020

भारतीय खटिया ( खाट ) पर सोने ( निंद्रा ) का लाभ


 
*⚜🚩 भारतीय खटिया ( खाट ) पर सोने ( निंद्रा ) का लाभ‼️ ⚜*

*संपूर्ण दुनिया आज भारत को पुन: विश्वगुरु 👳 मानने को तैयार है। हमने दुनिया को सब सिखाया है, आज का आधुनिक विज्ञान हमारे पूर्वजों 👳 की खोजों और उनके आविष्कार के सामने तुच्छ और बोना दृष्टिगोचर होता है*🙏🏻😳⛳

*आपको यह जानकर बहुत आश्चर्य 🙄 और गर्व 👍होगा कि हमारे पूर्वज,,, अर्थात हमारे दादा के दादा परदादा और उनके भी दादा,,, 👳 सब बहुत बड़े वैज्ञानिक थे...!!*😲😲

*🙏🏻⛳जी हां मित्रों,, हमारी 🚩 भारतीय संस्कृति में प्रत्येक वस्तु निर्माण या आविष्कार का सटीक और वैज्ञानिक कारण होता है,, और वह प्रकृति के नियमों का भी उल्लंघन नहीं करती।।*🙏🏻⛳😊

*ऑस्ट्रेलिया में डेनियल नाम का एक आदमी भारत की देसी खटिया ९९० ऑस्ट्रेलियन डॉलर ( हमारे ६२ हजार रुपए) में बेच रहा है , 🤷🏻‍♂और हम हैं कि 👉 इसे "आउट ऑफ फैशन मान" कर इसकी खटिया खड़ी कर रहे हैं । इसके फायदे फैशन के आगे बौने बन गए हैं ।* 😳✋🏻

👇🏻😊 *"सोने ( नींद ) के लिए" खटिया हमारे पूर्वजों 👳 की सर्वोत्तम खोज है । हमारे पूर्वजों को क्या लकड़ी को चीरना नही आता होगा? वह भी लकड़ी चीर के उसकी पट्टीयां बना कर डबलबेड 🛌बना सकते थे,. जिन्होंने वेद पुराण 📚 लिखे, वह डबलबेड 🛌 नहीं बना सकते थे क्या..?* 🤔

*आधुनिक साइंस 🔬ने विकास के नाम पर मानव 👨🏻‍⚕️ को केवल रोग दिये हैं,, और प्रकृति को दूषित किया है।*

*डबलबेड 🛌 बनाना कोइ रॉकेट-साइंस 🚀  नहीं है । ✋🏻 लकड़ी की पट्टीयों में कीलें ही तो  🔨 ठोकनी होती है । खटिया भी भले ही कोई साइंस न हो.. किंतु एक समझदारी है,, ✋🏻कि कैसे शरीर को अधिक आराम  लाभ मिल सके ⁉️ 😊 खटिया बनाना एक कला है 🙏🏻 उसे रस्सी से बुन कर बनाना पड़ता है और उस में १ कला का सहारा लगता है ।*😊⛳

*👇🏻😊 जब हम सोते हैं , तब सिर और पैर के अतिरिक्त पेट को अधिक रक्त की आवश्यकता होती है, क्योंकि रात हो या दोपहर हो लोग अधिकांश भोजन के उपरांत ही सोते हैं,, 🙏🏻😊 पेट की पाचन क्रिया के लिए अधिक रक्त की आवश्यकता होती है,, इसलिए सोते समय खटिया की जोली ( नीचे को झुकना )  स्वास्थ रखने में लाभ पहुंचाती है।।*😳✔

*दुनिया में जितनी भी आरामदायक कुर्सियां देख लो,, उसमें भी खटिया की तरह जोली बनाई जाती है । बच्चों का पुराना पालना सिर्फ कपड़े की जोली का ही था। ✋🏻😳 लकड़ी का सपाट बनाकर उसे भी बिगाड़ दिया है , आधुनिकता ने 👉 खटिया पर सोने से कमर का दर्द और कंधे का दर्द ( जिसे सर्वाईकल और साईटिका ) कभी नहीं होता था ।*😳

*😊⚜अन्य लाभ*🙏🏻⛳👇🏻

*डबलबेड 🛏के नीचे अंधेरा होता है, जिसके कारण कीटाणु 👾 उत्पन्न होते हैं.. भार में भी अधिक होता है,, ✋🏻 तो प्रतिदिवस सफाई नहीं हो सकती❗️*😕 

*खटिया को रोज सुबह खड़ा कर दिया जाता है और सफाई भी हो जाती है, सूर्य की धूप "सर्वोत्तम कीटनाशक" है,😊 और खटिया को धूप में रखने से खटमल इत्यादि भी नही होते हैं ।* ✋🏻😀

*खटिया कपास की रस्सियों से बनी होने के कारण 👉 सोने के लिऐ , उस पर बिछाने के लिऐ अन्य किसी गद्दे आदि की आवश्यकता नही है। जिससे   कमर को हबा मिलती रहती है और पशीना आदि से भी रीढ़ आदि सुरक्षित रहती है।  लकड़ी से बना बैड 🛌भारतीय वातावरण के लिऐ नही है। यह  ठंडे देशों इंग्लैंड  आदि देशों के लिऐ उपर्युक्त है, उन्ही के कारण भारत मे उपयोग होने लगा। अंग्रेज़ी शासन के बाद हम अधिकतर उनकी लाईफ़ स्टाइल अपनाने लगे।*✋🏻😠

*भारत के ७०% प्रतिशत गाँव में अब भी इसी खटिया पर सोया जाता है। गाँवों के मानव साईटिका व सरवाईकल व्याधि से अभी भी बचे हुऐ है। हम अपनी खटिया पर गौरव करते है।* 😊🙏🏻

*किसानों  👳 के लिए खटिया बनाना अत्यंत सस्ता पड़ता है, मिस्त्री को थोड़ी मजदूरी ही देनी पड़ती है। बस ✋🏻😳 कपास , कुशा, जूट, सरकंडा  स्वयं का सस्ता  होता है। तो स्वयं रस्सी निर्माण कर लेते हैं  😊और खटिया स्वयं ही बुन लेते हैं । 😳 लकड़ी भी स्वयं की ही दे देते हैं , 😳✋🏻अन्य किसी व्यक्ति को लेना हो तो २ हजार से अधिक खर्च नही हो सकता । 😳✋🏻 हां❗️ कपास की रस्सी के बदले नारियल आदि की सस्ती रस्सी से काम चलाना पड़ेगा। आज की दिनांक में कपास की रस्सी महंगी पड़ेगी,, सस्ते प्लास्टिक की रस्सी और पट्टी आ गयी है,,, लेकिन वह सही नही है, असली आनंद नही आएगा❗️ स्वास्थय के लिऐ भी उतनी सही नही है‼️*✋🏻😊

👍 *२ हजार की खटिया के बदले हजारों रूपए की दवा और डॉक्टर का खर्च बचाया जा सकता है। भारत मे यह कुटीर उद्योग धंधे के रूप में भी कारगर था। जिससे समाज मे ताना बाना मज़बूत ।*✋🏻😊🙏🏻 

*घर पर रहें❗️सरकार के नियमों का पालन करे और खटिया पर ही आराम करें ‼️ 🙏🏻🤷🏻‍♂🤷🏻‍♂*

*सभी भगवत्प्रेमियों को आज दिवस की शुभ मंगल कामना 🙏🏻⛳वंदेमातरम_🙏🏻😊⛳*

                   आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

Monday, April 20, 2020

🕊गोरैया का रिश्ता

*💐🕊गोरैया का रिश्ता*💐

*🚩मेरे साथ वाले आंगन में एक आम🥭 का पेड़ और साथ में ही अमरूद🍏 का भी, दुनिया भर के पक्षी🐦 हमारे यहां आते हैं, कभी तोता🦜 बोलता है , कभी कोयल🐧 तो कभी गोरैया🕊,  गोरैया मतलब चिड़िया। दिनभर इन सबकी धमा चौकड़ी मची रहती।  कभी मोर🦚 बोला करते थे, सुबह🌅 सुबह परंतु दिन में तोते की, कौवे 🐧की और इस गौरैया की चिक चिक की सुनकर शोर मच जाता था ,मगर मेरी मां🗣 कहती यह सब गाना गा रहे हैं।*

*🤱मां का दिन शुरू होता तो रात🌑 के बर्तन मांजने से। उसके बाद नहा धोकर जब वो रसोई जाती तो पहला काम करती की एक कटोरी में कुछ अनाज🌽 या दलिये के दाने गोरैया🕊 के लिए रख देती और न जाने कहां से बहुत सारी गौरैया उनकी कटोरी देखते ही मुंडेर पर आ जाती, खिड़की पर रखी हुई उस कटोरी में रखे वह दाने शोर मचा मचा कर खाती।*

*🌝दिन बीते, मेरा बचपन गया, माँ🤱 बूढ़ी हो चली परंतु अब सब बदल गया है। अब खिड़की पर सुबह सुबह केवल एक ही गौरिया🕊 आ कर शोर मचाने लगती है और माँ🤱 एक कटोरी में थोड़ा सा दलिया उसके लिये रख देती है । अकेली मां और उनकी वो अकेली गौरेया।*

*जब उन दिनों माँ ने बिस्तर🛏 पकड़ लिया उस गौरिया ने चहकना भी बंद कर दिया था । सुबह की पहली किरण जैसे बेरंग हो गयी थी , उस निस्वार्थ आवाज के बिना । माँ का उठना, मंदिर में पूजा करना,सब आयु अनुसार वृद्ध होने की वजह से छूटने लगा था।*

*बहुत दिन बीते,माँ बीमार थी, बिस्तर से उठ नही पाती थी अब, एक दिन देखा तो वो गौरैया भी बाहर तुलसी🌿 के मुरझाये पौधे के कीड़े🐛 बीन बीन खा रही थी बगैर आवाज किये ।  निशब्द,मूक, खामोश सी, न चहचहाना न कूदना,निर्जीव सी उदास। उस दिन मुझे खुद पर बहुत खीज सी आयी कि,मैं उस सुकून के लिये, जो उसकी आवाज से आता था,थोड़ा दाना भी नही रख सकता ।*

*अगले दिन सुबह उठते ही चाय के साथ पहला काम यही किया था, एक कटोरी में दस बारह दाने डाल, खिड़की पर रख दिये ।*

*चिरपरिचित आवाज कानो में पड़ गयी उस नन्ही गौरय्या के चहचहाने की परंतु*

*परंतु*

*उसके साथ एक और आवाज थी अंदर के कमरे से माँ की " आज आयी है इतने दिन में "।*
 *कितने दिनो बाद आज माँ उठ के खिड़की तक आयी थी । माँ के चेहरे पर और खिड़की पर अजीब रौनक खिल रही थी । पिताजी भी गौरैया और अपनी बुढ़िया ( मेरी माँ) को देख कर मंद मंद मुस्कुरा रहे थे।*

*वृद्ध एकाकी जीवन में जीव से मोह का अर्थ तब समझ आएगा जब तुम भी वृद्ध हो जाओगे। आइये इन गौरैयों को तथा अपने वृद्धों को नित प्रतिदिन सुबह सुबह मिलकर,बातचीत करके, आयु वृद्धि का दाना डाले।*



*सदैव प्रसन्न रहिये*
*जो प्राप्त है-पर्याप्त है*
🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩

*सभी भगवत्प्रेमियों को आज दिवस की शुभ मंगल कामना 🙏🏻⛳वंदेमातरम_🙏🏻😊⛳*

                   आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

Saturday, April 18, 2020

⛳पुण्य कमा लो,⛳ जीवन संवारो⛳


*⛳पुण्य कमा लो,⛳ जीवन संवारो⛳*

🕉️
*🚩मुझे खुद नहीं पता था कि मैं पुण्य का काम कर रहा हूं। अभी कुछ समय पहले एक मित्र🤝🏻 मिले उन्होंने मुझे बताया कि आपने पुण्य का काम किया । मुझको नहीं पता चला तो मैंने उनसे पूछा कैसे ❓तो उन्होंने बताया कि Facebook में आपकी पोस्ट देखी थी उसमें आपने गौ सेवा के बारे में लिखा✒ था तथा पूछा था कि धर्म 🕉 के बारे में जानने का इच्छुक हो तो अपना नंबर भेजें । उन सज्जन ने अपना नंबर Facebook में भेज दिया । मैंने उनको अपने WhatsApp समूह में जोड़➕ दिया । उनका कहना है कि कुछ दिनों की पोस्टों को देखने ओर पढ़ने के बाद धर्म के बारे में उनके विचार बदलने लगे। और वह कहते हैं कि आज वह सच्चे मायने में धर्म के लिए कुछ करने के लिए तत्पर हैं ।  मुझे यह जानकर खुशी हुई।*


 *मुझे खुद भी नहीं पता था कि मैं धर्म🕉 के लिए निस्वार्थ भाव से एक सेवा कर रहा हूं । जब उसका परिणाम किसी ने स्वयं अपने मुंह🗣 से बताया  तो मुझे बहुत अच्छा लगा ।*😌😊😊

*एक बात मैं आपको बताता हूं धर्म करने के लिए कबूतर🕊 को दाना डालते हो , चींटियों🐜 को आटा डालते हो सिर्फ इसलिए कि उसका पुण्य मिलेगा । क्या आप दाना ना डालो या आटा ना डालो तो क्या कबूतर 🕊को खाने को नहीं मिलेगा,  कबूतर भूखा रह जाएगा । यह आपने उसका पेट भरने के लिए ही नहीं किया यह अपना पुण्य कमाने के लिए किया । कबूतर 🕊आप के दानों के लिए भूखा नहीं बैठा रहता कि आप दाना डालोगे तभी उसका पेट भरेगा।* 

*अब आपको बताता हूं एक और पु्ण्य का पाने का तरीका । लोगों  को धर्म के बारे में सही जानकारी देना।  जैसे कि उन्हें धार्मिक समूह में जोड़ना । जब भी कोई व्यक्ति ऐसे किसी धार्मिक समूह में जुड़ता है और वहां से ज्ञान प्राप्त करता है तो आज नहीं तो कल वह याद करेगा कि आपने उसको धर्म धार्मिक समूह में जोड़ा था । आपको पुण्य मिलेगा । दूसरी बात कबूतर को दाना डालते तो वह भूखा नहीं रहता पर अगर आप आज किसी व्यक्ति को ऐसे धार्मिक समूह में नहीं छोड़ोगे तो जब तक वह नहीं जुड़ेगा सनातन धर्म के मामले में अज्ञानी या भूखा ही रहेगा ।  तो यह लोगों को जोड़ना भी एक तरह से पुण्य पाने का तरीका है । निस्वार्थ भाव से जोड़ने का काम करना चाहिए।  जिसको भी धर्म के ज्ञान से लाभ होगा वह जरूर आपको याद करेगा की आपने उसको इस समूह में जोड़ा था  । आप यूं समझ लीजिए कि आज के मशीनी युग में पुण्य कमाने का यह एक और तरीका है । निस्वार्थ भाव से अपने जानकार अपने रिश्तेदार अपने  पड़ोसियों को जोड़ते जाओ  ।  धर्म प्रचार होगा ही होगा । इसका पुण्य आप सबको मिलेगा ही मिलेगा।*


आप सभी भगवत्प्रेमियों को आज दिवस की *शुभ मंगल कामनाएं*
                   आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
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Thursday, April 16, 2020

कपट


    
       😡 *कपट* 😀 

👉  *मानव को कपट  रहित होना परम आवश्यक है या कपट का सदुपयोग करना आवश्यक है। हमें सोचना चाहिऐ❗️* 🤔 

👉 शास्त्र कहता है - *निर्मल मन जन सो मोहि पावा*।  कहने का तात्पर्य स्वच्छ मन - कुंठा भय अवसाद घृणा क्रोध रहित मानव ही मेरा वरणीय है।

👉 आगे शास्त्र कहता है -  *मोहि कपट छल छिद्र न भावा*। कहने का तात्पर्य  परमात्मा कपट यानि छल रूपी मानव को बिल्कुल भी वरणीय नही मानते। कारण बहां पर करी हुई अमृत कृपा घट मे एक छिद्र भांति है। जहां पर अमृत धीरे धीरे रिसकर व्यर्थ हो जायेगा। मानव उसका उपयोग नही कर सकता या लाभ नही ले पायेगा। 

👉 *हृदय मन में अनेको भाव रहने पर मानव जीवन का उपयोग नही कर पायेगा ।*  बह समस्त प्रकल्प कपटता के संवर्धक होते है। मानव जीवन का हेतु मोक्ष है। परंतु अनेको भावो के कारण बह च्युत हो जाता है।

👉 *कपट मन का मल है* -  जब निस्तारण करने योग्य मल हमारे उदर मे शेष रहता है। मानव चित्त उद्गिनता को व्याप्त रहता है। यानि शांति से दूर रहता है। अन्य भोज्य पदार्थ ग्रहण नही करना चाहता। ऐसे ही चित्त व्याप्त कपटता सही वस्तु के वरण से दूर रखता है। परमात्मा द्वारा प्रदत्त स्वांस प्रस्नांस मानव व्यर्थ कर देता है यानि समय का सदुपयोग नही कर पाता है।

👉 एक मानव को कटु शब्द नही बोलने चाहिए❗️ यह शत प्रतिशत ठीक है । लेकिन कटुता यदि मन में आ जाए तब स्पष्ट मन्तव्य से अवगत करा दे या सानिन्धय का सरलता से त्याग कर दे। जैसे ख़तरा होने पर मछली सहजता से   दूर चली जाती है ।  लेकिन मन में न पाले ।

👉  कटु शब्द न बोलने से १००० गुना आवश्यक है निष्कपट होना । जिस हेतु शास्त्र कहता है - 

*सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात् , न ब्रूयात् सत्यम् अप्रियम् । प्रियं च नानृतम् ब्रूयात् , एष धर्मः सनातन: ॥*

सत्य बोलना चाहिये, प्रिय बोलना चाहिये, सत्य किन्तु अप्रिय नहीं बोलना चाहिये । प्रिय किन्तु असत्य नहीं बोलना चाहिये ; यही *सनातन धर्म है ॥*

🖕🏼 यही सरलतम्  रूप में कपट की व्याख्या है।💐👏

👉 तभी कहा निर्मल मन यानि बिना राग द्वेष का  ही मानव ही सर्वविद्  वरणीय होता है। 

👉 शास्त्रों में एक भी वरणीय भक्त ऐसा नही जो कपटी हो । 😡 लेकिन  अधिकतर मानव- *कपट मुक्त होने हेतु क्रोध करते या कटु शब्द बोलते दिखते हैं ।*  श्राप आदि कटु शब्द नही तो और क्या है ❓ 😫अतः *निष्कपट होना । मन वचन कर्म एक होना ही निष्कपट भाव का दर्शन लाभ कराने में सहयाक सिद्ध होता है।*

👉 कोई भी शब्द घृणित या निम्न कोटि का नही होता। कपट भी प्रकृति प्रदत्त एक शब्द है। तो घृणित उपेक्षित कैसे हो सकता है❓ 

👉 मानव द्वारा सृजन समस्त पदार्थों के मूल मे कपटता ही आधार होता है।
 आज का परमाणु बॉम्ब सबसे सरल उदाहरण है। जिसके प्रयोग से मानव भय से काँपते है। इसके सृजन मे मानव की कपटता की भावना अन्तर्निहित भावना का परिणाम है।

👉 मानव कपट का उपयोग स्व भोग्य या विलासिता में करने के कारण बह आज भस्मासुर की तरह बन  चुका है। *कपट का प्रयोग दूसरो को हानि पहुँचाने के  कार्य को सिद्ध कराने मे करने से स्वयं का अमूल्य मानव जीवन व्यर्थ गँवा देता है।*

👉 कपट का प्रयोग दूध से दही मक्खन बनाकर घृत बनाने हेतु खट्टे पदार्थ की तरह प्रकृति के साथ करने पर मानवीयता सिरमोर होती है।

*कहने का तात्पर्य हुआ प्रकृति प्रदत्त कोई भी पदार्थ या शब्द निर्थक नही है। उसका उपयोग करना मानव*
नही जानता। परिणाम 👉 *अवसाद घृणा कुंठा,  मानव के चित्त व अन्त:करण मे व्याप्त होकर मानव के विवेक रूपी घृत के दर्शन से विलग ( दूर ) रखने में सहायक सिद्ध हो जाता है। जिससे मानव जीवन निर्थक होकर नि:शेष 👎 हो जाता है।* 😦😖😫👏

  *अत: हम कपट का बहुत सूक्ष्मता के साथ प्रयोग करना चाहिऐ। जैसे आज कॉरोना का सटीक परिणाम हमारे सम्मुख साश्वत है। सनातन संस्कृति 🚩 में कपटता से दूर ❌🛑 रहने के लिऐ कहा गया है।* हम भी ध्यान देकर मानव जीवन का सदुपयोग करें।🌸🌸👏👏🌸🌸👏👏👏

                   आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

Wednesday, April 15, 2020

गलत तरीके से कमाया गया धन💰, आपकी खुशियों को ले डूबता है‼


*🤔गलत तरीके से कमाया गया धन💰, आपकी खुशियों को ले डूबता है‼*

*आज के समय में हर व्यक्ति धन💰 प्राप्ति की चाह में इस तरह से अंधा🥺 बन गया है कि उसके पास यह चिंतन😌 करने का ही समय⏱ नहीं है कि वह जिस मार्ग द्वारा वह धन अर्जित कर रहा है, क्या नैतिक द्रष्टि👁 से वह उचित है ❓ धन की देवी को लक्ष्मी👣 कहा गया है | माँ लक्ष्मी स्वभाव से बड़ी चंचल है | वह एक स्थान या एक घर 🏚में अधिक समय तक नहीं रूकती | जो व्यक्ति अनैतिक तरीकों से धन💰 अर्जित करते है उनके पास लक्ष्मी 👣कुछ समय के लिए तो रूकती है किन्तु कुछ समय बाद वहाँ से चली भी जाती है और अपने साथ-साथ उस घर से खुशियाँ☺ भी ले जाती है |*

*कानून⚖ का उल्लंघन करते हुए धन 💰अर्जित करना, दूसरों का धन हड़प(छीन👊🏿 लेना, चोरी या लूट का पैसा, जुए 🃏द्वारा पैसा कमाना, ऐसे बहुत से गलत ❌तरीके है धन 💰प्राप्त करने के, जो एक बार तो आपको कुछ समय⏱ के लिए ख़ुशी दे सकते है किन्तु बाद में विकट👿 परिस्थितियों को ही जन्म देते है | ऐसे व्यक्ति के परिवार👩‍👩‍👧‍👦 से हर खुशियाँ गायब होने लगती है | ऐसे व्यक्ति को लाख चिंतन करने बाद भी परिवार पर आने वाले दुखों ☠का मूल कारण तक समझ नहीं आता |*

*यह सत्य✔ है कि धन💰 के बिना हमारा काम नहीं चल सकता, थोड़ा 😌बहुत धन हमें चाहिए और  इस थोड़े धन को नेक तरीके से अर्जित करने का सामर्थ्य 💪🏻लगभग सभी लोगों में होता है | किन्तु लोगों की समस्या यह है कि उन्हें सिर्फ इतना धन नहीं चाहिए कि जिससे उनका खर्च आसानी🙂 से चल सके | उन्हें तो धनवान बनना है, धन कमाने की दौड़ 🏃में सबसे आगे निकलना है | अपनी आने वाली पीड़ियों को इतना धन देकर जाना है कि वे जन्म लेते ही धनाड्य👑 कहलाये | बस यही सोच 🤔गलत तरीकों से धन कमाने के कारणों को जन्म देती है |*

*धन 💰द्वारा बहुत सी खुशियाँ 😊तो खरीदी जा सकती है किन्तु सारी नहीं❌, अभी भी बहुत कुछ शेष है जो खरीदना बाकी है, क्या धन के द्वारा यह सब खरीद पाना संभव है ❓ सारी खुशियाँ प्राप्त कर पाना, धन के द्वारा संभव नहीं है | यह सब आपके संस्कारों 👏🏻पर निर्भर करता है और संस्कार👏🏻 बनते है आपके पूर्वजन्म के अच्छे कर्मों🙏🏻 से | इसलिए अच्छे कर्मों के द्वारा संस्कार कमाए, गलत👿 तरीकों से धन नहीं❌।*
⛳⛳⛳⛳⛳⛳⛳⛳⛳⛳⛳
                   आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
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इन 4 महिलाओं का हर हाल में सम्मान करना चाहिए

*इन 4 महिलाओं का हर हाल में सम्मान करना चाहिए*
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तुलसीदासजी द्वारा रचित रामचरित मानस नीति-शिक्षा का एक महत्मपूर्ण ग्रंथ है। इसमें बताई गई कई बातें और नीतियां मनुष्य के लिए बहुत उपयोगी मानी जाती हैं। जिनका पालन करके मनुष्य कई दुखों और परेशानियों से बच सकता है।

रामचरित मानस में चार ऐसी महिलाओं के बारे में बताया गया है, जिनका सम्मान हर हाल में करना ही चाहिए। इन चार का अपमान करने वाले या इन पर बुरी नजर डालने वाले मनुष्य महापापी होते हैं। ऐसे मनुष्य की जीवनभर किसी न किसी तरह से दुख भोगने पड़ते ही है।

*अनुज बधू भगिनी सुत नारी, सुनु सठ कन्या सम ए चारी।*
*इन्हिह कुदृष्टि बिलोकइ जोई, ताहि बधें कछु पाप न होई।।*

_*अर्थात- छोटे भाई की पत्नी, बहन, पुत्र की पत्नी और अपनी पुत्री- ये चारों एक समान होती हैं। इन पर बुरी नजह डालने वाले या इनका सम्मान न करने वाले को मारने से कोई पाप नहीं लगता।*_

*१. छोटे भाई की पत्नी*

छोटे भाई की पत्नी बहू के समान होती है। उस पर कभी बुरी नजर नहीं डालनी चाहिए। ऐसा करने वाले मनुष्य का परिणाम बुरा ही होता है। रामचरितमानस के अनुसार, किष्किन्धा के राजा बालि ने अपने छोटे भाई सुग्रीव को राज्य से बाहर निकाल कर उसकी पत्नी रूमा को अपने अधीन कर लिया था।

छोटे भाई की पत्नी पर बुरी दृष्टि डालना या उसके साथ बुरा व्यवहार करना महापाप होता है। इसी वजह से खुद भगवान राम ने बाली का वध करके उसे उसके कर्मों की सजा दी थी। इसलिए हर मनुष्य को अपने छोटे भाई की पत्नी को अपनी बहू के समान ही समझना चाहिए।

*२. पुत्र की पत्नी*

पुत्र की पत्नी बेटी के समान मानी जाती है। अपनी बहू के सम्मान की रक्षा करना सबका धर्म होता है। मनुष्य को भूलकर भी अपनी बहू का अपमान नहीं करना चाहिए, न ही उसका अपमान होते देख, उस बात का समर्थन करना चाहिए।

रामायण में दी गई एक घटना के अनुसार, एक बार स्वर्ग की अप्सरा रंभा कुबेर के पुत्र नलकुबेर से मिलने जा रही थी। रास्ते में रावण ने उसे देखा और बुरी नीयत से रोक लिया। रावण को कामातुर होता देख रंभा ने कहा कि आज उसने कुबेर के पुत्र नलकुबेर को मिलने का वचन दिया है और इसलिए वह रावण की पुत्रवधू के समान है।

रंभा के ऐसा कहने पर भी रावण ने उसकी बात नहीं मानी और उसके साथ बुरा व्यवहार किया। रावण के ऐसा करने पर रंभा ने क्रोधित होकर उसे किसी भी स्त्री पर नजह डालने पर उसके सिर के सौ टुकड़े हो जाने का और किसी स्त्री की वजह से ही उसका विनाश होने का श्राप दे दिया था। पुत्रवधू का यही श्राप रावण के विनाश का कारण बना।

*३. अपनी पुत्री*

अपनी पुत्री का सम्मान करना, हर बुरी परिस्थिति से उसे बचाना पिता का धर्म होता है। अपनी पुत्री के साथ बुरा व्यवहार करना, उसे बुरी दृष्टि से देखने से बड़ा पाप और कोई नहीं होता।

ऐसा कर्म करने वाला मनुष्य महापापी माना जाता है और उसे जीवन भर दुःखों का सामना करना ही पड़ता है। ऐसा मनुष्य चाहे कितने ही दान धर्म कर ले, लेकिन उसके पाप का निवारण नहीं होता। इसलिए मनुष्य को भूलकर भी अपनी पुत्री का अपमान नहीं करना चाहिए।

*४. बहन*

मनुष्य को अपनी छोटी बहन को पुत्री और बड़ी बहन को माता के समान समझना चाहिए। जो मनुष्य अपनी बहन के मान की रक्षा नहीं करता या अपने निजी स्वार्थ के लिए उसका अपमान करता है, उसे राक्षस प्रवृत्ति का माना जाता है।

बहन का अपमान या उसके साथ बुरा व्यवहार करने वाले व्यक्ति को जीवित होते हुए भी नरक के समान दुःख उठाने पड़ते हैं। मनुष्य को किसी भी हाल में अपनी बहन का अपमान नहीं करना चाहिए और हमेशा उसकी रक्षा करना चाहिए।

सभी भगवत्प्रेमियों को आज दिवस की *"मंगलमय कामना"*----🙏🏻🙏🏻🌹

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                   आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
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Tuesday, April 14, 2020

कैसे गीत मल्हार लिखूं....!!

🙏🏻🌸🌼गीत🌼🌸🙏🏻


जलती ज्वाला देखी थी कल,इक तितली की पाँखों में,
भय का मातम देख रहा हूँ,आज भ्रमर की आँखों में,
उजड़े उजड़े उपवन देखे,सहमी सहमी कली मिली,
शोक समाहित पनघट सारे,सूनी चौखट गली मिली,

कोयल कागा एक हुए अब,कैसे मुक्त विचार लिखूँ ।।(1)
आग उगलती आज हवायें,कैसे गीत मल्हार लिखूँ ।।

काली काली करतूतों की,आज मिली छवि धुली धुली,
चंदन की खुशबू में जैसे,आ करके दुर्गन्ध घुली,
राजनीति की चौपालों पर,खेल अभी भी जारी है,
इसनें लूटा उसनें लूटा,अब अगले की बारी है,

साँप नेवले हैं गठबन्धित,किसमें* *भरा विकार लिखूँ ।।(2)
आग उगलती आज हवायें,,,,,

कितनें शीश चढाये हमनें,इंकलाब की भाषा में,
कितनें दीप बुझाये हमनें,एक किरण की आशा में,
हिन्दू मुस्लिम सिक्ख पारसी,एक पालकी लानें को,
हर एक यहाँ पर आतुर था,अपनें प्राण लुटाने को,

फाँसी के फन्दों पर लटके,बलिदानी परिवार लिखूँ ।।(3)
आग उगलती आज हवायें,,,,,,

महा-मूर्ति नें चाहा होता,सत्ता भी झुक सकती थी,
राजगुरू सुखदेव भगत की,फाँसी भी रुक सकती थी,
चाचा जी उस रोज अगर तुम,इतना भेद छुपा जाते,
अल्फ्रेड पार्क में शेखर को,गीदड़ घेर नहीं पाते,

घर में आग लगाने वाले,घर के ही गद्दार लिखूँ ।।(4)
आग उगलती आज हवायें,,,,,,

जब राजतिलक की बेला पर,कुटिल मंथरा ऐंठी हो,
बच्चों की रखवाली में घर,आकर डायन बैठी हो,
अपनें और पराये में तब,भेद बताना मुश्किल है,
घर के भेदी लंका ढाते,यह समझाना मुश्किल है,

सारे चेहरे एक सरीखे,फिर भी मैं प्रतिकार लिखूँ ।।
आग उगलती आज हवायें,,,,,,

*******************
          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
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प्रभु श्रीराम स्तुति भावार्थ सहित



*प्रभु श्रीराम स्तुति भावार्थ सहित*

 *रामचंद्र कृपालु भजमन हरणभवभयदारुणं ।*
*नवकञ्जलोचन कञ्जमुख करकञ्ज पदकञ्जारुणं ॥१॥*

*व्याख्या:* हे मन कृपालु श्रीरामचन्द्रजी का भजन कर । वे संसार के जन्म-मरण रूपी दारुण भय को दूर करने वाले हैं । उनके नेत्र नव-विकसित कमल के समान हैं । मुख-हाथ और चरण भी लालकमल के सदृश हैं ॥१॥

*कन्दर्प अगणित अमित छवि नवनीलनीरदसुन्दरं ।*
*पटपीतमानहु तडित रूचिशुचि नौमिजनकसुतावरं ॥२॥*

*व्याख्या:* उनके सौन्दर्य की छ्टा अगणित कामदेवों से बढ़कर है । उनके शरीर का नवीन नील-सजल मेघ के जैसा सुन्दर वर्ण है । पीताम्बर मेघरूप शरीर मानो बिजली के समान चमक रहा है । ऐसे पावनरूप जानकीपति श्रीरामजी को मैं नमस्कार करता हूँ ॥२॥

*भजदीनबन्धु दिनेश दानवदैत्यवंशनिकन्दनं ।*
*रघुनन्द आनन्दकन्द कोशलचन्द्र दशरथनन्दनं ॥३॥*

*व्याख्या:* हे मन दीनों के बन्धु, सूर्य के समान तेजस्वी, दानव और दैत्यों के वंश का समूल नाश करने वाले, आनन्दकन्द कौशल-देशरूपी आकाश में निर्मल चन्द्रमा के समान दशरथनन्दन श्रीराम का भजन कर ॥३॥

*शिरमुकुटकुण्डल तिलकचारू उदारुअङ्गविभूषणं ।*
*आजानुभुज शरचापधर सङ्ग्रामजितखरदूषणं ॥४॥*

*व्याख्या:* जिनके मस्तक पर रत्नजड़ित मुकुट, कानों में कुण्डल भाल पर तिलक, और प्रत्येक अंग मे सुन्दर आभूषण सुशोभित हो रहे हैं । जिनकी भुजाएँ घुटनों तक लम्बी हैं । जो धनुष-बाण लिये हुए हैं, जिन्होनें संग्राम में खर-दूषण को जीत लिया है ॥४॥

*इति वदति तुलसीदास शङकरशेषमुनिमनरञ्जनं ।* *ममहृदयकञ्जनिवासकुरु कामादिखलदलगञ्जनं ॥५॥*

*व्याख्या:* जो शिव, शेष और मुनियों के मन को प्रसन्न करने वाले और काम, क्रोध, लोभादि शत्रुओं का नाश करने वाले हैं, तुलसीदास प्रार्थना करते हैं कि वे श्रीरघुनाथजी मेरे हृदय कमल में सदा निवास करें ॥५॥

*मनु जाहि राचेउ मिलिहि सो बरु सहज सुन्दर सावरो ।*
*करुना निधान सुजान सीलु सनेहु जानत रावरो ॥६॥*

*व्याख्या:* जिसमें तुम्हारा मन अनुरक्त हो गया है, वही स्वभाव से सुन्दर साँवला वर (श्रीरामन्द्रजी) तुमको मिलेगा। वह जो दया का खजाना और सुजान (सर्वज्ञ) है, तुम्हारे शील और स्नेह को जानता है ॥६॥

*एही भाँति गौरी असीस सुनी सिय सहित हिय हरषीं अली ।*
*तुलसी भवानी पूजी पुनि-पुनि मुदित मन मन्दिर चली ॥७॥*

*व्याख्या:* इस प्रकार श्रीगौरीजी का आशिर्वाद सुनकर जानकीजी समेत सभी सखियाँ हृदय मे हर्षित हुईं। तुलसीदासजी कहते हैं, भवानीजी को बार-बार पूजकर सीताजी प्रसन्न मन से राजमहल को लौट चलीं ॥७॥

*जानी गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि ।*
*मञ्जुल मङ्गल मूल बाम अङ्ग फरकन लगे ॥८॥*

*व्याख्या:* गौरीजी को अनुकूल जानकर सीताजी के हृदय में जो हर्ष हुआ वह कहा नही जा सकता। सुन्दर मंगलों के मूल उनके बाँये अंग फड़कने लगे ।।८॥

सभी भगवत्प्रेमियों को आज दिवस की *"मंगलमय कामना"*----🙏🏻🙏🏻🌹

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                    आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

मनुष्य मांसाहारी या शाकाहारी

*मनुष्य मांसाहारी या शाकाहारी ?*
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*परमपिता परमात्मा ने प्राणियों के आहार का निर्धारण स्वतः ही किया है जैसे-गाय, हिरण,हाथी,घोड़े,गदहों आदि पशुओं के लिए घास शाक, फूल पत्ते आदि और बाघ,सिंह, कुत्ते, बिल्ली आदि के लिए मांस। परमात्मा ने समस्त प्राणियों के शरीर की रचना उनके भिन्न भिन्न आहार को सहजता से खाने एवं पचाने योग्य ही बनाई है।*

अब देखिये कि मांसाहारी और शाकाहारी प्राणियों के शरीर की रचना में परमात्मा ने किस प्रकार भेद निर्माण किया है, यथा-

(1) शाकाहारी--प्राणियों के मुख म़े दाढ़े होती हैं जिससे वे अन्न को पीस देते हैं। दांतों में अंतर नहीं होता।

(1)मांसाहारी:-प्राणियों के मुख के अग्र भाग में तीक्ष्ण नुकीले दो दांत किल्ले रुप में होते हैं जिसे हम Canine कहते हैं, ताकि वो अन्य प्राणियों को फाड़-फाड़कर खा सकें और उनके दाढ़े नहीं होने से यह मांस रुपी भोजन को सीधा सटकते हैं,चबाकर या पीसकर नहीं खाते तथा दांतों में भी अन्तर होता है।

(2) शाकाहारी--प्राणी होठ से पानी पीते हैं। घूंट घूंट कर पीते हैं।

(2) मांसाहारी--जीभ से चाट-चाट कर(चप चप करके) पानी पीते हैं।

(3) शाकाहारी--इनकी संतान की आंखें पैदा होते ही खुलती हैं,बंद नहीं रहती।

(3) मांसाहारी--इनके बच्चों की आंखें पैदा होने पर बंद रहती हैं,जो 2-3-4 दिनों बाद खुलती हैं।

(4) शाकाहारी--तीक्ष्ण नुकीले नाखून नहीं होते,एक शफ या दो शफ रहते हैं,पंजे नहीं होते।

(4) मांसाहारी--पंजों पर नाखून तीक्ष्ण व नुकीले होते हैं ताकि शिकार को आसानी से फाड़कर उसे खा सकें।

(5) शाकाहारी--पांव की रचना से चलते समय आवाज हो सकती है।

(5) मांसाहारी--पांव के तलवे ऐसे गद्दीदार होते हैं जिससे चलने में आवाज न हो,ताकि अपने शिकार को सुगमता से पकड सकें।

(6) शाकाहारी--बचपन के दांत गिरकर पुनः नये दांत आते हैं।

(6) मांसाहारी--बचपन के दांत गिरकर पुनः दूसरे नये दांत नहीं आते।

(7) शाकाहारी-आंतों की लम्बाई उनके शरीर से 8 से 10 गुना बड़ी होती है।

(7) मांसाहारी--आंतों की लम्बाई कम होती है,कारण? मांस आंतों में ज्यादा समय न रहे।

(8) शाकाहारी--हरित द्रव्य जैसे साग सब्जी आदि पचाने की शक्ति होती है।

(8) मांसाहारी--हरित द्रव्य पचाने की क्षमता नहीं होती।

(9) शाकाहारी--लीवर व पित्ताशय छोटा होता है।

(9) मांसाहारी--लीवर व पित्ताशय शरीर के परिमाण से बड़ा रहता है।

(10) शाकाहारी--आंखें बादाम जैसी आकृति की होती हैं और रात्रि/अंधेरे में पूर्णतः नहीं देख सकते।

(10) मांसाहारी--आंखें गोल होती हैं,रात्रि/अंधेरे में स्पष्ट दिखायी पड़ता है।

(11) शाकाहारी--साधारणतः रात्रि में सोते हैं तथा दिन में जागते एवं चलते फिरते हैं।

(11) मांसाहारी--रात्रि में चलते-फिरते हैं, दिन में प्रायः सोते रहते हैं।

(12) शाकाहारी--क्रूरता,धोखाधड़ी आदि नहीं करते,बलवान होते हैं,इनके कार्य करने की क्षमता अधिक होती है तथा इनमें आत्मिक व शारिरिक बल अधिक पाया जाता है।

(12) मांसाहारी--क्रूर,धोखेबाज,दगाबाज,एवं चालाक प्रकृति के होते हैं,आत्मिक व शारिरिक शक्ति कम रहने के कारण कार्य करने की क्षमता कम होती है।

(13) शाकाहारी--भूखा रहने की क्षमता बहुत होती है तथा भूख रहने पर भी किसी को हानि पहुंचाने की  अथवा हिंसा करने की भावना नहीं रखते।

(13) मांसाहारी--भूख न रहने पर भी दूसरे प्राणियों को मारते हैं।

(14) शाकाहारी--ये स्वभावतः साधन होते हुए भी शिकार नहीं करते,और न ही ये शिकार कला में निपुण होते हैं।

(14) मांसाहारी--किसी हथियार या साधन के बिना ही/भी शिकार कर सकते हैं। मांसाहारी जीव शिकार कला में स्वाभाविक ही निपुण होते हैं।

(15) शाकाहारी--श्वास-प्रश्वास क्रिया धीमी अर्थात् मंद गति होने के कारण ये दीर्घ जीवन(लम्बी आयु) वाले होते हैं तथा समाज में रहना पसंद करते हैं।

(15) मांसाहारी--श्वसन प्रक्रिया तेज अर्थात् गतिमान होने के कारण ये दीर्घ आयु वाले नहीं होते तथा समूह में अर्थात् झुंड़ में रहना पसंद नहीं करते।

(16) शाकाहारी--भाग-दौड़ (परिश्रम) करने पर पसीना आता है।

(16) मांसाहारी--छलांग मारते हुए अर्थात् बहुत दौड़ने (परिश्रम करने पर ) पर भी पसीना नहीं आता।

(17) शाकाहारी--खून पीने की इच्छा स्वाभाविक रुप से नहीं होती। खून पचा भी नहीं सकते। इनका रक्त क्षारयुक्त होता है।

(17) मांसाहारी--खून पीने की तीव्र इच्छा होती है और खून पचा सकते हैं। इनका रक्त आम्लयुक्त होता है।

(18) शाकाहारी--शरीर की बाहरी ऊर्जा का उत्सर्जन अधिक होता है।

(18) मांसाहारी--शरीर की ऊर्जा कम उत्सर्जित होती है,अतः शरीर से बाहर उत्सर्जन कम मात्रा में होता है।

(19) शाकाहारी--माँ का वात्सल्य प्रेम, ममता अधिक रहता है,भूख लगने पर भी अपने बच्चों को माँ कदापि नहीं खाती।

(19) मांसाहारी--हिंसक जीव मातृत्व में क्रूरता से भूख लगने पर अपने बच्चों को स्वयं खा जाते हैं। घरेलू बिल्ली को खुद ही अपने बच्चों को खाते हुए अक्सर देखा गया है

(20) शाकाहारी--खाद्य पाचन के लिए जो एन्ज़ाइम तैयार होता है वह केवल वनस्पती-जन्य पदार्थों को ही पचा सकता है।वनस्पति के सेवन से एसिड टॉक्सिन नहीं होते, उत्तेजना न होने से स्वभाव शान्त व दयालु किस्म का होता है।

(20) मांसाहारी--मांस को पचाने वाला एन्ज़ाइम तैयार होता है। मांस में एसिड और Toxins बहुत हैं जिसके कारण उत्तेजना होती है,परन्तु शक्ति नहीं आती तथा हिंसक प्राणियों का स्वभाव क्रूर व भयानक किस्म का होता है।

अब आप स्वयं ही फैंसला करें कि हम मनुष्य किस श्रेणी में आते हैं मांसाहारी या शाकाहारी ????
परमात्मा ने मानव प्राणी को शाकाहारी ही बनाया है जो कि इसकी शरीर रचना से सिद्ध होता है। जन्म से प्राप्त मन के झुकाव को Nature स्वभाव कहते हैं और जन्म के बाद सीखी हुई बातों को Habbit आदत कहते हैं।

*मनुष्य स्वभावतः शाकाहारी है, मांसाहार एक आदत है जो इंसान ने जबर्दस्ती अपनाई है। प्रयोग के लिए एक ६-७ मास का नन्हे शिशु के सामने लाल-लाल पपीते के टुकड़े थाली में रखे गए और दूसरी थाली में रक्त से सने हुए मांस के लाल-लाल टुकड़े रखे गए,जब शिशु को उन थालियों की दिशा में छोड़ा गया,तो यह देखा गया कि वह नादान निरामिष शिशु पपीते के टुकड़े की ओर ही गया, मांस के टुकडे़ उसे आकर्षित नहीं कर सके। इससे स्पष्ट होता है कि मनुष्य मांसाहारी प्राणी नहीं है,शाकाहारी है । अतः हम अपने स्वाद की खतिर मूक पशुओं का वध न करें और एक शाकाहार एवं सात्विक जीवन अपनाएं।*


सभी भगवत्प्रेमियों को आज दिवस की *"मंगलमय कामना"*----🙏🏻🙏🏻🌹

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             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
                  मुंगेली छत्तीसगढ़
    ८१२००३२८३४-/-७८२८६५७०५७

Thursday, April 9, 2020

आज का संदेश

*इस दृश्य मान जगत में जन्म मरण का खेल अभिराम चल रहा है। इस प्रकृति के जादू घर में कुछ भी स्थिर या नित्य नहीं है।*
*अंत में आत्मा युक्त  सूक्ष्म- शरीर से वियुक्त होकर तो वह सर्वथा घृणित ,हेय , हो जाता है। एवं हम उसे श्मशान में ले जाकर फूक डालते हैं या भीषण सुनसान स्थान में जमीन खोदकर गाड़ देते हैं। यही तो परिणाम है,, इस शरीर का।*

*आज प्यारी स्त्री, प्राण प्रियतम पति, श्रद्धास्पद  माता- पिता,अभिन्न हृदय मित्र, प्राणों के पुतले प्यारे पुत्र आदि को परस्पर पाकर हम अपने को परम सुखी समझते हैं । सबके प्राण हंसते हैं ,,,,*
*परंतु दूसरे ही दिन मृत्यु के भयानक आघात से हमारे यह प्राण प्यारे आत्मीय हम से बिछड़ जाते हैं। हमारा प्यार का भंडार लूट लिया जाता है। हम "हाय हाय" करते हैं, रोते हैं चिल्लाते हैं ,,पर कुछ भी नहीं कर पाते , यही हाल संसार की सभी वस्तुओं का है।*

*आज हम अपने इस शरीर से माता-पिता ,स्त्री स्वामी, पुत्र कन्या ,आदि से प्रेम करते हैं,, उनके बिना क्षण भर भी नहीं रह पाते, उनका थोड़ा सा भी अदर्शन हमें असहाय हो जाता है।,,, पर जब हम उन्हें छोड़ जाते हैं और दूसरे चोले में पहुंच जाते हैं , तब उनका स्मरण भी नहीं करते। न मालूम कितनी बार कितनी योनियों में हमारे प्रिय माता-पिता ,स्त्री ,पुत्र, यस, कीर्ति, घर, जमीन हो चुके परंतु आज हमें उनका स्मरण तक नहीं है।*

*ऐसे विनाशी क्षण स्थायी  संबंध को यथार्थ संबंध समझकर सुखी दुखी होना मूर्खता नहीं है तो क्या है ?,,,*
*भगवान हमारे सदा संगी हैं, प्राणों के प्राण हैं ,आत्मा के आत्मा है । उन प्रभु को छोड़कर हम अन्य किसी से भी प्रेम करेंगे, उसी में धोखा होगा ,,जिसको चाहेंगे ,वही दगा देगा।*

*जीवन मृत्यु उनका--- परमात्मा प्रभु का खेल है,,, सब में सब समय सब ओर से उन्हीं को देखो, पकड़ लो। तभी जीवन सार्थक होगा, तभी सुख के--- सच्चे सुख के--- परमानंद के यथार्थ दर्शन होंगे।*

सभी भगवत्प्रेमियों को आज दिवस की *"मंगलमय कामना"*----🙏🏻🙏🏻🌹

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न्यू २

प्रति मां. मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल जी रायपुर , छत्तीसगढ़ शासन विषय : आर्थिक सहायता,आवास, तथा आवासीय पट्टा दिलाने बाबत् आदरणीय महोदय,   ...