Monday, May 25, 2020

स्त्रियों को क्यों नहीं फोड़ना चाहिए नारियल ?

*स्त्रियों को क्यों नहीं फोड़ना चाहिए नारियल  ?*

*स्त्रियों को पूजा से संबधित कार्यो में कभी भी नारियल नहीं फोड़ना चाहिए. आपने देखा होगा की अधिकत्तर शुभ कार्यो एवं धार्मिक संबंधित कार्यो में नारियल का प्रयोग किया जाता है. बिना नारियल के पूजा को अधूरा माना जाता है. नारियल से शारीरिक दुर्बलता भी दूर होती है।*

*नारियल को श्रीफल के नाम से भी जाना जाता है भगवान विष्णु जब पृथ्वी में प्रकट हुए तब स्वर्ग से वे अपने साथ तीन चीजे भी लाये. जिनमे पहली चीज़ थी माता लक्ष्मी, दूसरी चीज वे अपने साथ कामधेनु गाय लाये थे तथा तीसरी व आखरी चीज़ थी नारियल का वृक्ष।*

*क्योकि यह भगवान विष्णु एवं माता लक्ष्मी का फल है यही कारण है की इसे श्रीफल के नाम से जाना जाता है. इसमें त्रिदेवो ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश का वास होता है।*

*महादेव शिव को श्रीफल अर्थात नारियल अत्यन्त प्रिय है तथा श्रीफल में स्थित तीन नेत्र भगवान शिव के त्रिनेत्रों को प्रदर्शित करते है. देवी देवताओ को श्री फल चढ़ाने से धन संबंधित समस्याओं का समाधान होता है।*

*हमारे हिन्दू सनातन धर्म के हर पूजा में श्रीफल अर्थात नारियल का महत्वपूर्ण योगदान है, चाहे वह धर्म से संबंधित वैदिक कार्य हो या देविक कार्य कोई भी कार्य नारियल के बलिदान के बिना अधूरी मानी जाती है।*

*परन्तु यह भी एक तथ्य है की स्त्रियों के द्वारा नारियल को नहीं फोड़ा जा सकता क्योकि श्रीफल अर्थात नारियल एक बीज फल है जो उत्पादन या प्रजनन का कारक है. श्रीफल प्रजनन क्षमता से जोड़ा गया है. स्त्रियाँ बीज रूप में ही शिशु को जन्म देती है यही कारण है की स्त्रियों को बीज रूपी नारियल को नहीं फोड़ना चाहिए।*

*ऐसा करना शास्त्रों में अशुभ माना गया है . देवी देवताओ की पूजा साधना आदि के बाद केवल पुरुषों द्वारा ही नारियल को फोड़ा जा सकता है।*

*शनि की शांति  हेतु भी नारियल के जल से महादेव शिव का रुद्राभिषेक करने का शास्त्रीय प्रावधान है. हमारे सनातन धर्म के अनुसार श्रीफल शुभ, समृद्धि, शांति तथा उन्नति का सूचक माना जाता है. किसी व्यक्ति को सम्मान देने के लिए भी शाल के श्रीफल को लपेट कर दिया जाता है।*

*हमारे हिन्दू समाज में यह परम्परा युगों से अब तक लगातार चली आ रही है की किसी भी शुभ कार्य अथवा रीती रिवाजो में श्री फल वितरण किया जाता है. जब विवाह सुनिश्चित हो जाए अथवा तिलक लगाने का कार्य हो तो भी श्रीफल भेट किया जाता है।* 

*कन्या के विदाई के समय उसके पिता द्वार अपनी पुत्री को धन के साथ श्रीफल दिया जाता है. यहाँ तक की अंतिम संस्कार के कार्यो में भी चिता के साथ नारियल जलाए जाते है. धार्मिक अनुष्ठान में कर्मकांडो में सूखे नारियल के साथ होम किया जाता है।*

*श्री फल कैलोरी से भरपूर होता है, तथा इसकी तासीर ठंडी होती है. श्रीफल में अनेक पोषक तत्व विध्यमान होते है. श्रीफल के वृक्ष के तनो से जो रस निकलता ही उसे नीरा कहा जाता है वह काफी लिज्जदार पेय माना जाता है।*

*शुक्रवार को महालक्ष्मी की पूजा में मंदिर में नारियल रखे तथा रात्रि के समय इस नारिया को अपने तिजोरी में डाल ले. अगली शुभ इस नारियल को निकालकर श्री गणेश के मंदिर में अर्पित कर दे. आप की धन से संबंधित सभी समस्याओं का समाधान होगा तथा माता लक्ष्मी की कृपा आप पर होगी।*

*एकाक्षी नारियल के संबंध में कहा जाता है की यह बहुत ही दुर्लभ नारियल होता है अधिकत्तर जटाओं वाले नारियल में दो या तीन छिद्र दिखाई देते है परन्तु एकाक्षी नारियल में केवल एक ही छिद्र होता है।* 

*इस नारियल के बारे में बतलाया गया है की यह बहुत ही चमत्कारी होता है. इसको घर में रखने से महालक्ष्मी की प्राप्ति होती है तथा मनुष्य को कभी भी धन से संबंधित समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ता।*

*नारियल बाहर से सख्त होता है परन्तु अंदर से यह नरम होता है. अतः हमें भी नारियल से सिख लेनी चाहिए तथा इसी की तरह बाहर से कठोर होते हुए भी अंदर से नरम रहना चाहिए।*

                   आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

Sunday, May 24, 2020

पत्नी वामांगी क्यों कहलाती है?

 
*पत्नी वामांगी क्यों कहलाती है?*
〰️〰️🔸〰️🔸〰️🔸〰️〰️
शास्त्रों में पत्नी को वामंगी कहा गया है, जिसका अर्थ होता है बाएं अंग की अधिकारी। इसलिए पुरुष के शरीर का बायां हिस्सा स्त्री का माना जाता है।

इसका कारण यह है कि भगवान शिव के बाएं अंग से स्त्री की उत्पत्ति हुई है जिसका प्रतीक है शिव का अर्धनारीश्वर शरीर। यही कारण है कि हस्तरेखा विज्ञान की कुछ पुस्तकों में पुरुष के दाएं हाथ से पुरुष की और बाएं हाथ से स्त्री की स्थिति देखने की बात कही गयी है।

शास्त्रों में कहा गया है कि स्त्री पुरुष की वामांगी होती है इसलिए सोते समय और सभा में, सिंदूरदान, द्विरागमन, आशीर्वाद ग्रहण करते समय और भोजन के समय स्त्री पति के बायीं ओर रहना चाहिए। इससे शुभ फल की प्राप्ति होती।

वामांगी होने के बावजूद भी कुछ कामों में स्त्री को दायीं ओर रहने के बात शास्त्र कहता है। शास्त्रों में बताया गया है कि कन्यादान, विवाह, यज्ञकर्म, जातकर्म, नामकरण और अन्न प्राशन के समय पत्नी को पति के दायीं ओर बैठना चाहिए।

पत्नी के पति के दाएं या बाएं बैठने संबंधी इस मान्यता के पीछे तर्क यह है कि जो कर्म संसारिक होते हैं उसमें पत्नी पति के बायीं ओर बैठती है। क्योंकि यह कर्म स्त्री प्रधान कर्म माने जाते हैं।

यज्ञ, कन्यादान, विवाह यह सभी काम पारलौकिक माने जाते हैं और इन्हें पुरुष प्रधान माना गया है। इसलिए इन कर्मों में पत्नी के दायीं ओर बैठने के नियम हैं।

*क्या आप जानते हैं  ????*

सनातन धर्म में पत्नी को पति की वामांगी कहा गया है, यानी कि पति के शरीर का बांया हिस्सा, इसके अलावा पत्नी को पति की अर्द्धांगिनी भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है पत्नी, पति के शरीर का आधा अंग होती है, दोनों शब्दों का सार एक ही है, जिसके अनुसार पत्नी के बिना पति अधूरा है।

पत्नी ही पति के जीवन को पूरा करती है, उसे खुशहाली प्रदान करती है, उसके परिवार का ख्याल रखती है, और उसे वह सभी सुख प्रदान करती है जिसके वह योग्य है, पति-पत्नी का रिश्ता दुनिया भर में बेहद महत्वपूर्ण बताया गया है, चाहे सोसाइटी कैसी भी हो, लोग कितने ही मॉर्डर्न क्यों ना हो जायें, लेकिन पति-पत्नी के रिश्ते का रूप वही रहता है, प्यार और आपसी समझ से बना हुआ।

हिन्दू धर्म के प्रसिद्ध ग्रंथ महाभारत में भी पति-पत्नी के महत्वपूर्ण रिश्ते के बारे में काफी कुछ कहा गया है, भीष्म पितामह ने कहा था कि पत्नी को सदैव प्रसन्न रखना चाहिये, क्योंकि, उसी से वंश की वृद्धि होती है, वह घर की लक्ष्मी है और यदि लक्ष्मी प्रसन्न होगी तभी घर में खुशियां आयेगी, इसके अलावा भी अनेक धार्मिक ग्रंथों में पत्नी के गुणों के बारे में विस्तारपूर्वक बताया गया है। 

आज हम आपको गरूड पुराण, जिसे लोक प्रचलित भाषा में गृहस्थों के कल्याण की पुराण भी कहा गया है, उसमें उल्लिखित पत्नी के कुछ गुणों की संक्षिप्त व्याख्या करेंगे, गरुण पुराण में पत्नी के जिन गुणों के बारे में बताया गया है, उसके अनुसार जिस व्यक्ति की पत्नी में ये गुण हों, उसे स्वयं को भाग्यशाली समझना चाहिये, कहते हैं पत्नी के सुख के मामले में देवराज इंद्र अति भाग्यशाली थे, इसलिये गरुण पुराण के तथ्य यही कहते हैं।

सा भार्या या गृहे दक्षा सा भार्या या प्रियंवदा। 
सा भार्या या पतिप्राणा सा भार्या या पतिव्रता।।

गरुण पुराण में पत्नी के गुणों को समझने वाला एक श्लोक मिलता है, यानी जो पत्नी गृहकार्य में दक्ष है, जो प्रियवादिनी है, जिसके पति ही प्राण हैं और जो पतिपरायणा है, वास्तव में वही पत्नी है, गृह कार्य में दक्ष से तात्पर्य है वह पत्नी जो घर के काम काज संभालने वाली हो, घर के सदस्यों का आदर-सम्मान करती हो, बड़े से लेकर छोटों का भी ख्याल रखती हो। 

जो पत्नी घर के सभी कार्य जैसे- भोजन बनाना, साफ-सफाई करना, घर को सजाना, कपड़े-बर्तन आदि साफ करना, यह कार्य करती हो वह एक गुणी पत्नी कहलाती है, इसके अलावा बच्चों की जिम्मेदारी ठीक से निभाना, घर आये अतिथियों का मान-सम्मान करना, कम संसाधनों में भी गृहस्थी को अच्छे से चलाने वाली पत्नी गरुण पुराण के अनुसार गुणी कहलाती है, ऐसी पत्नी हमेशा ही अपने पति की प्रिय होती है।

प्रियवादिनी से तात्पर्य है मीठा बोलने वाली पत्नी, आज के जमाने में जहां स्वतंत्र स्वभाव और तेज-तरार बोलने वाली पत्नियां भी है, जो नहीं जानती कि किस समय किस से कैसे बात करनी चाहियें, इसलिए गरुण पुराण में दिए गए निर्देशों के अनुसार अपने पति से सदैव संयमित भाषा में बात करने वाली, धीरे-धीरे व प्रेमपूर्वक बोलने वाली पत्नी ही गुणी पत्नी होती है। 

पत्नी द्वारा इस प्रकार से बात करने पर पति भी उसकी बात को ध्यान से सुनता है, व उसके इच्छाओं को पूरा करने की कोशिश करता है, परंतु केवल पति ही नहीं, घर के अन्य सभी सदस्यों या फिर परिवार से जुड़े सभी लोगों से भी संयम से बात करने वाली स्त्री एक गुणी पत्नी कहलाती है, ऐसी स्त्री जिस घर में हो वहां कलह और दुर्भाग्य कभी नहीं आता।

पतिपरायणा यानी पति की हर बात मानने वाली पत्नी भी गरुण पुराण के अनुसार एक गुणी पत्नी होती है, जो पत्नी अपने पति को ही सब कुछ मानती हो, उसे देवता के समान मानती हो तथा कभी भी अपने पति के बारे में बुरा ना सोचती हो वह पत्नी गुणी है, विवाह के बाद एक स्त्री ना केवल एक पुरुष की पत्नी बनकर नये घर में प्रवेश करती है, वरन् वह उस नये घर की बहु भी कहलाती है, उस घर के लोगों और संस्कारों से उसका एक गहरा रिश्ता बन जाता है।

इसलिए शादी के बाद नए लोगों से जुड़े रीति-रिवाज को स्वीकारना ही स्त्री की जिम्मेदारी है, इसके अलावा एक पत्नी को एक विशेष प्रकार के धर्म का भी पालन करना होता है, विवाह के पश्चात उसका सबसे पहला धर्म होता है कि वह अपने पति व परिवार के हित में सोचे, व ऐसा कोई काम न करे जिससे पति या परिवार का अहित हो।

गरुण पुराण के अनुसार जो पत्नी प्रतिदिन स्नान कर पति के लिए सजती-संवरती है, कम बोलती है, तथा सभी मंगल चिह्नों से युक्त है, जो निरंतर अपने धर्म का पालन करती है तथा अपने पति का ही हित सोचती है, उसे ही सच्चे अर्थों में पत्नी मानना चाहियें, जिसकी पत्नी में यह सभी गुण हों, उसे स्वयं को देवराज इंद्र ही समझना चाहियें।

जय महादेव!
जय श्री राम!

*_जनजागृति हेतु लेख का प्रसारण अवश्य करें ...🚩_*

                   आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

Monday, May 18, 2020

के प्यार होता है क्या (गीत)


उल्फ़त की दुनियां सजाकर,
देखो ज़रा मुस्कुराकर,
के प्यार होता है क्या।।
चाहत का अरमां जगाकर,
देखो गले से लगाकर,
के प्यार होता है क्या।१।

हसरत हमारी खिलेगी सपने सजेंगे,
सदा फिर महब्बत का रुत निखरेंगे।।
आंखों में हमको बसाकर,
देखो नजर को मिलाकर,
के प्यार होता है क्या।२।

कुछ हम कहें और तुम भी तो कुछ सुनाओ,
ढलें आओ फिर ढलें आओ फिर।।
गम को कुछ पल भुलाकर,
देखो खुशी को जताकर,
के प्यार होता है क्या।३।

आओ सँवारे हसीं ख्वाबों को फिर से,
दिल को मिलायें दिलवर चले आ दिल से।।
राहों में गुल को बिछाकर,
देखो वफ़ा को निभाकर,
के प्यार होता है क्या।४।

लेके ढलो जिंदगी में हंसीं पल,
गम जताये दिल को रहा हूँ बेकल।।
मुश्किल में भी खिल खिलाकर,
देखो सभी को हँसाकर,
के प्यार होता है क्या।५।

उल्फ़त की दुनियां सजाकर,
देखो ज़रा मुस्कुराकर,
के प्यार होता है क्या।।
चाहत का अरमां जगाकर,
देखो गले से लगाकर,
के प्यार होता है क्या।१।

(२२१२-२१२२-२२१२-२१२२-२२१२-२२२)

          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

Saturday, May 16, 2020

*🙏🏻माँ सर्वप्रथम गुरु🙏🏻*

*🙏🏻माँ सर्वप्रथम गुरु🙏🏻*


*👉🏻सबसे प्रथम गुरु माँ🤱🏻 होती है। मै हर उस माँ 🤱🏻को बहादुर मानता हूं, जिसके बच्चे सेना में हैं या एक अच्छे नागरिक जिम्मेदार हैं।*✔️🚩

*🚩जिस भांति एक कुम्हार मिट्टी के लौंदे को प्यार ,मार या थपथपा कर आकार देता है, और एक सुदंर रचना करता है। ठीक उसी भांति माँ🤱🏻 भी करती है। बच्चा भी तो बस एक मिट्टी का लौंदा होता है।एक माँ उसके आचरण को आकार देती है।*🚩✔️😊

*👉🏻कोई बच्चा यदि गलत हरकत करता है, तो मैं उसके माता पिता के परवरिश को दोष देता हूं । (यह मेरे अपने विचार है) बालक जब छोटा हो, तो उसकी प्रत्येक जिद्द की पूर्ति की जाती है। 😊✔️यह सोच कर कि बड़ा होगा तो समझ जाएगा। किंतु बड़ा होकर भी वह इसे अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझने लगता है।*✔️🚩

*मुझे याद है.....बचपन में मेरी हर जिद्द पुरी नहीं की जाती थी, तब मुझे बहुत क्रोध आता था, पर जब मै बड़ा हुआ तो, समझ आया कि माँ🤱🏻 मुझे कुम्हार की भांति अच्छा आकार देना चाहती  थी*😊🤚🏻

*मै आभारी हूं, अपनी माँ 🤱🏻का ... जिनके छांव तले,उनके सिखाए मार्ग पर चल कर मैं एक अच्छा नागरिक बनने में कामयाब हुआ हूं।*✔️😊

सभी भगवत्प्रेमियों को आज दिवस की *"मंगलमय कामना"*----🙏🏻🙏🏻🌹

♻🏵♻🏵♻🏵♻🏵♻🏵♻

                   आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

Wednesday, May 13, 2020

भगवान श्री कृष्ण के मुख्य ५१ नाम अर्थ सहित

*भगवान श्री कृष्ण के मुख्य ५१ नाम अर्थ सहित*

*~~~🌼~~~🌼~~~🌼~~~🌼~~~*
*१-कृष्ण* : सब को अपनी ओर आकर्षित करने वाला। जो सर्व आकर्षण है, जो अपनी ओर खींचता है वो कृष्ण है।
*२-गिरिधर* : भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपने बांय हाथ की कनिष्का ऊँगली से उठाया था जिस कारण भगवान का नाम गिरधर, गिरधारी पड़ा। गिरी: पर्व, धर: धारण करने वाला। अर्थात गोवर्धन पर्वत को उठाने वाले।
*२-मुरलीधर* : मुरली को धारण करने वाले।
*४-पीताम्बर धारी* : पीत : पीला, अम्बर : वस्त्र। जिसने पीले वस्त्रों को धारण किया हुआ है।
*५-मधुसूदन* : मधु नामक दैत्य को मारने वाले। भगवान श्री कृष्ण ने एक दैत्य को मारा था जिसका नाम मधु था। इसलिए भगवान -का नाम मधुसूदन पड़ा।
*६-यशोदा नंदन* : माँ यशोदा ने कृष्ण को पाला था, इसलिए के पुत्र होने के कारण कृष्ण का नाम यशोदा नंदन पड़ा।
*७-देवकी नंदन* : माँ देवकी ने कृष्ण को जन्म दिया इसलिए भगवान देवकी-नंदन कृष्ण कहलाते हैं।
*८-गोपाल*: गौओं को पालने वाला।
*९-गोविन्द*: इन्द्रियों के स्वामी, जो गोप, गोपियों को आनंद दे।
*१०-आनंद कंद*: आनंद की राशि देने वाला। जो सुख दुःख से ऊपर है। जो आनंद की खान है।
*११-कुञ्ज बिहारी* : भगवान श्री कृष्ण कुञ्ज गलियों में विहार करते थे, इसलिए इनका नाम कुञ्ज बिहारी पद गया।
*१२-चक्रधारी* : सुदर्शन चक्र धारण करने वाले। जिस ने सुदर्शन चक्र या ज्ञान चक्र या शक्ति चक्र को धारण किया हुआ है।
*१३-श्याम* : सांवले रंग वाला।
*१४-माधव* : जब भगवान छोटे थे और माखन चुरा के भागते थे तब मैया यशोदा कहती थी। मा धव मा धव। जिसका अर्थ है- मत भाग, मत भाग। इसलिए भगवान का नाम पड़ा माधव।
*१५-मुरारी* : मुर नामक दैत्य का भगवान ने वध किया और नाम पड़ा मुरारी।
*१६-असुरारी* : असुरों के शत्रु।
*१७-बनवारी* : वनों में विहार करने वाले। भगवान ने वृन्दावन, निकुंज वन, निधिवन में विहार किया।
*१८-मुकुंद* : जिन के पास निधियाँ है। जो कान में  सफेद कनेर का पुष्प लगते हैं।
*१९-योगेश्वर* : जो योगियों के भी ईश्वर, मालिक हैं।
*२०-गोपेश*: जो गोपियों के इष्ट हैं।
*२१-हरि* : जो पापों को और दुःखों का हरण करने वाले हैं।
*२२-मनोहर* : जो मन का हरण करने वाले हैं।
*२३-मोहन*: सम्मोहित करने वाले, सबको मोहने वाले।
*२४-जगदीश*: जगत के मालिक।
*२५-पालनहार* : जो सबका पालन पोषण करने वाले हैं।
*२६-मनमोहन*–  जो मन को मोहने वाले हैं।
*२७-रुक्मिणी वल्लभ* : रुक्मणी के पति हैं।
*२८-केशव* : जिनके केश सुंदर हैं और जिन्होंने केशी नाम के दैत्य को मारा हैं। आज भी वृन्दावन में यमुना तट पर केशी घाट हैं।
*२९-वासुदेव* : वसुदेव के पुत्र होने के कारण, या जो इन्द्रियों के स्वामी हैं।
*३०-रणछोड़* : एक बार भगवान श्री कृष्ण युद्ध भूमि से भाग गए थे और उनका नाम पड़ा रणछोड़।
*३१-गुड़ाकेश* : निंद्रा को जितने वाले। ये नाम भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को दिलवाया।
*३२-हृषिकेश* : इन्द्रियों को जितने वाले।
*३३-दामोदर* :  एक बार माँ यशोदा ने भगवान कृष्ण के पेट को रस्सी से बाँध दिया था और भगवान का नाम पड़ा दामोदर।
*३४-पूर्ण परब्रह्म* : जिसके अंदर कोई कमी नहीं हैं जो पूर्ण हैं और जो देवताओं के भी मालिक हैं। वो पूर्ण परब्रह्म हैं।
*३५-देवेश*: जो देवों के भी ईश हैं।
*३६-नाग नथिया* : कलियाँ नाग को नाथने के कारण भगवान का नाम पड़ा नाग नथिया।
*३७-वृष्णिपति* : वृष्णि नामक कुल में उत्पन्न होने के कारण।
*३८-यदुपति* : यादवों के मालिक।
*३९-यदुवंशी*: यदु वंश में अवतार धारण करने के कारण।
*४०-द्वारकाधीश* : द्वारका नगरी के मालिक।
*४१-नागर* : जो सुंदर हैं।
*४२-नटवर*:  जो एक जादूगर (नट) की तरह हैं, एक कलाकार की तरह हैं।
*४३-छलिया* : जो छल करने वाले हैं।
*४४-राधा रमण* : राधा रानी के साथ रमन करने के कारण।
*४५-अघहारी* : अघ का अर्थ होता हैं पाप। जो पापों का हरण करने वाले हैं।
*४६-रास रचइया* : रास रचाने के कारण।
*४७-अच्युत* : जिसे पद से कोई नहीं हटा सकता। जिसका वास अखंड है। जिस के धाम से कोई वापिस नही आता है।
*४८-नन्द लाला* : श्री नन्द जी के पुत्र होने के कारण कृष्ण का नाम नंदलाला पड़ा।
*४९-हे नाथ* – जो सबके स्वामी हैं।
*५०-नारायण* :  जिनका वास जल में हैं।
*५१-बांके बिहारी* – वृन्दावन में प्रकट होने के कारण श्रीकृष्ण का एक नाम बांके-बिहारी हैं।
*🌹#कृष्णभक्तियोग🌹*
*🌹#जय_श्री_कृष्ण🌹*

सभी भगवत्प्रेमियों को आज दिवस की *"मंगलमय कामना"*----🙏🏻🙏🏻🌹

♻🏵♻🏵♻🏵♻🏵♻🏵♻

                   आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

*⚜️जय गौमाता🐄जय गोपाला*⚜️।


*⚜️जय गौमाता🐄जय गोपाला*⚜️

*सर्वकामदुधे देवि सर्वतीर्थीभिषेचिनि ॥*
*पावने सुरभि श्रेष्ठे देवि तुभ्यं नमोस्तुते ॥*🚩

*🚩हमारे देश में गाय 🐄को माता माना जाता है☝🏻यह प्रचलन पीढ़ीयों से चला आ रही है। पुराणों में भी गाय🐄 को माता के रूप में दर्शाया गया है ।😊 यह पशु नहीं है। यह हम सबका अपने दूध रूपी अमृत से पालन करती है। 😊☝🏻इसलिये यह हमारी माँ के समान है। यहाँ गाय की पूजा की जाती है। पुराणों में एक ऐसी गाय🐄 का उल्लेख मिलता है, जिसे कामधेनु गाय कहा गया है। 🙏🏻🚩✔️ऐसी मान्यता है, कि कामधेनु गाय में दैवीय शक्तियाँ होती है, जिससे वह लोगों की मनोकामना को पूर्ण करती थी।*✔️☝🏻
*🚩कामधेनु गाय🐄 प्रत्येक प्रकार की मनोकामना को पूर्ण करती थी। इसके दर्शन मात्र कर लेने से ही मनुष्य की सभी इच्छायें पूर्ण हो जाती थी।😳🙏🏻✔️ इसके दूध में अमृत के समान गुण पाये जाते थे,, ✔️☝🏻☝🏻अर्थात अमरत्व के गुण । इन्हीं कारणों से कामधेनु गाय को माता माना गया है। 😳✔️✋🏻इनकी पूजा की जाती है। साथ हीं सभी गायों🐄 को भी माँ की उपाधि दी गयी है। कामधेनु गाय🐄 जिसके भी पास होती थी , उसकी सभी जरुरतें वे पूरा करतीं थी,, एक माँ की तरह ,✋🏻😳 यह अपने सभी भक्तों का पालन पोषण करती थी।*✔️🚩

*• गाय के दोनो सींगों में ब्रह्मा और विष्णु ।*🚩
*• विश्व के समस्त जलस्त्रोतों का स्थान सींग के जुड़ाव पर स्थित है।*🚩
*• सिर पर भोले शंकर का स्थान है।*
*• सिर के किनारे पर माता पार्वती जी है।*🚩
*• नासिका पर कार्तिकेय, दोनों नासिकाओं के छिद्र पर कम्बाला और अश्वतारा हैं।*🚩
*• दोनों कानों पर अश्विनी कुमार*🚩
*• सूर्य और चंद्रमा का स्थान दोनों आँखों में है।*🚩
*• वायु देव का स्थान दाँतों की पंक्तियों में तथा और वरुण देव जीभ पर निवास करते हैं।*🚩
*• गाय की आवाज में साक्षात् सरस्वती का वास है ।*🚩
*• संध्या देवी होंठों पर और भगवान इंद्र गर्दन पर विराजमान हैं।*🚩
*• रक्षा गणों का स्थान गर्दन के नीचे की पसलियों पर है।*🚩
*• ह्रदय में साध्य देवों का स्थान है।*
*• जांघ पर धर्म देव का ।*🚩
*• गंधर्व खुर के बीच के स्थान में,पन्नगा खुर के कोने पर, अप्सराएं पक्षों पर।*🚩
*• ग्यारह रुद्र और यम पीठ पर, अष्टवसु पीठ की धारियों में।*🚩
*• पितृ देवता नाल के संयुक्त क्षेत्र में तथा १२ आदित्य पेट पर*🚩
*• पूंछ पर सोमा देवी, बालों पर सूरज की किरणें, मूत्र में गंगा, गोबर में लक्ष्मी और यमुना, दूध में सरस्वती, दही में नर्मदा, और घी में अग्नि का वास है।*🚩
*• गाय के बालों में ३३ कोटि देवताओं का निवास है।*🚩
*• पेट में पृथ्वी, थन में सारे महासागरों*🚩
*• तीनों गुण भौंह के जड़ों में, बाल के छिद्रों में ऋषियों का निवास, साँसों में सभी पवित्र झीलों का वास है।*🚩
*• होठों पर चंडिका और प्रजापति ब्रह्मा त्वचा पर हैं।*🚩
*• वेदों के छह भागों का स्थान मुख पर, चारों पैरों में चार वेद हैं। कुबेर और गरुड़ दाहिने ओर,यक्ष बाईं ओर गंधर्व अंदर की ओर स्थित हैं।*🚩
*• पैर के सामने में खेचरास, आंतों में नारायण, हड्डियों में पर्वत, अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष चारों पैरों में अवस्थित हैं।*🚩
*• गाय के हूँकार में चारों वेदों कि ध्वनि है।*🚩

*☝🏻☝🏻😊अर्थात गौमाता 🐄ही सर्वत्र सर्वोपरि है,, इसीलिये जो गौमाता को जो व्यक्ति पशु मानता है.. वह स्वयं एक पशु है।।*⛳


सभी भगवत्प्रेमियों को आज दिवस की *"मंगलमय कामना"*----🙏🏻🙏🏻🌹

♻🏵♻🏵♻🏵♻🏵♻🏵♻

                   आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

जब कभी बहुत आहत होता है ,,,,,,,,,,,,,,!!! (गीत)

जब कभी बहुत आहत  होता है  मन हमारा |
तब मैं  खोज लेता हूं  अपना वह उजियारा |
मिल जाता उजियारा  पावन हो जाता मन सारा |
तब कहीं दूर गगन से दिखता उसका सहारा |
लगता युगों की हुई शोध पूरी मिला खोया सारा |
जब कभी बहुत आहत होता है ,,,,,,,,,,,!!!

पल पल  सुन्दर  वह  राह  मिलती जाती है |
वह गहरी अमां निशा दूर कहीं छंटती जाती है |
कुम्हलाए फूल खूशबू  लिए महक आते हैं |
सोंधी सोंधी महॅक पा के हम मगन हो जाते हैं |
लगता है संवर गया वह उजड़ा चमन हमारा |
जब कभी बहुत आहत होता ,,,,,,,,,,,,,,!!!

नीलाम्बर छोर मे वे सितारे झलक जाते हैं |
क्षितिज पार में सतरंगी इन्द्रधनुष बन जाते हैं
झलकन की मस्ती में दूर होता है अँधियारा |
दुनिया सुंदर सी लगती मैं बन जाता हूं चितेरा |
लगता कितने कमाल से उसने हर रंग है उकेरा |
जब कभी बहुत आहत होता ,,,,,,,,,,,,,,!!!

आंसूओं में मीठी अनुभूतियों के आ जाते सपने |
अनजाने से मन में उतरने लगते वे खोए अपने |
अनुपम सुर ताल से मन में गूंजते हर गीत नए |
झलकता उजियारा लगता जले हैं खुशी के दिए |         
भेद भाव मिटता लगता सब है हमारा तुम्हारा |
जब कभी बहुत आहत होता ,,,,,,,,,,,,,,,,,,!!!

          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

न मुझे तेरी ख़बर न तुझे मेरी ख़बर (गीत)

न मुझे तेरी ख़बर न तुझे मेरी ख़बर
न मुझे तेरी ख़बर न तुझे मेरी ख़बर
जो इम्तहां इधर वही इम्तहां उधर
न मुझे तेरी ख़बर न तुझे मेरी ख़बर
÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷
हर सू धुंआ धुआं हर लम्हा बेबसी
दुश्मन छिपा छिपा नाकाम आशिकी
है झुकी मेरी नज़र है झुकी तेरी नज़र
है झुकी मेरी नज़र है झुकी तेरी नज़र
न मुझे तेरी ख़बर न तुझे मेरी ख़बर
÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷
सुबह मचल रही यूँ ही शाम ढल रही
तन्हाईयां जवां हैं तेरी बात चल रही
सहमा उधर ज़िग़र सहमा इधर ज़िग़र
सहमा उधर ज़िग़र सहमा इधर ज़िग़र
न मुझे तेरी ख़बर न तुझे मेरी ख़बर
     
          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

नींद और चैन दोनों खो गये (गीत)

नींद और चैन दोनों खो गये, हम तुम्हीं को याद कर सो गये
हो गये हैं सनम आपके, फ़ासले न जाने क्यों हो गये
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
जान सच कहते हैं तेरी कसम, तुम बिन बेजान हो गये हम
प्यार हम करते कितना तुझे, कितने भी यार कर ले सितम
रात और दिन फसाने हो गये, हम तुम्हीं को याद कर सो गये
हो गये हैं सनम आपके, फ़ासले न जाने क्यों हो गये
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
आग कैसी जानम दिल में लगी, कर गये तुम क्यों दिल्लगी
याद तुम आते हो तन्हाई में, बन गये तुम मेरी जिन्दगी
नैन ये बैचेन क्यों हो गये, हम तुम्हीं को याद कर सो गये
हो गये हैं सनम आपके, फ़ासले न जाने क्यों हो गये
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
है लबों की मय तुम्हारे लिये, हैं गुलाबी गाल तुम्हारे लिये
दिलोज़िग़र तुम्हें दे दिया, कर दिया एलान तुम्हारे लिये
रास्ते दुश्वार से हो गये, हम तुम्हीं को याद कर सो गये
हो गये हैं सनम आपके, फ़ासले न जाने क्यों हो गये
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
रात है जवां ईनाम दो, आओ और पास हमें थाम लो
बीत जायें न यूँ ही पल छिन, जज़्बातों को अन्जाम दो
तुम मिले न यार हम रो गये, हम तुम्हीं को याद कर सो गये
हो गये हैं सनम आपके, फ़ासले न जाने क्यों हो गये

          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

न जा ने कबसे हुआ है जबसे , निखर रही है


न जा ने कबसे हुआ है जबसे , निखर रही है-2!
जो  हाल  है  प्यार  में  हमारा,  उधर रही है-2।१।

जहाँ भी जाऊं लगे है मुझको, करीब है वो-2!
के दिल पे छाकर रुहों में जैसे, उतर रही है-2।२।

कहो ज़रा तो उसे ये जाकर, वफ़ा निभाये-2!
के रुख सुहानी सदा लिये फिर, बिखर रही है-2।३।

जिधर सफर हो वो ढल के आये, जिगर के सदके-2!
बहार लेकर हया की रुत फिर, गुजर रही है-2।४।

है इश्क़ उनको, ज़रा ज़रा ही, मगर जताये-2!
हमें खबर है नजर चुराये , सँवर रही है-2।५।

न जा ने कबसे हुआ है जबसे , निखर रही है-2!
जो  हाल  है  प्यार  में  हमारा,  उधर रही है-2।१।

          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

Tuesday, May 12, 2020

जब भी आऊं पास तुम्हारे (गीत)


जब भी आऊं पास तुम्हारे
तब तुम बस इतना कर देना
अधरों की थाली पर रखकर
अपनेपन के दो स्वर देना।

कोई शिकवा नहीं शिकायत
सब निर्णय स्वीकार तुम्हारे
बहुत मुबारक मंडप तुमको
और बधाई वंदन वारे
धरो हथेली पर जब मेहंदी
बीच कहीं मुझको धर देना।
अधरों की थाली पर रखकर
अपनेपन के दो स्वर देना।

हंसी खुशी के हर मौके पर
ख़त भेजूंगा नाम तुम्हारे
राह भूलकर  दहरी खोजूं
किसी दिवस की शाम तुम्हारे
द्वार खड़ा आवाज लगाऊं
आई आई उत्तर देना।
अधरों की थाली पर रखकर
अपनेपन के दो स्वर देना।

तुम्ही कहो कब तुमसे मांगी
कंचन देह तुम्हारी मैंने
उजियारे में या अंधियारे
कब-कब लाज उतारी मैंने
जब भी मांगू तुमसे केवल
मुझको ढाई आखर देना।
अधरों की थाली पर रखकर
अपनेपन के दो स्वर देना।

यद्यपि बहुत कठिन है कहना
तय कर पाऊं पथ की दूरी
यह संभव है बिना तुम्हारे
जीवन मंजिल रहे अधूरी
मेरी नीरस धरती को तुम
आशाओं का अंबर देना।
अधरों की थाली पर रखकर
अपनेपन के दो स्वर देना।

जब भी आऊं पास तुम्हारे
तब तुम बस इतना कर देना
अधरों की थाली पर रखकर
अपनेपन के दो स्वर देना।

          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

जुदा हम न हों फिर तुझे है कसम।१।


कभी तो मिलो दिल मिलाकर सनम!
जुदा हम  न हों फिर  तुझे है  कसम।१।

मिले  और  मिलकर  सदा  हम  रहें!
अदा हक़  करें आ  भुलाकर  सितम।२।

ढले  रात  दिन  प्यार  में  इस  तरह!
वफ़ा   ही  वफ़ा   हो  खुदा का करम।३।

हँसीं गुल  खिले और  महब्बत   तले!
शिकायत न हो सब  मिटा दे भरम।४।

सजायें चले आ नई हसरतों की जहां!
कहे   दिल   हमेशा  निभाकर  धरम।५।

कभी तो मिलो दिल मिलाकर सनम!
जुदा हम  न हों फिर  तुझे है  कसम।१।

          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

कभी तो मिलो दिल मिलाकर सनम!


कभी तो मिलो दिल मिलाकर सनम!
जुदा हम  न हों फिर  तुझे है  कसम।१।

मिले  और  मिलकर  सदा  हम  रहें!
अदा हक़  करें आ  भुलाकर  सितम।२।

ढले  रात  दिन  प्यार  में  इस  तरह!
वफ़ा   ही  वफ़ा   हो  खुदा का करम।३।

हँसीं गुल  खिले और  महब्बत   तले!
शिकायत न हो सब  मिटा दे भरम।४।

सजायें चले आ नई हसरतों की जहां!
कहे   दिल   हमेशा  निभाकर  धरम।५।

कभी तो मिलो दिल मिलाकर सनम!
जुदा हम  न हों फिर  तुझे है  कसम।१।

          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

*⚜️जय गौमाता🐄जय गोपाला⚜️*


 
*⚜️जय गौमाता🐄जय गोपाला⚜️*

*एक बार मनोहर रूपधारी लक्ष्मीजी ने गौओं के समूह में प्रवेश किया।🙏🏻😊उनके सौंदर्य को देख गौओं🐄 को बड़ा आश्चर्य हुआ और उन्होंने उनका परिचय पूछा। लक्ष्मी जी ने कहा – “गौओं तुम्हारा कल्याण हो ! इस जगत में सभी लोग मुझे लक्ष्मी कहते हैं। सारा संसार मुझे चाहता है। मैंने दैत्यों को छोड़ दिया, इसलिये वे नष्ट हो गये। इन्द्रादि देवताओं को आश्रय दिया तो वे सुख भोग रहें हैं। देवताओं और ऋषियों के शरीर में मेरे हीं आने से सिद्धि मिलती है।*⛳🙏🏻
*👉🏻जिसके शरीर में मैं नहीं प्रवेश करती उसका नाश हो जाता है। धर्म ,अर्थ और काम तो मेरे ही सहयोग से सुख देनेवाले हो सकते हैं। मेरा ऐसा प्रभाव है। अब मैं तुम्हारे शरीर में सदा के लिये वास करना चाहती हूँ। इसके लिये स्वत: तुम्हारे पास आकर प्रार्थना करती हूँ, तुम लोग मेरा आश्रय ग्रहण करो और ' श्री ' सम्पन्न हो जाओ।*⚜️🙏🏻☝🏻

*👉🏻गौवों ने कहा- “ हे देवी बात ठीक है,पर तुम बड़ी चंचल हो । कहीं भी स्थिर रह ही नहीं सकती। फिर तुम्हारा सम्बंध भी बहुतों के साथ है। इसलिये हम को तुम्हारी इच्छा नही है तुम्हारा कल्याण हो । ✋🏻😊हमारा शरीर तो स्वभाव से हृष्ट, पुष्ट और सुन्दर है ,हमें तुमसे कोई कार्य नही है ।तुम्हारी जहाँ इच्छा हो जा सकती हो। तुमने हमसे बात-चीत की इस से हम अपने को कृतार्थ मानते हैं ।”*✔️⛳
*लक्ष्मी जी ने कहा – “गौवों तुम यह क्या कह रही हो ? मैं बड़ी दुर्लभ हूँ प्रिय साथी हूँ, पर तुम मुझे स्वीकार नही करती । आज मुझे यहां पता लगा कि ‘बिना बुलाये किसी के पास जाने से अनादर होता हैं’ यह कहावत सत्य है। उत्तम व्रताचरण , देवता,दानव, गंधर्व, पिशाच,नाग, मनुष्य और राक्षस के बड़ी उग्र तपस्या करने पर कहीं मेरी सेवा का सौभाग्य प्राप्त कर पाते है । तुम मेरे इस प्रभाव पर ध्यान दो और मुझे स्वीकार करो ।देखो इस चराचर जगत में मेरा अपमान कोई भी नहीं करता । ”*😳
*गौवों 🐄👉🏻ने कहा- “ देवी हम तुम्हारा अपमान नहीं कर रहीं है । हम तो केवल त्याग कर रही हैं। सो भी इसलिये कि तुम्हारा चित्त चंचल है। तुम कहीं स्थिर हो के रहती नहीं। फिर हम लोग का शरीर तो स्वभाव से स्थिर है। अत: तुम जहाँ जाना चाहो चली जाओ । ”*✔️⛳😊
*लक्ष्मी जी ने कहा – “ गौवों 🐄तुम दुसरों को आदर देनेवाली हो । यदि मुझको त्याग दोगी तो संसार मे सर्वत्र मेरा अनादर होने लगेगा 😔☝🏻। मैं तुम्हारी शरण में आई हूँ, निर्दोष हूँ और तुम्हारी सेविका हूँ यह जानकर मेरी रक्षा करो । मुझे अपनाओ, तुम महासौभाग्यशालिनी, सदा सबका कल्याण करने वाली ,सबको शरण देनेवाली ,पुण्यमयी पवित्र और सौभाग्यवती हो ।मुझे बतलाओ मैं तुम्हारे शरीर के किस भाग में रहूँ । ”*✔️😊
*गौवों ने कहा- “ यशस्वनी ,हमे तुम्हारा सम्मान अवश्य करना चाहिये । अच्छा तुम हमारे गोबर और मुत्र में निवास करो । हमारी ये दोनों चीजें बड़ी पवित्र है ।”*⛳😊
*लक्ष्मी जी ने कहा- “सुखदायिनी गौ , तुमलोगों ने मुझपर बड़ा अनुग्रह किया । मेरा मान रख लिया। तुम्हारा कल्याण हो मैं ऐसा हीं करूंगी ।*⛳⛳

*⛳⚜️गौवों के साथ इस प्रकार प्रतिज्ञा करके देखते ही देखते लक्ष्मी जी वहां से अंतर्ध्यान हो गयीं ।*⛳


सभी भगवत्प्रेमियों को आज दिवस की *"मंगलमय कामना"*----🙏🏻🙏🏻🌹

♻🏵♻🏵♻🏵♻🏵♻🏵♻

                   आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

Monday, May 11, 2020

*अहंकार की परीक्षा*


*अहंकार  की परीक्षा*


*प्रभु के वक्षस्थल पर विप्र-चिह्न!जानिए आखिर क्यों भृगु ऋषि ने मारी भगवान विष्णु को लात पौराणिक कथा !*

*दुर्वासा मुनि की बात छोड़ दी जाए तो यह कहना गलत नही होगा कि ऋषि-मुनि जल्दी नाराज नहीं होते थे। लेकिन एक बार जब क्रोधित हो गए तो बिना शाप दिए शांत भी नहीं होते थे। लेकिन भृगु ऋषि ने जो किया वह तो हतप्रभ कर देने वाली बात थी।*

*भृगु ऋषि ने क्षीरसागर में शेषशैय्या पर सोते हुए भगवान विष्णु की छाती पर अपने पैर से जोरदार प्रहार किया था। महान ग्रंथ ’भृगु संहिता’ के प्रतिष्ठित रचयिता, प्रबुद्ध चिंतक और महाज्ञानी भृगु ऋषि ने ऐसा किया, तो जरूर कोई-न-कोई विशेष बात रही होगी। आइए जानते हैं इस रोचक प्रसंग के बारे में।*

*क्षमा बड़न को चाहिए, छोटन को उतपात।*
*का रहिमन हरि को घट्यो, जो भृगु मारी लात।।*
 
*अर्थात बड़े का बड़प्पन इसी में है कि वह सदैव निरहंकारी रहे। असभ्य व्यक्ति अभद्रता से पेश आए तो उसे आपा नहीं खोना चाहिए। यदि वह स्वयं पर अंकुश न रख सका तो बड़े व छोटे में भेद ही क्या रह जाएगा।*

*रहीम कहते हैं कि बड़े को क्षमाशील होना चाहिए, क्योंकि क्षमा करना ही उसका कर्तव्य, भूषण व बड़प्पन है, जबकि उत्पात व उदंडता करना छोटे को ही शोभा देता है। छोटों के उत्पात से बड़ों को कभी उद्विग्न नहीं होना चाहिए। क्षमा करने से उनका कुछ नहीं घटता। जब भृगु ने विष्णु को लात मारी तो उनका क्या घट गया? कुछ नहीं।*

*भृगु ने ब्रहमा-विष्णु-महेश की महानता को परखने के लिए विष्णु के वक्ष पर पाद-प्रहार किया। इससे विष्णु चुपचाप मुस्कराते रहे, जबकि ब्रहमा और महेश आपा खो बैठे। भृगु को उत्तर मिल चुका था। उन्हें ब्रहमा या महेश को लात मारने की आवश्यकता नहीं पड़ी।*

*श्रीरामचरितमानस में उपाख्यानित है कि भक्त और भगवान दोनों को एक ही प्रकार की परीक्षा देनी पड़ती है। जैसे भक्त पर लात का प्रहार किया गया,वैसे ही भगवान पर भी। अन्तर इतना है कि दोनों स्थानों पर मारने वाले पात्र अलग अलग स्तर के हैं।*

*पुराणों में कथा वर्णित है कि भगवान नारायण की छाती पर भृगु ऋषि ने प्रहार किया। और विभीषण की छाती पर, मानस में,रावण प्रहार करता है।भृगु परम पुण्यात्मा हैं और रावण पापी है। परीक्षा के पात्र हैं,भक्त और भगवान।*

*आज हम भगवान की परीक्षा की ओर केन्द्रित होकर,आइए इस के अंतरंग-रहस्य पर प्रकाश डालते हैं।*

*देखें-- एक बार इस बात पर विवाद छिड़ा कि भगवान के अनेक रूपों में सर्वश्रेष्ठ कौन है? भृगु को परीक्षा का भार सौंपा गया।वे ब्रह्मा के पास पहुँचे,पर उन्हें प्रणाम नहीं किया।*

*इससे ब्रह्मा को बुरा लगा।भृगु सोचने लगे कि ये बड़े शक्तिशाली और सृष्टि के रचयिता तो हैं,पर सम्मान के प्रेमी हैं,यह इनकी कमी है,इसलिए श्रेष्ठ नहीं है।*

*फिर वे भगवान शंकर के पास गये।उन्हें देखते ही,शंकरजी दौड़कर उनसे मिलने के लिए आए।पर भृगु कह उठे--तुम तो चिता की राख लगाये रहते हो,बड़े गन्दे हो,मुझे मत छुओ। यह सुनकर शंकरजी उन्हें त्रिशूल लेकर मारने दौड़े।भृगु ने सोचा,ये तो महान क्रोधी हैं,अभी इतना प्रेम दिखा रहे थे और अब मारने दौड़ रहे हैं।अरे!ये तो महान क्रोधी हैं।नहीं,नहीं,ये भी श्रेष्ठ नहीं हैं।*

*तत्पश्चात् वे विष्णु भगवान के पास क्षीरसागर गये।भगवान नारायण शयन कर रहे थे और कथा है कि भृगु ने उनकी छाती पर चरण से प्रहार किया।भगवान उठ कर बैठ गये और उन्होंने भृगु के चरण को पकड़ लिया।कहा--महाराज!आपके चरणों को बड़ा कष्ट हुआ होगा,क्योंकि वे तो बड़े कोमल हैं।जबकि मेरी छाती बड़ी कठोर है।*

*जब भृगु लौट कर आए तो उन्होंने घोषणा कर दी कि नारायण ही भगवान का श्रेष्ठ रूप है।इस पौराणिक, आप लोगों द्वारा सुनी हुई कथा का तत्त्व क्या है?*

*देखें-- इसका अर्थ यह नहीं कि भृगु ने ब्रह्मा या शंकर भगवान को जो प्रमाणपत्र दिया,वह सही था।उनके प्रमाणपत्र का कोई बहुत मूल्य नहीं था।यदि वे प्रमाणपत्र न भी देते, तो नारायण की भगवत्ता में कोई अन्तर नहीं आता।यह तो उनकी अपनी कसौटी थी।*

*जैसे कोई पहली कक्षा का विद्यार्थी,किसी को एम.ए. का प्रमाणपत्र दे दे,तो उसका क्या मूल्य?उसके प्रमाणपत्र देने या न देने का कोई अर्थ नहीं है। तब फिर यह जो भृगु ने नारायण की परीक्षा ली,उसका तत्त्व क्या है?*

*वास्तव में जब भगवान ने उनसे कहा कि आपके चरणों में  चोट लग गयी होगी,तो इसमें स्तुति और व्यंग्य दोनों हैं ।वह कैसे?*
*भृगु ब्राह्मण हैं,अकिंचन हैं।*

*एक नया दृश्य यहाँ उपस्थित होता है।ऐसा तो देखा जाता है कि एक अकिंचन किसी लक्ष्मीपति के पास जाकर अपमानित या लांछित हो,पर ऐसा बहुधा नहीं देखा जाता कि अकिंचन जाकर लक्ष्मीपति को ही अपमानित कर दे,और अपमान भी कैसा किया?हृदय पर चरण से प्रहार किया।लक्ष्मीजी ने जब प्रश्न सूचक दृष्टि से मुनि की ओर देखा,तो मुनि बोले--ये सो रहे हैं,इसलिए इन्हें जगा रहे हैं।*

*तो क्या भगवान सो रहे थे?उनका तो शयन भी जागरण ही है।फिर भृगु किसको जगाने चले थे?इसका एक सांकेतिक अर्थ देखें--भृगु हैं त्यागी,तपस्वी और भगवान हैं लक्ष्मीपति।जैसे भृगु में त्याग का अहंकार था,उसी प्रकार सर्वशक्तिमान भगवान में भी अपने लक्ष्मीपतित्व का अभिमान जाग उठता,तब क्या होता?संसार में ऐसे अहंकारों की टकराहट प्रायः दिखाई देती है।*

*एक व्यक्ति को त्याग का अहंकार है कि मैंने इतना छोड़ दिया,तो दूसरे को संग्रह का अहंकार है कि मेरे पास इतना धन है।ये दोनों अहंकार एक दूसरे से भिड़ते रहते हैं। पर यहाँ पर भृगु तो अपने त्याग का अहंकार लेकर आए,पर लक्ष्मीपति इतने अधिक निरहंकारी निकले कि त्यागी महोदय हार गये।*

*लक्ष्मीपति शरीर से तो जागे,पर उनका अहंकार नहीं जग पाया,और व्यंग्य यह था,कि प्रभु पूछ बैठते हैं--महाराज!आपको चोट तो नहीं लगी?भृगु आए थे भगवान को चोट पहुँचाने।यदि भगवान का अहम् जागता कि कहाँ मैं साक्षात् लक्ष्मीपति भगवान,और कहाँ यह अकिंचन ब्राह्मण,और इसकी धृष्टता तो देखो कि मुझ पर प्रहार कर रहा है--तब तो भगवान को अवश्य चोट लग जाती।*

*पर भगवान का अहम् नहीं जगा,इसलिए उनकी विजय हो गयी और त्यागी पराजित हो गया।यदि कभी ऐसा हो कि प्रहार करने वाला जिस पर प्रहार करे,उसे तो चोट न लगे और स्वयं प्रहार करने वाले को ही चोट लग जाए,तो इससे बड़ा कोई अचरज नहीं हो सकता।यहाँ पर ऐसा ही हुआ।*

*इसका अभिप्राय यह है कि सही अर्थों में व्यक्ति को चोट तब लगती है,जब वह अपने“मैं”पर,अपने अहम् पर प्रहार का अनुभव कर तिलमिला जाता है।भगवान नारायण में तो रंच मात्र भी अहंकार नहीं है,इसीलिए वे जगद् बंद्य हैं,जगत्पूज्य हैं। तभी तो वे मुस्कराकर मुनि से पूछते हैं कि चोट तो नहीं लगी?और भृगु को अपनी भूल का ज्ञान होता है,वे लौट जाते हैं। भगवान परीक्षा में खरे उतरते हैं।*

सभी भगवत्प्रेमियों को आज दिवस की *"मंगलमय कामना"*----🙏🏻🙏🏻🌹

♻🏵♻🏵♻🏵♻🏵♻🏵♻

                   आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

दर्द ए जुदाई में यूँ तेरी सदा याद रहा!


दर्द ए जुदाई में यूँ तेरी सदा याद रहा!
संभाला दिल फिर लबपे फरियाद रहा।

जताते कैसे इश्क़ का बहार ऐ सुखन!
दौर ए दुनियां से उलझते नाशाद रहा।

राफ़ता बने गर सफर कर चले आऊं!
पतादे किस दरपे फजाएँ आबाद रहा।

जीस्त जीलें जरा रुख ए पुर नूर होवे!
शबोरात दिल का दिलसे इरशाद रहा।

हम्मे  तुम  तुम्मे  हम  समा  चलें ऐसे!
प्यार की राह का पुख्ता बुनियाद रहा।

दर्द ए जुदाई में यूँ तेरी सदा याद रहा!
संभाला दिल फिर लबपे फरियाद रहा।


          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

दिल की बात आकर लब पे ठहर गये!

दिल की बात आकर लब पे ठहर गये!
है प्यार यूँ  कहते   जमाने  गुजर  गये।

जफ़ाओं की राह सर चढ़ती रही मगर!
देख के  हर  सूरत दिल भी मुकर गये।

रहा न जाये आप बिन गम है यही हमें!
हाथों में हाथ थामते छोड़के किधर गये।

फजा भी रुख रुतवा शब यूँ बदल दिये!
मिलें न दिल दिलसे जब भी जिधर गये।

आओ के फासले कम करलें दर्मियां और!
चाह है हमें आपही आंखों में संवर गये।

वफ़ा के उसूल ऐसे आरजू ए दिल खिले!
संच है  आप  हमारे  दिल  में उतर गये।

दिल की बात आकर लब पे ठहर गये!
है प्यार यूँ  कहते   जमाने  गुजर  गये।

          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

दिल होकर दूर आपसे बेहद मजबूर है!

दिल होकर दूर आपसे बेहद मजबूर है!
किस कदर रहें वक़्त को भी यही मंजूर है।

चाहें अगर और चाहत का काफिलाएँ बढ़ाते!
बंद रास्ते हुई जुनू ए इश्क़ मगरूर है।

हुए अलग ऐसे वफ़ाएं भी चिलमिलाये जैसे!
बढ़े फासले क्यूं लगता फजाओं का कसूर है।

फिर दिलसे यूँ दिल मिलेंगे वफ़ा सब खिलेंगे!
हुआ आलम ये रह ए उल्फत का दस्तूर है।

बस आईना है आंखें निहारे तेरी तस्वीर यूँ!
मिलें मिलके भी चाह का चढ़ता जब शुरुर है।

दिल होकर दूर आपसे बेहद मजबूर है!
किस कदर रहें वक़्त को भी यही मंजूर है।


          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

हवाओं ने रुख मोड़ लिया!

हवाओं ने रुख मोड़ लिया!
साँसों से रिस्ता तोड़ लिया।

उड़ते  हैं  पक्षी  फिर कैसे!
जहर जो फजा घोड़ लिया।

दिल  की  बात  लब कहे!
थोड़ा सा चाह जोड़ लिया।

जैसे  ही  पग  बढ़े  साकी!
वफ़ा ने  साथ छोड़ लिया।

ज्यों  ही  हम  कुछ   मांगे!
हाथों ने हाथ जोड़  लिया।

हवाओं ने रुख मोड़ लिया!
साँसों से रिस्ता तोड़ लिया।


          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

पूछे है सभी हाल कोई मिसाल तो नहीं!

पूछे है सभी हाल कोई मिसाल तो नहीं!
गर खो जाये दिल ऐसे कमाल तो नहीं।

हम बांध कर रखें सदा चाहत की डोरे!
छूट जाये कहीं साथ ऐसा सवाल तो नहीं।

वफ़ा गर निभा कर हम ख्याल तो करें!
टूट जाये फिर मन ऐसी मजाल तो नहीं।

आते जाते मिलें मिल कर हालात यूँ कहें!
खैर रखे खुदा हर पल सब बेहाल तो नहीं।

अभी डर दूरी लगा कर हमें बेदार है किये!
ऐसे कैसे रहें उफ्फ ये कहीं ज़वाल तो नहीं।

पूछे है सभी हाल कोई मिसाल तो नहीं!
गर खो जाये दिल ऐसे कमाल तो नहीं।

          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

रहने को तन्हा मजबूर है मगर!

रहने  को तन्हा  मजबूर है मगर!
रुस्वा हूं के इश्क़ जरूर है मगर।

हौसलों में अपने उड़ानों की असर!
चाहत के वास्ते मशहूर है मगर।

वक़्त की कहर आब ओ हवा का रुख!
पहर दो पहर महरूर है मगर।

दहसत से क़ल्ब दहला है सफर!
हालांकि ये रुख ए पुर नूर है मगर।

फासले से यूँ चराग ए उल्फत जले!
गर्द ए निगाह ए यार सिंदूर है मगर।

कहतें हैं चाह जिसको वफ़ा है दायरा!
दिलसे ही सही सब मंजूर है मगर।

रहने  को तन्हा  मजबूर है मगर!
रुस्वा हूं के इश्क़ जरूर है मगर।

          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

नजर नजर से करे बात कर लेने दो!


नजर नजर से करे बात कर लेने दो!
वक़्त गुजरे यूँ  पलकें  ठहर लेने दो।

इश्क़ कहते हैं किसे आओ पूछें दिल से!
नशीली निगाहों से सनम खबर लेने दो।

मिलके चाहत की सदा हम केह पायें तो!
रह ए उल्फत पे वफ़ा संवर लेने दो।

हसीन सूरत को आंखें रखे बसा कर के!
होकर करीब तो दिल में उतर लेने दो।

ख्वाब जितने हैं संग सारे पूरे कर जाएंगे!
अपने आगोश में जरा चाह निखर लेने दो।

नजर नजर से करे बात कर लेने दो!
वक़्त गुजरे यूँ  पलकें  ठहर लेने दो।

          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

पीहू पीहू पपीहा बोले, (गीत)


पीहू पीहू पपीहा बोले,
कोयल करे शोर।
नैना तक तक कटी रतिया,
जागी रे भोरे भोर।
आरे साजन ओ मोरे साजन आ,
साजन आ ओरे साजन आ।

लागी लगन है ये,
रूहों का मिलन है ये।
सपनों की बगिया में,
इश्क़ का चलन है ये।
आरे साजन ओ मोरे साजन आ,
साजन आ ओरे साजन आ।

पिहू..............................

दिल है पुकारे आ,
मन मोरा बहला जा।
जियरा धड़के ऐसे सैयां,
बाबरी बन तिनका सा।
ओरे साजन ओ मोरे साजन आ,
साजन आ ओरे साजन आ।

पीहू...............................

कहूँ तोहसे कैसे के,
दर्द दिल का सेह सेह के।
जिया अब न जाये मोहके,
संग अपने जीवन कटने दे।
ओरे साजन ओ मोरे साजन आ,
साजन आ ओरे साजन आ।

पीहू..............................

किया है प्यार तोहसे करूं,
नित हां अपना मनवा गढूं।
वफ़ा के निखरे निखरे ढंग,
दिल से एकदूजे का पढलूँ।
ओरे साजन ओ मोरे साजन आ,
साजन आ ओरे साजन आ।

पीहू..................................

          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

निगाहों के हमने कई तक़रार देखे हैं!

✍✍✍✍✍✍✍✍✍✍✍✍

निगाहों के हमने कई तक़रार देखे हैं!
उलझी सी चाहत कहीं प्यार देखे हैं।

अदाओं के पहलू और दायरे मन के!
टूटते भी आरजू यहां हजार देखे हैं।

जानते हैं इरादे लब ख़ामोश रहे यूँ!
मतलब के लगते हसीं बाजार देखे हैं।

चाहता है जमाना क्या हालात ऐसे में!
गूंजने की आवाजें दूर आसार देखे हैं।

फिरते यूँ चलते हर आहट पल के!
फासलों से छंटते यहां दीदार देखे हैं।

तबाही के मंजर जब अपने लाये तो!
दर्मियां में गिरते कई दीवार देखे हैं।

निगाहों के हमने कई तक़रार देखे हैं!
उलझी सी चाहत कहीं प्यार देखे हैं।

          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

करतें हैं प्यार करते हैं,हां तुमसे प्यार करते हैं।


करतें हैं प्यार करते हैं ,
हाँ तुमसे प्यार करते हैं।
एक पल भी चैन न पाऊं,
बिन तेरे मैं मर जाऊं।
करतें हैं इंतजार करते हैं,
हां तेरा इंतजार करते हैं।

करतें हैं प्यार करते हैं,
हां तुमसे प्यार करते हैं।

धड़के मेरा दिल,
लगे जीना है मुश्किल।
है तस्वीर तेरी आँखों में,
ढूंढे चाहत की मंजिल।
करतें हैं इजहार करते हैं,
हां तुझसे इजहार करते हैं।

करतें हैं प्यार करते हैं,
हां तुमसे प्यार करते हैं।

आ जाओ गले लगाओ,
न रूठो दिल मिलाओ।
करतें हैं इश्क़ करेंगे,
मेरे रूहों में समा जाओ।
करतें हैं इकरार करते हैं,
हां दिलसे इकरार करते हैं।

करतें हैं प्यार करते हैं,
हां तुमसे प्यार करते हैं।

पूछे जो कोई हमसे,
संच कहूँ कसम से।
नाम तेरा ले ले कर,
मन ही मन मेरे दिलवर।
करतें हैं पुकार करते हैं,
हां तुझको पुकार करते हैं।

करतें हैं प्यार करते हैं,
हां तुमसे प्यार करते हैं।

          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

परछांई तेरे प्यार की मुझपे जो पड़ी है!

परछांई   तेरे   प्यार  की   मुझपे  जो  पड़ी  है!
गुमसुम   हुआ   इश्क़   का  पहरे  की  घड़ी है।

गुनगुना   उठा   नगमा  ये  सोंचते  ही  लब से!
महफ़िल सजी आशिकी की रिश्ते की कड़ी है।

मचलते   रहे  हमारे  यूँ  आरजू  भी  दिल  का!
मेहमान  हुए  दिलके  तो  सपने  भी  जुड़ी  है।

हसरत  खिले  चाहत  का  मंजर  भी  जवां है!
निखरता  रहा  सूरत  भी  नजरे  जा  लड़ी  है।

धड़काये  दिल  बेचैन  हूं  मिलने  को आप से!
उल्फत  करें   आइये  यूँ  लुभाने  पे  अड़ी  है।

परछांई   तेरे   प्यार  की   मुझपे  जो  पड़ी  है!
गुमसुम   हुआ   इश्क़   का  पहरे  की  घड़ी है।

          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

अपनी आंखों में आपको बसाया तो है!


अपनी आंखों में आपको बसाया तो है!
मिलाके  मन  को  इश्क़  जताया तो है।

प्यार  हुआ  के  खुमार  चाहत  की  है!
नजरें  मिला  के  हमने  बताया  तो  है।

छुपाऊं  पर   ये   छुपाये   छुपती  नहीं!
असर  रूहों  को  हमारे जगाया  तो है।

सताये  हम  हैं  सितम  आपकी भी है!
करीब  आकर  फिर  भी मनाया तो है।

साथियां  आ  रह  ए  उल्फत  की चुनें!
दिलसे  दिल  को आपसे लगाया तो है।

अपनी आंखों में आपको बसाया तो है!
मिलाके  मन  को  इश्क़  जताया तो है।

          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

सुनते ही तेरी आहट दिल शोर करता है!


सुनते  ही  तेरी  आहट  दिल शोर करता है!
उल्फत के लिये चाहत तेरी  ओर करता है।

धड़क ही जाये अक्सर दिल तेरे फसाने से!
हसरत से जब पलभर कभी गौर करता है।

कहिये  के  क्यूं  बेताब  मन आहें  भरते हैं!
जताने को तो अहद ए वफ़ा ज़ोर करता है।

फिसल के कैसे संभले हम आके समझा दे!
कसम है  बता  इतना  सदा  दौर  करता है।

इश्क़  से किस कदर कैसे  रहें  फासले   में!
क़यास है चाह अपना मन विभोर करता है।

सुनते  ही  तेरी  आहट  दिल शोर करता है!
उल्फत के लिये चाहत तेरी  ओर करता है।।

          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

खुश है अपनों से भी गैरों से जताना आये।1।

2122-1122-1122-22

जिन को हालात पे जीने का बहाना आये!
खुश है अपनों से भी गैरों से जताना आये।1।

चलते जातें हैं यूँ राहों में बढ़कर फिर भी!
डगमगाते तो हैं कदमों को दबाना आये।2।

दिल को समझाए ऐ दिल तूँ भी तो ढलते जाओ!
इससे पहले के गम को ले के फसाना आये।3।

जिन के यादों में हूँ खोया वो ना समझा जाना!
पल को हम भी जी लें जीभर वो जमाना आये।4

किस को किस कदर से चाहें कहें अपना साथी!
हमने हर पल ही दूआ की मनाना आये।5।

जिन को हालात पे जीने का बहाना आये!
खुश है अपनों से भी गैरों से जताना आये।1।


          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

कभी इकरार कर बैठे . . . . . . . . गीत


   कभी इकरार कर बैठे, कभी इन्कार कर बैठे
   कभी इकरार कर बैठे, कभी इन्कार कर बैठे
   जो गुस्ताख़ी न करनी थी, वही हर बार कर बैठे
   कभी इकरार कर बैठे, कभी इन्कार कर बैठे

   खिलौना दिल हमारा था जो एक दिन टूटना ही था
   फसाना ही ये ऐसा था जो एक दिन भूलना ही था
   कभी इज़हार कर बैठे, कभी ऐतवार कर बैठे
   जो गुस्ताख़ी न करनी थी वही हर बार कर बैठे
   कभी इकरार कर बैठे, कभी इन्कार कर बैठे
    
    हमें गर ये पता होता बहारें फिर न आयेंगी
    मौहब्बत की हंसीं घडि़याँ कभी इतना रुलायेंगी
    कभी इस पार जा बैठे, कभी उस पार जा बैठे
    जो गुस्ताख़ी न करनी थी वही हर बार कर बैठे
    कभी इकरार कर बैठे, कभी इन्कार कर बैठे

    कभी रुख़सार को चूमा, कभी तेरे हाथ को चूमा
    है चूमा तुझको जितना, नहीं किसी और को चूमा
    कभी ये दिल गंवा बैठे, कभी ये जां लुटा बैठे
    जो गुस्ताख़ी न करनी थी वही हर बार कर बैठे
    कभी इकरार कर बैठे, कभी इन्कार कर बैठे

    बड़ा रंगीन नज़ारा था, वो था बरसात का मौसम
    लबों से लब थे टकराते, अज़ब दिलदार का आलम
    कभी भूगोल पढ़ बैठे, कभी इतिहास लिख बैठे
    जो गुस्ताख़ी न करनी थी, वही हर बार कर बैठे
    कभी इकरार कर बैठे, कभी इन्कार कर बैठे

          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

चमकते चांद को देखे हुए (गीत)


        चमकते चांद को देखे हुए ज़माना हुआ
       मचलती शाम को देखे हुए ज़माना हुआ

                    निग़ाह मिली ही थी और बात होने को थी
                    नशीला जाम वो थी और रात होने को थी
                     लबों के जाम को देखे हुए ज़माना हुआ
                    मचलती शाम को देखे हुए ज़माना हुआ

                    धुंआ किधर से उठा रातोदिन बढ़ता गया
                     अज़ब सा दर्द उठा दर्द यह बढ़ता गया
                    दहकती आग को देखे हुए ज़माना हुआ
                    मचलती शाम को देखे हुए ज़माना हुआ

                       इलाज मुमकिन पर दवा है ही नहीं
                     हालात मुश्किल पर वो बात है ही नहीं
                     लिखे पैग़ाम को देखे हुए ज़माना हुआ
                    मचलती शाम को देखे हुए ज़माना हुआ

                      तमाशा देखेंगे हम आज किस्मत का
                       मिजाज देखेंगे वफ़ा के दुश्मन का
                    तड़फते यार को देखे हुए ज़माना हुआ
                   मचलती शाम को देखे हुए ज़माना हुआ


          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

दिल मिले दिल से लब पे मेरा तराना हो।१।

उन के पलकों के पीछे मेरा ठिकाना हो!
दिल मिले दिल से लब पे मेरा तराना हो।१।

रुख़ पे ज़ुल्फ़ें जो बिखराये जब कभी हँसकर!
हर तरफ हो हँसीं मौसम पल सुहाना है।२।

राज ए दिल जताये जब प्यार है कितना!
हम से कह दे कसम से गर घर बसाना हो।३।

इश्क़ हुआ और मेरी हसरत सजी जैसे!
चाहतों का नया फिर कोई बहाना हो।४।

गुल खिले और गुल ए गुलशन रहे खिलता!
बीच दिलके यूँ महब्बत का बस फसाना हो।५।

उन के पलकों के पीछे मेरा ठिकाना हो!
दिल मिले दिल से लब पे मेरा तराना हो।१।

          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

उसने देखा तो आँख भर देख़ा

2122 1212 22

उसने  देखा तो  आँख भर  देख़ा
हो  के  दुनिया  से  बेखबर  देखा

आँख   मदहोश   जिस्म   बेकाबू
उसने   मुझको जो झूम कर देखा

सच  है  ये  मैने अपनी आँखो  से 
जादू   ए  इश्क़  का  असर  देखा

इस   तरह  छा गया   तसब्बुर  में 
ख्वाब  में उसको   रात  भर देखा

वक्ते रुख़सत में आँख नम कर के 
छूटता    पीछे    मैने   घर    देखा

एक  पल  में वो  कर गया पागल
खूब   उस   यार  में  हुनर   देखा

बिजलियाँ   सी  गिरी हैं सीने पर
क्रिश जब उसको चश्मे तर  देखा 

          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

चाहे तुम्हें दिल कितना (गीत)

गीत

मापनी- 2122-222-212-2122

चाहे तुम्हें दिल कितना,
किस कदर हम बतायें।
तुम्हें भुलकर,
रह ना पायेंगे गम सताये।
हाये हाये ओ हो हो हो

चाहे तुम्हें...................

ओ जाने जां मेहरबां,
हमनवा दिल मिला कर।
चल दिये तुमने फिर,
तंहाई के रुत जताये।
हाये हाये ओ हो हो हो

चाहे तुम्हें...............

हम तो महब्बत करतें हैं तुमसे,
दिल से करेंगे।
रात दिन हर पल हो,
तुम मन में मेरे समाये।
हाये हाये ओ हो हो हो

चाहे तुम्हें...............

ढल तो मेरे सपनों के संग,
तूं हर सफर में।
ख्वाब सारे दिलके,
फिर हमसफर गुल खिलाये।
हाये हाये ओ हो हो हो

चाहे तुम्हें..................

आ जा के दिल अब,
तुम्हीं को पुकारे है पल पल।
नींद तो लुट ली जानेमन,
कहें क्या सुनाये।
हाये हाये ओ हो हो हो

चाहे तुम्हें................

          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

मुस्कान जिसकी देखकर हर दर्द गायब हो जाता


मुस्कान जिसकी देखकर हर दर्द गायब हो जाता 
बैठा हूँ मैं यह सोचकर हमदर्द वो मेरा हो जाता

वो परियों जैसी दिखती है, मैं पंछी एक मतवाला हूं
ऐसे अफ़साने लिखती है, मैं निसदिन पढ़ने वाला हूँ
अल्फ़ाज उसके सोचकर हर कोई शायर हो जाता
बैठा हूँ मैं यह सोचकर हमदर्द वो मेरा हो जाता

नैना दो जैसे झील हो, महका फूलों सा है बदन
तन कोमल कोमल चांदनीं, कोई कैसे न हो जाये मगन
अरमान जिसके देखकर हर कोई घायल हो जाता
बैठा हूँ मैं यह सोचकर हमदर्द वो मेरा हो जाता

मैं सोच घर से था निकला, वो रफ़्ता रफ़्ता गुजर गयी
अन्जान ये कैसा था बंधन, वो सहमे सहमे किधर गयी
पैग़ाम जिसके देखकर हर कोई दीवाना हो जाता
बैठा हूँ मैं यह सोचकर हमदर्द वो मेरा हो जाता

पड़ गया मैं कैसी उलझन में, सुनसान डगर सूनी गलियाँ
कब दीप जले कब शाम हुई, हैं धागों सी उलझी घड़ियाँ
अख़लाख़ उसके देखकर. हर कोई चाकर हो जाता
बैठा हूँ मैं यह सोचकर हमदर्द वो मेरा हो जाता


          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

पुराणों के अनुसार माता कामधेनु



*पुराणों के अनुसार माता कामधेनु 🐄 समुद्र मंथन से प्रकट हुई थी। पुराणों मे कामधेनु के कई नामों का उल्लेख है - नंदिनी, सुनन्दा, सुरभि, सुशीला, सुमन इत्यादि। ऐसा माना जाता है कि मुनि कश्यप ने वरुण देव से कामधेनु मांगी था, लेकिन कार्य पुरा होने पर भी उन्होने कामधेनु को वरुण देव को वापस नहीं किया। 😳⛳इससे क्रोधित होकर वरुण देव ने कश्यप जी को श्राप दे दिया, 😳☝🏻और उनका जन्म, कृष्ण के काल में, ग्वाले के रूप में हुआ। कामधेनु माता की कथा, भगवान विष्णु के अवतार परशुराम से जुड़ी है।👉🏻⛳ जमदग्नि ऋषि, परशुराम के पिता, को भगवान इंद्र ने कुछ समय के लिये कामधेनु गाय दी थी। एक बार सहस्त्रबाहु अर्जुन नाम के राजा उनके आश्रम मे पहुँचे। महर्षि ने उनका यथोचित स्वागत किया। राजा के मन में यह बात आई कि महर्षि ने उनका इतनी अच्छी तरह स्वागत कैसे किया। तभी उस राजा ने महर्षि के गौशाला में कामधेनु गाय को देखा। राजा समझ गया कि यह सब उस कामधेनु गाय 🐄का प्रभाव है।*😳☝🏻
*👉🏻अत: राजा ने महर्षि से कामधेनु🐄 गाय माँगी। जब महर्षि ने कामधेनु देने में असमर्थता व्यक्त की बताया कि उन्हें कुछ समय तक कामधेनु की सेवा का अवसर मिला है। तब सहस्त्रार्जुन ने बल पूर्वक कामधेनु गाय को आश्रम से ले गया।😳☝🏻 इधर जब परशुराम जी आश्रम लौटे तब महर्षि ने उन्हें बताया कि सहस्त्रार्जुन कामधेनु को ले गया। परशुराम जी उसी क्षण सहस्त्रार्जुन के महल को गये और उसे कामधेनु लौटाने के लिये कहा। सहस्त्रार्जुन ने कहा –“मैं गाय वापस नहीं करूंगा और तुम कौन हो, वापस जाओ । मैं राजा हूँ, राजा का प्रजा के हर वस्तु पर अधिकार होता है। इसलिये वापस जाओ नहीं तो बंदी बनाकर कारागार में बंद कर दूंगा। ” उसने अपने सैनिकों को आदेश दे दिया, परशुराम जी को पकड़ने के लिये। परशुराम जी ने क्रोध में भरकर सभी सैनिकों को मार दिया। सहस्त्रार्जुन अपने सभी सैनिकों और पुत्रों सहित परशुराम जी से लड़ने लगा।*😳☝🏻
*👉🏻सहस्त्रार्जुन को दत्तात्रेय भगवान का आशीर्वाद प्राप्त था कि पृथ्वी पर उसे कोई क्षत्रिय राजा हरा नहीं सकता एवं युद्ध के समय उसके हजारों हाथ होंगे। अत: वह अपने हजारों बाहु के साथ लड़ने लगा। परशुराम ने सहस्त्रार्जुन और उसके अधिकांश सैनिकों व पुत्रों को मार डाला😳☝🏻। इसके बाद परशुराम जी कामधेनु 🐄को लेकर आश्रम लौट आये। महर्षि जमदग्नि ने कहा – “पुत्र तुमने एक राजा की हत्या करके ठीक नहीं किया। तुम्हें प्रायश्चित के लिये तीर्थ यात्रा पर जाना होगा।” तब परशुराम जी ने कहा- “वो मुझे बंदी बनाना चाहता था। तभी मैंने उससे युद्ध किया । उसने एक ब्राह्मण की गाय को जबरन छीना था। ऐसे भी वह अभिमानी, अहंकारी तथा अधर्मी हो चुका था।” इसके बाद परशुराम जी तीर्थ यात्रा पर चले गये।*✔️⛳
*😳👉🏻इधर जब सहस्त्रार्जुन के बचे हुए पुत्रों को जब पता चला कि परशुराम जी तीर्थ यात्रा पर गये हैं तो वे सब बदला लेने के लिये आश्रम पहुँचे। उस समय आश्रम में केवल माता रेणूका और महर्षि जमदग्नि थे। उन्होंने ध्यानमग्न महर्षि जमदग्नि का सिर काट दिया 😳और माता रेणुका को मारने लगे। माता रेणुका ने अपने पुत्र परशुराम को पुकारा ।उस वक्त परशुराम जी तीर्थ में तपस्या में लीन थे । लेकिन माता की आवाज सुनकर वे तुरंत ही अपने आश्रम को लौट आये। ⛳अपने पिता का शरीर भाईयों के पास छोड़कर, सहस्त्रार्जुन के महल मे गये। वहाँ. परशुराम ने सहस्त्रार्जुन के बचे हुये पुत्रों को मार डाला। ✔️☝🏻अपने आश्रम लौट कर वे पिता के शरीर को लेकर कुरुक्षेत्र गये। वहाँ पर मंत्र की सहायता से अपने पिता के सिर को जोड़ दिया तथा उन्हें जीवित किया। अपने पिता को जीवित कर, सप्तऋषि मंडल में सातवें ऋषि के रूप में स्थापित कर दिया ।*😊⛳✔️

*जो गौमाता 🐄 को पशु समझता है वह स्वयं पशु है।।*


                   आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

Sunday, May 10, 2020

हमसे जो रूठे तो टूट जाएंगे हम!


हमसे  जो  रूठे  तो टूट  जाएंगे हम!
कसम  से  आह  में घुट  जाएंगे हम।

जिंदगी के पल का यहां भरोसा नहीं!
थामले आ हाथों को छूट जाएंगे हम।

सफर में  हमें  जो  दूर  भुलाके चले!
तन्हा  तो  राहों  में  लूट  जाएंगे हम।

धड़कनों   की  सदा  कहे  प्यार  कर!
मिट्टी  का  घड़ा  हूं  फुट  जायेंगे हम।

आइये तो पास भी  खास होकर मेरे!
इश्क़  में  वफ़ा  से  जुट  जाएंगे हम।

हमसे  जो  रूठे  तो टूट  जाएंगे हम!
कसम  से  आह  में घुट  जाएंगे हम।

          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

Saturday, May 9, 2020

मातृदिवस पर

माँ की ममता का नहीं, लग सकता है मोल! 
जिसने भी समझा इसे, वह मानव अनमोल!! 

स्वर्ग है जिसके चरण में, माँ है उसका नाम! 
उन  चरणों को पूजकर, मिलते  चारों  धाम!! 

माता से मिलती हमें, जीवन  की  सौगात! 
उनसे बढ़कर कौन है, इस दुनिया में नात!! 

सबकी सारी गलतियां, जाती पल में  भूल! 
नित्य लगाओ माथ पर, माँ चरणों की धूल!! 

माँ का त्याग, बलिदान, बनाए हमें  महान! 
फिर भी हम भूलें उसे, करें न उसका मान!! 

न चुकाने से चुक सके, माँ का वो उपकार! 
जीवन उसने कर दिया, सबका ही साकार!! 

माता माता रट रहे, माँ की न रखी लाज !
माँ बिचारी तङप रही, कोई न पूछे आज!! 

हर  दम  ही  करती  सदा, वह  सब  पर उपकार! 
फिर भी मिलता न उसको, सबके  मन का प्यार!! 

          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

चछतण

छतण

मृत्यु टाले नहीं टलती चाहे कितनी भी चतुराई की जाए


*मृत्यु टाले नहीं टलती चाहे कितनी भी चतुराई की जाए*. :-.. 

एक पौराणिक कथा के अनुसार भगवान विष्णु गरुड़ पर बैठ कर कैलाश पर्वत पर गए। द्वार पर गरुड़ को छोड़ कर श्री हरि खुद शिव से मिलने अंदर चले गए। तब कैलाश की प्राकृतिक शोभा को देख कर गरुड़ मंत्रमुग्ध थे कि तभी उनकी नजर एक खूबसूरत छोटी सी चिड़िया पर पड़ी। चिड़िया कुछ इतनी सुंदर थी कि गरुड़ के सारे विचार उसकी तरफ आकर्षित होने लगे।
उसी समय कैलाश पर यम देव पधारे और अंदर जाने से पहले उन्होंने उस छोटे से पक्षी को आश्चर्य की दृष्टि से देखा। गरुड़ समझ गए उस चिड़िया का अंत निकट है और यमदेव कैलाश से निकलते ही उसे अपने साथ यमलोक ले जाएँगे।
गरूड़ को दया आ गई। इतनी छोटी और सुंदर चिड़िया को मरता हुआ नहीं देख सकते थे। उसे अपने पंजों में दबाया और कैलाश से हजारो कोश दूर एक जंगल में एक चट्टान के ऊपर छोड़ दिया, और खुद वापिस कैलाश पर आ गया। आखिर जब यम बाहर आए तो गरुड़ ने पूछ ही लिया कि उन्होंने उस चिड़िया को इतनी आश्चर्य भरी नजर से क्यों देखा था।
यम देव बोले "गरुड़ जब मैंने उस चिड़िया को देखा तो मुझे ज्ञात हुआ कि वो चिड़िया कुछ ही पल बाद यहाँ से हजारों कोस दूर एक नाग द्वारा खा ली जाएगी। मैं सोच रहा था कि वो इतनी जल्दी इतनी दूर कैसे जाएगी, पर अब जब वो यहाँ नहीं है तो निश्चित ही वो मर चुकी होगी।"
गरुड़ समझ गये *मृत्यु टाले नहीं टलती चाहे कितनी भी चतुराई की जाए*।"
इस लिए श्री कृष्ण कहते है- *करता तू वह है, जो तू चाहता है*
*परन्तु होता वह है, जो में चाहता हूँ*
*कर तू वह, जो में चाहता हूँ*
*फिर होगा वो, जो तू चाहेगा* ।

सभी भगवत्प्रेमियों को आज दिवस की *"मंगलमय कामना"*----🙏🏻🙏🏻🌹

♻🏵♻🏵♻🏵♻🏵♻🏵♻

                   आपका अपना
             "पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

Friday, May 8, 2020

जब याद वो पगली आती है

जब याद वो पगली आती है
दिल   में    तूफान उठाती है 

आँखें भी बरसने  लगती  हैं
रग  रग में  उदासी  छाती है

उसके पागलपनकी ये अदा
मेरे   दिल  को भरमाती   है 

उसकी भोली सूरत दिल पर
बिजली सी रोज़  गिराती  है 

मुद्दत  से   मिलते  आये   हैं
लेकिन अब तक शरमाती है

वो  भी  करती है  याद  मुझे 
मेरी   हिचकी   बतलाती  है 

          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

Thursday, May 7, 2020

चाँद जैसा सँवर गया कोई


चाँद    जैसा    सँवर   गया   कोई
बन  के  खुशबू  बिखर  गया कोई

उसको  देखा तो यह लगा मुझको
जैसे  दिल  में   उतर   गया  कोई

तेरी  तारीफ़   करता  निकला   है
 शख़्स जो  तेरे    घर  गया  कोई

तेरे   पहलू   मे   यूँ  लगा  हमदम
बिजलियां  तन में भर  गया कोई

रुख़सती  पर   लगा  तुम्हारी  यह
जान   ले  के   मुकर   गया  कोई 

जान  मुड़ कर  के  देख तो  लेती
तुझपे  मर कर  के मर  गया कोई

क्रिश खोली हैं उसने जुल्फें  क्या 
जैसे   तूफां   गुज़र    गया  कोई

         ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

इतना भी न दिलको मजबूर किया जाय!

इतना भी न दिलको मजबूर किया जाय!
कहना  है  वफ़ा  का  दस्तूर किया जाय।

गलती  है  हमारा  के  आपकी  फितरत!
पहले तो खामियां अभी  दूर किया जाय।

आपकी  यूँ  अदाएं मेरे  मनको  झिझोरे!
सोंचता  हूं  सदा  कैसे मंजूर किया जाय।

चाहत  की   डोर   खींचते  जुड़ते  रास्ते!
हमराह   यूँ  चलें   मशहूर   किया  जाय।

दिलसे  हो  दिल  मिलता  कसमे   इरादे!
सफर को तय मिलके जरूर किया जाय।

इतना भी न दिलको मजबूर किया जाय!
कहना  है  वफ़ा  का  दस्तूर किया जाय।

         ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

Wednesday, May 6, 2020

महाराणा प्रताप जी को श्रद्धांजलि समर्पित कुछ छंद

                  छन्द(1)
सुना और पढ़ा होगाआप सभीलोगों ने ही
महाराणा संघ उस  चेतक  कहानी  को।
जन्में मेवाड़ में वे  ,राजा थे मेवाड़ के ही,
देश हित अर्पित ,  किया  जिंदगानी  को।
मान और शक्ति  जैसे  कई थे गद्दार वहां,
फिर भी ना डरे राणा अकबर सानी को।
कांपते थे शत्रु भाला देखकर जिसका ही।
श्रद्धा सुमन अर्पित उसी  बलिदानी  को।।
                     छन्द(2) 
धन्य थे पुरोहित मेवाड़ की सुरक्षा हित,
खुद को कटार मार  दे  दी  कुर्बानी  थी।
धन्यमंत्री भामाशाह दान किया निज धन,
राणा ने प्रारंभ  की ,  नई  जिंदगानी   थी।
धनवीर झाला और धन्य थे हकीम खान,
लड़कर युद्ध में मिटाई   जो  निशानी  थी।
56 किलो को जीत लेना था चित्तौड़ अभी
स्वर्ग को सीधारे राणा इतनी कहानी थी।।
                  छन्द(3)
जैसे चांद तारे सूर्य जगमग ब्योम में हों,
ऐसा ही हो जगमग   नाम  तेरा  जग में।
शौर्य शक्ति शाहस का पर्याय कहा जाता,
अद्भुत  अनुपम    कार्य  किये  जग   में।
राजपूत खानदान की हो तुम आन बान,
भारतीयता की   पहचान  बने  जग  में ।
आओ फिर एक बार मात्र भू के कर्णधार,
मातृभूमि की सेवा हेतु काम आए जग में।

          ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
        धार्मिक प्रवक्ता-ओज-व्यंग्य कवि
                    राष्ट्रीय प्रवक्ता
           राष्ट्र भाषा प्रचार मंच-भारत
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

मैं अचम्भित देखता हूँ प्रीतिकर मुझको सुहाता।


कौन प्राची के छितिज से आ रहा है गीत गाता,
मैं अचम्भित देखता हूँ प्रीतिकर मुझको सुहाता।

वेदनाएं बर्फ जैसे उष्णता से गल रही हैं, 
या कि जैसे हार कर ये हाथ अपने मल रही हैं।
पंथ काँटों से भरा पर आदमी क्यों हार माने, 
नित सबेरे जाग कर के खग कुलों सा गीत गाने। 
एक-दूजे पर मनुज यह चल रहा है तान छाता,
मैं अचम्भित देखता हूँ प्रीतिकर मुझको सुहाता। 

वेदनाएं सिर उठाती और फिर-फिर  टूट जातीं, 
मस्त होकर डाल पर है पुनः कोयल कूक जाती।
धुप्प अँधेरा रवि किरन पा इस धरा से दूर होता,
या कि मानव निज अक्षय का विश्व में है बीज बोता।
हर्ष मानव का छितिज तक फैलकर विस्तार पाता,
मैं अचम्भित देखता हूँ प्रीतिकर मुझको सुहाता।

रवि रथी की घरघराहट ज्यों अधिक नजदीक आती,
इस धरा की नींद अपने आप ही है टूट  जाती।
सर्वप्रथम हैं वृक्ष जागे खग कुलों की नींद टूटे,
चर-अचर हैं जो जगत के स्वर सभी के कंठ फूटे।
वाद्य वीणा का धरा पर सप्त स्वर में रूप पाता,
मैं अचम्भित देखता हूँ प्रीतिकर मुझको सुहाता।


         ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

कोरोना विषाणु


कोरोना अब तेज,हो रहा हाहाकारी, 
भागे जाए दूर,चढ़ो छत पीटो तारी।
खेमेश्वर संदेश यही,दिल्ली से आया,
तभी बनेगी बात,आज सबने दुहराया।

यह अवरोधक ज्ञान,मानकर करो आचरण,
नहीं बनो मतिमंद,धार कर जीर्ण आवरण।
फूँको अपने शंख,जंग की खुली चुनौती,
रहना सदा निरोग,हमारी यही बपौती।

सहमे सारे राष्ट्र, भूलकर तानाशाही, 
यह है चीनी डंक,सजग हो बचना राही,
गये तनिक भी चूक,मूक हो सोना होगा, 
जीवन मिला अमूल्य,हाथ से धोना होगा।

ठहरो कुछ दिन आप,जान लो वायरस ठहरा, 
इसकी सारी नीव,स्वत:ही जाए भहरा।
लगी जहाँ जो आग,वहीं पर ठंडा जाये,
यह मानव की जाति,जान लो अमृत पाये।

रोये इटली-चीन,जगत यह हुआ रुआंसा, 
मानवता की हानि,जानते केवल  झांसा।
मनुज-मनुज का शत्रु,हेतु यह रचना सारी, 
मनुज हुआ अभिशप्त, त्रासदी यह भयकारी।

यह भारी षडयंत्र, मनुज की रचना मानो,
रहे वायरस दूर,बाँध कर मुट्ठी तानो।
परंपरा का राज,आचरण करके जानो,
यही वेद का ज्ञान,स्वच्छता को पहचानो।

दया धर्म का मूल,सनातन कहता अपना,
सत्य एक है प्रेम,जगत को जानो सपना।
धरती का संताप,संत के हृदय समाये, 
चलो संत के पास,यही सद्ग्रंथ बताये।

दया-धर्म शृंगार,मनुज जब अपना भूले,
चढ़ ऊपर आकाश,चाहता रवि को छू ले।
खाये सारे जीव,कुतर्की जीवन जीता,
खेमेश्वर तब जान,हुआ करतल है रीता।

कलम कहे अब रोक,यहीं पर अपना रोला,
माँग मनुज से भीख,दया का खाली झोला।
यह जीवन का शाप,यहीं मिट जाए सारा,
होने को है भोर,उदित होता रवि तारा

         ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

कुछ दोहे वीर रस के


डर-डर कर जीना जिसे,देना क्या धिक्कार, 
पहले से ही वह मरा,उसका क्या आधार।

आये बर्बर देश में, हमको रौंदे नाच,
हिंदू को बंदी किये,तोड़े मंदिर काँच।

तीस कोटि हिंदू अभी,फँसे जाल इस्लाम, 
मुक्त कराये जो इन्हें, वही समय का राम।

पाक गया बँगला गया, और गया अफगान, 
काशी-मथुरा-अवध भी,मिले न सस्ता जान।

पाक निरंतर कर रहा सीमा पर से वार,
मुर्दा जैसे हम हुए,फिर किसको धिक्कार।

भारत माँ के लाल को,करता नित्य हलाल,
हम तो बैठे मौज से,पढ़ अखबारी हाल।

तुच्छ स्वार्थ से हम ग्रसित, उनका लक्ष्य कराल,
चोट चतुर्दिक् दे रहे,करके प्रेत धमाल।

सीमा पर आतंक है,भीतर भी आतंक, 
छिपा हुआ क्यों साद है,थूक हजारों डंक।

सब की हो कटिबद्धता,जीते हिंदुस्तान, 
भीतर यदि हम एक हों, रहे युद्ध आसान।

भीतर भी इस्लाम रिपु,बाहर भी इस्लाम, 
सच्चाई स्वीकार लें, तब जय मिले ललाम।

एक देश कानून दो,डाल रहा अवरोध, 
हम सब एक समान हैं, कब जागेगा बोध।

थूकवाद का सच कहो,बोलो जी अब साँच,
साथी सारे डर रहे,कलम रही यह बाँच।

         ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

पाँव छुओ धरती उड़ियाना छंद


प्रातः जब नींद खुले,पाँव छुओ धरती,
जीवन का दान करे,क्लेश यही हरती।
माता यह प्रेम भरी,धैर्य धरे रहती,
जड़-चेतन जीव सभी,भार यही सहती।

जीवन का मूल यही,एक नाम गइया,
कहते हैं खेमेश्वर,सुन मेरे भइया।
बैठाती नित्य यही,मोद भरी कनिया, 
सारे धन-धान्य भरे,और देत धनिया।

जीवन का यही मूल, प्रवहमान सरिता, 
ईश की यह वरदान,देह-प्राण भरिता।
सकल संत-शास्त्र कहें,बात मान गुन लें,
खग कुल भी गान करें,प्रेम पंथ चुन लें। 

धरती पर पाप नहीं, पुण्य राह चुनना,
कहते जो श्रेष्ठ सदा,एक वही धुनना।
जीवन आलोक चाह, प्रात बोल मुनिया,
और सब त्याग चलो,मिथ्या झुनझुनिया।

राम यहीं कृष्ण यहीं, श्रेष्ठ किये करनी,
इनको भी धरे रही,माटी की धरनी,
जाति-पंथ भेद त्याग,नमन करो इसको,
अथवा फिर छोङ इसे,ऊपर को खिसको।

         ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

मानव की गरिमा घटी


बङा भयानक चीन है,जान गया संसार,
कोरोना से त्रस्त हो,करता हाहाकार।

शव पर शव गिरने लगे,ज्यों पतझड़ के पात,
जैव युद्ध से प्रकट अब,मानव की औकात।

अग्नि विछौना बन रहा,कलम कहत सकुचात,
आज शाम यह देख लें,शंसय ग्रसित प्रभात।

अमरीका-इटली हुए,लख लें सभी  अवाक्,
मौन अधर आँखें लखें,हृदय हो रहा चाक।

अपनों से संभव नहीं,कर लें थोङी बात,
मृत्यु बिलैया घूमती,सब पर भारी घात। 

कहाँ कोरोना है छिपा,सब गलियां भयभीत,
ऊँघ रही संवेदना,देख दानवी जीत।

पौराणिक आख्यान का,जागा दानव आज,
मौन विचारक जन हुए,जीवन झपटे बाज।

मौन अधर अब नील है,सुर सरिता भी मौन,
लख संहारक है जगा,भला बोलता कौन।

एक कोरोना के उदय,अस्त-व्यस्त सब लोग, 
पल-पल लीले जिंदगी,जाग दानवी भोग।

निज क्रीङा में व्यस्त था,मानव का भूगोल, 
सहसा सब गिरने लगे,आया यह भूडोल।

उठ वुहान की धरा से,कोरोना आतंक, 
सभी राष्ट्र पर छा गया,मार रहा निज डंक।

भारत की सङकें भरी,उमङी ऐसी भीङ,
व्याकुल मानव ढूँढ़ते,अपना-अपना नीङ।

बोले थे मोदी यही,ठहरें अपने लोग,
घातक से उपचार का,सर्वोत्तम यह योग।

कार्य दिवस जब रिक्त सब,जागा अधिक अभाव, 
रोटी करतल की छिनी,धनिकों के बर्ताव।

श्रमिक हुए हतप्रभ सभी,भागे अपने गाँव, 
इधर कुआं खाईं उधर,सब जन आज बेदाँव।

अफरा-तफरी मच गयी,भारी विपति विहान,
सुने श्रवन ने दृग लखे,मरघट का यह गान।

 सफल लाकडाउन हुआ,असफल मानव प्रीति, 
अपनों जन के मध्य में, कोरोना की भीति।

अपना घर आँगन दिखे,सरिता के दो ओर,
एक हिमालय का शिखर,एक सिंधु का छोर।

विस्मयकारी लग रहा,जय विकास जय गान,
ऋषियों के इस देश में,अपने हिंदुस्तान। 

गरिमा मानव की घटी,पूँजी के इस खेल, 
मानव कैसे दौडता,होकर बिना नकेल।

         ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

डाक घर (मत्तगयंद सवैया)


डाक लिए वह आवत देखत
नाच उठी मन मोद छुपाती,
श्याम लिखे इक आखर सुंदर
बाँच रही मन ही मन पाती।
प्रीति भरी हिय माहि निहारत
आँचल ओट रही मदमाती,
पीय हमें लिख भेजत पावन
प्रेम पियूष सुहावन थाती।।

डाक लिए वह डाकत-कूदत
धावत-आवत गेह किनारे,
बोलत बोल सुनावत सुंदर
द्वार रहा वह सोह सुआ रे।
पीय लिखे खत पाठ करो अब
नेह दिखावत प्राण पिया रे,
आकुल खोल रही खत आपन
प्राण पिया लखु तोहि पुकारे।

         ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

जागरूक (कुण्डलिनी)


जागो जागो राष्ट्र के,मेरे वीर जवान,
जागरूक रहना सदा,समय करे आह्वान।
समय करे आह्वान,नींद की इच्छा त्यागो,
हर सीमा पर आज, सदा चौकन्ने जागो।

नेता गण सोये बहुत,इस क्षण लें अब जाग,
नींद निगोड़ी चाहती, छोड़ें वह अनुराग।
छोडें वह अनुराग,कहें सारे अध्येता,
सिर पर चढ़ता सूर्य,भला क्यों सोये नेता।

सोया सो खोया कहें,अपने जन जो ज्येष्ठ,
जिसे कहावत यह लगे,सचमुच में ही श्रेष्ठ।
सचमुच में ही श्रेष्ठ,वही तन-मन का धोया,
और सभी मृत देह,जानिए जो है सोया।

पानी अपने देश का,उससे रक्षित जान,
जागरूक रहना सदा,जिसमें उपजा ज्ञान।
जिसमें उपजा ज्ञान,उसी से धरती धानी,
बहे उसी में रक्त,और गंगा का पानी।

माथा उनको अब झुका,सोये हैं जो मस्त,
जिनके जीवन का अहो,सूर्य हो गया अस्त।
सूर्य हो गया अस्त,शून्य है उनकी गाथा,
उपजे हाय कपूत,झुका यह जिनसे माथा।

होता क्यों ब्यभिचार है,प्रश्न बड़ा गम्भीर,
इसका क्या उपचार है,कहो दाँव आखीर।
कहो दाँव आखीर,बहन का धीरज खोता,
जागरूक यजमान,बोल दें कितने होता।

         ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

पाखंड (कुण्डलिया)


पंडित-मुल्ला-पादरी,नेता के पाखंड,
क्यों समाज को भोगना,पड़ता इसका दंड।
पड़ता इसका दंड,विवेकी उत्तर दीजे,
समाधान की माँग,करे जो आदर कीजे।
खेमेश्वर हठ त्याग,ढोंग को करिए खंडित,
फिर-फिर यह आह्वान,सुनें ज्ञानी जन पंडित।

ज्ञानी अब भी जगत में,जिनमें जगे विवेक,
जिनसे शास्वत है जगत,मूल धर्म का नेक।
मूल धर्म का नेक,बहुत गहरे है साधो,
दया दृष्टि रघुनाथ,सगुन केवल आराधो।
करें वही शत खंड,मरे पाखंडी नानी,
सदा यही संदेश,वेद देते हैं ज्ञानी।

जगती जागे रात-दिन,सदा रहे पर मौन,
संतति भू के जन सभी,उत्तम-मध्यम कौन।
उत्तम-मध्यम कौन,और निकृष्ट बताओ,
हो प्रमाण जो श्रेष्ठ,वही पन्ने अब लाओ।
ढोंगी या उत्कृष्ट,लोग को कैसी लगती,
प्राण प्रिया यह विष्णु,प्यार करती नित जगती।

अच्छा तुमको जो लगे,नेक वही ब्योहार,
इस धरती पर नित्य हो,बस वैसा त्योहार।
बस वैसा त्योहार,पर्व हो खुल्लम खुल्ला,
दो दिन का संसार,फुटे पानी का बुल्ला।
खेमेश्वर भू-गाय,और हम इसके बच्छा,
करती है यह प्यार,भला इससे क्या अच्छा।

कोई पाखंडी नहीं,सीधा-सरल विचार,
जीवन में जो रिक्तता,हो पूरित उद्गार।
हो पूरित उद्गार,यही सब की अभिलाषा,
पाखंडी जो लोग,बूझिए उनकी भाषा।
दूध दुहें जब गाय,लगाते सब जन नोई,
खंड-खंड पाखंड,करे ज्ञानी ही कोई।

मारे-मारे शब्द हैं,पाखंडी के जोर,
शब्दों की इज्जत गयी,हुआ चतुर्दिक शोर।
हुआ चतुर्दिक शोर,सत्य पर डंडे बरसे,
खुला अर्थ का द्वार,निकल भागे ये घर से।
न्याय-दया अनिकेत,हुए हैं हरि के प्यारे,
खेमेश्वर ये घूम, रहे नित मारे-मारे।

         ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

माटी(मुक्तक)


माटी जननी जगत की,करना इसे प्रणाम,
माटी के कोखी हुए,कृष्ण और श्री राम।
माटी के आधार पर,मुक्तक रचना नित्य,
सृजन विवेकी जन करें,हरि के सुंदर धाम।

महिमा माटी की बड़ी,जीवन हुआ ललाम,
माटी के आधार पर,सृजित तीर्थ हैं धाम।
उपजे फिर उनन्त बने,रचना विविध प्रकार,
माटी के ही गर्भ में,फिर पाये विश्राम।

माटी रचना रुचिर है,लोचन लालच नित्य,
कविर्मनीषी लिख रहे,मंगलमय साहित्य।
धरती के हर छंद में,केवल माटी जान,
माटी को करता नमन, किरणों से आदित्य।

माटी और कुम्हार का, शास्वत है सम्बंध,
निज सिंहासन बैठ कर,रचता नित्य प्रबंध।
मायामय मूरख हृदय,सदा रहे अनभिज्ञ,
निज लोचन रहते हुए,फिर भी जैसे अंध।

चर्म देह जिसको कहें,माटी का ही जान,
आकर्षण में दृग बँधे,ज्ञान कहें अज्ञान।
पंडित-ज्ञानी-संत सब,फँसे मृत्तिका जाल,
माटी से माटी मिले,यही पतन-उत्थान।

जल से जल जाकर मिले,मिले तेज से तेज,
यह सिद्धान्त अपेल है,राखें इसे सहेज।
खेमेश्वर मत चौंकिए,देख यहाँ का खेल,
पतन और उत्थान का,यह माटी ही सेज।

         ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

राष्ट्र भाषा (घनाक्षरी छंद)


हिन्दी का विशाल पाट,दूर-दूर लौ दिखात,
बाढ़ की विभीषिका सी, रंग मोद लासिनी,
घाट-घाट बाट-बाट,तीरथ प्रयाग राज,
संतन सुसंतन के,मेल सो सुहासिनी।
हिम से निकषि धाइ,सागर से मिलि जात
अंक में लपेट निज,प्यार की प्रकाशिनी,
एहिं भाँति हिंदी आज,बनी माथ बिंदी सी है
भारत की भाषन सों,बनी मृदु भाषिनी।

         ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

खिले थे गुल चाहत की तुम्हें याद हो के न हो।1।

मिले थे हमतुम कभी  तुम्हें  याद  हो के न हो!
खिले थे गुल चाहत की तुम्हें याद हो के न हो।1।

बिखरी बिखरी थी उल्फत का रंग फजाओं में!
मिलने आये थे तभी  तुम्हें  याद हो के न हो।2।

लगी थी आग इसकदर दोनों तरफ महब्बत का!
कसमें खाये थे सभी तुम्हें याद हो के न हो।3।

निभाये प्यार को रखना यही कहते थे सदा!
जुदा ना हों जीते जी तुम्हें याद हो के न हो।4।

तोड़कर चल दिये फिर क्यूं कस्म ए वादे तूने!
सजाये ख्वाब उल्फत की तुम्हें याद हो के न हो।5।

मिले थे हमतुम कभी  तुम्हें  याद  हो के न हो!
खिले थे गुल चाहत की तुम्हें याद हो के न हो।1।


         ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

बहक जाऊं न कहीं आपकी सदा लेकर!

ग़ज़ल

बहक जाऊं न कहीं आपकी सदा लेकर!
रूबरू आये हो यूँ हमनवा अदा लेकर।

मिलाकर चल कदमों को मिलाये दिल भी!
रुत सजा रह ए उल्फत का रस्मे वफ़ा लेकर।

धड़कता है धड़कन और हलचल सी मची!
जता जा चाह दर्द ए दिल का दवा लेकर।

चले आओ हसरत और खिलने से लगे!
के गुजरता जाये सफर भी वास्ता लेकर।

हमसफर यूँ हमसे मुहब्बत कीजिए फिर!
ढले आयें दिलसे दिल का राब्ता लेकर।

बहक जाऊं न कहीं आपकी सदा लेकर!
रूबरू आये हो यूँ हमनवा अदा लेकर।

         ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

बदले मौसम गर चाह न बदलने दीजिए!


बदले मौसम गर चाह न बदलने दीजिए!
रह ए उल्फत पे वफ़ा से संभलने दीजिए।

वक़्त गुजरे संग हसरत भी दिलका खिले!
चार सू अपने साख ए गुल को खिलने दीजिए।

आइये मिलके हंसीं घर हम सजाएं फिर से!
दिलसे दिलको मन मनसे भी मिलने दीजिए।

जोड़ये रिश्तें यहां वास्ते पे भरोसा लेकर!
लम्हा लम्हा फिर चाहतों को पलने दीजिए।

जोश ए जुनू ए इश्क़ यूँ बढ़ती जाये अक्सर!
रुख ए पुर नूर हो प्यार में मचलने दीजिए।

बदले मौसम गर चाह न बदलने दीजिए!
रह ए उल्फत पे वफ़ा से संभलने दीजिए।

         ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

ऐसा हुआ है हाल मेरा, तेरे प्यार में।

💞💞💞💞💞💞💞💞💞💞💞💞

शेर- लम्हों ने सताये हैं जिंदगी ने रुलाया!
      लगी जो आग है किसी ने ना बुझाया।

आंखों से अश्क़ बह गये, तेरे इंतजार में!
ऐसा  हुआ  है  हाल  मेरा,  तेरे  प्यार में।

हर  पल  तेरी  जुदाई,  तड़पाये  है  हमें!
सदियां गुजर गई यूँ, तेरे इश्क़ के खुमार में।

महब्बत में लम्हा लम्हा, हम ढलते गये सनम!
हैं  चाहत की डोर बांधे, तेरे दीदार में।

आजा के गले लगालूं, गम ए दिल भुलालूं!
जीना हमें आ जाये फिर, तेरे बहार में।

मेरे दिल में हमनवा, तुंहीं रहती है सदा!
हूँ बू ए गुल महकाये, तेरे आसार में।

आंखों से अश्क़ बह गये, तेरे इंतजार में!
ऐसा  हुआ  है  हाल  मेरा,  तेरे  प्यार में।


         ©"पं.खेमेश्वर पुरी गोस्वामी"®
            धार्मिक प्रवक्ता-ओज कवि
             डिंडोरी-मुंगेली-छत्तीसगढ़
       8120032834/7828657057

न्यू २

प्रति मां. मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल जी रायपुर , छत्तीसगढ़ शासन विषय : आर्थिक सहायता,आवास, तथा आवासीय पट्टा दिलाने बाबत् आदरणीय महोदय,   ...